सागर:भारत में आजादी के पहले बने कई विश्वविद्यालय हैं जो, आज भी देश में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं. इन्हीं विश्वविद्यालयों में एक सागर में स्थित डॉ. हरिसिंह गौर यूनिवर्सिटी है. जब देश की गुलामी की बेड़ियां टूटने वाली थीं, उसी समय 1946 में डॉ. हरिसिंह गौर ने इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. 26 नवंबर को हरिसिंह गौर की 154वीं जयंती है. इस अवसर पर देश की करीब 100 यूनिवर्सिटी के 1500 कलाकार अपनी प्रस्तुति देंगे. इसके अलावा यहां के एलुमनाई जो अब फिल्मी दुनिया में नाम कमा रहे हैं, इस जयंति समारोह में शामिल होने के लिए आयेंगे. खास बात ये है कि सागर यूनिवर्सटी को सेंट्रल जोन के यूथ फेस्टिवल की मेजबानी मिली है, जो गौर जयंती के साथ शुरू होगा.
बुंदेलखंड में उत्सव के रूप में मनाते हैं गौर जयंती
डाॅ. हरीसिंह गौर का जन्म 26 नवम्बर 1870 को सागर के चील पहाड़ी नामक गांव में हुआ था. एक साधारण परिवार में जन्मा बच्चा आगे चलकर इतना बड़ा दानी बन जाएगा और समाज के लिए एक विरासत छोड़ जाएगा, शायद तब ये किसी ने नहीं सोचा होगा. वकालत के फिल्ड में नाम कमाने के बाद हरिसिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के पहले कुलपति बने. यहीं से उनके मन में शिक्षा के क्षेत्र में समाज के लिए कुछ बड़ा करने का विचार आया. जिसके बाद उन्होंने 18 जुलाई 1946 को बुदेलखंड इलाके में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की. खास बात ये है कि उन्होंने 1400 एकड़ में फैली इस यूनिवर्सिटी को बनाने के लिए किसी से चंदा नहीं लिया और न ही सरकार से कोई अनुदान लिया था.
शिक्षा के क्षेत्र में हरिसिंह गौर का अमिट योगदान
डॉ. हरिसिंह गौर को सिर्फ सागर यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए याद करना उनकी प्रतिभा के साथ अन्याय होगा. उन्होंने भारत में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना, महिलाओं को वकालत का अधिकार, संविधान निर्माता सभा के सदस्य के रूप में याद किया जाता है. इसके अलावा उन्होंने देश को अंग्रेजों से आजाद कराने में भी महती भूमिका निभाई थी. दिल्ली विश्वविद्यालय के पहले कुलपति के रूप में सेवा देने वाल हरिसिंह गौर को शिक्षाविद् भी कहा जाता है.
इस बार क्यों है गौर जयंती खास