रतलाम:मध्यप्रदेश में काला सोना यानी अफीम की खेती मालवा के मंदसौर, नीमच और रतलाम जिले में की जाती है. अंग्रेजों के जमाने से ही मंदसौर क्षेत्र अफीम का बड़ा उत्पादक क्षेत्र रहा है. लेकिन 2020 में नारकोटिक्स विभाग द्वारा लाई गई सीपीएस पट्टा नीति की वजह से यहां किसान अफीम की खेती तो कर रहे हैं लेकिन अब 50% किसान डोडे में चीरा लगाना बंद कर चुके हैं. मतलब कुल रकबे में बोई गई लगभग आधी फसल में से अफीम किसानों द्वारा नहीं निकाला जा रहा है.
यह किसान केवल पोस्तादाना का उत्पादन लेने के लिए ही अब अफीम की फसल भारत सरकार द्वारा दिए गए सीपीएस पट्टे पर कर रहे हैं. पोस्ता दाना निकालने के बाद किसान डोडा तने सहित नारकोटिक्स विभाग को तय दाम पर बेचते हैं. हालांकि किसानों की माने तो यह उनके लिए घाटे वाली खेती साबित हो रही है.
50 फीसदी अफीम उत्पादक किसान नहीं लगाएंगे डोडे में चीरा (ETV Bharat) अफीम नीति लागू कर पट्टे देती है भारत सरकार
दरअसल, देश के सबसे बड़े अफीम उत्पादक क्षेत्र मंदसौर और नीमच में अफीम की परंपरागत खेती वर्षों से की जाती है. जिसके लिए भारत सरकार हर वर्ष अफीम नीति लागू कर पट्टे देती है. नारकोटिक्स विभाग की देखरेख में किसान अफीम की खेती कर डोडे में चीरा लगाते हैं और अफीम की निर्धारित मात्रा विभाग के तोल केंद्र पर तोलते हैं. वर्तमान में गुणवत्ता के आधार पर प्रति किलो अफीम पर किसान को 1500 रुपए से लेकर ₹3500 तक प्राप्त होते हैं.
सीपीएस पट्टे पर कर रहे घाटे की खेती (ETV Bharat) नीति से किसान ज्यादा खुश नहीं
वहीं, पोस्तादाना मंडी में बेच कर किसानों को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है. लेकिन वर्ष 2020-21 में भारत सरकार के नारकोटिक्स विभाग ने सीपीएस प्रणाली पर 10 आरी के पट्टे जारी कर किसानों को केवल पोस्तादाना उत्पादन लेने और डोडा डंठल सहित ₹200 प्रति किलोग्राम की दर पर खरीदना शुरू कर दिया. हालांकि इस नीति से किसान ज्यादा खुश नहीं हैं, लेकिन नियमित चीरा लगाने वाली पद्धति का पट्टा भविष्य में मिलने की उम्मीद में किसान यह खेती कर रहे हैं. हालांकि कुछ किसान पूर्व में निरस्त हुआ पत्ता सीपीएस प्रणाली के रूप में मिलने पर संतुष्ट भी हैं.
क्या है चीरा लगाने वाली और सीपीएस पट्टा प्रणाली में अंतर
अफीम उत्पादक किसानों के संगठन के अध्यक्ष नरसिंह डांगी बताते हैं कि, ''नारकोटिक्स विभाग की देखरेख में किसान अफीम की खेती कर डोडे में चीरा लगाते हैं और अफीम का कलेक्शन कर निर्धारित मात्रा विभाग के तोल केंद्र पर तोलते हैं. जबकि सीपीएस पट्टा प्रणाली में किसानों को केवल पोस्तादाना का उत्पादन लेने की छूट है. फसल के डोडे डंठल सहित नारकोटिक्स विभाग को तोलना पड़ते हैं. नीमच, मंदसौर और रतलाम जिले में करीब 37 हजार किसानों को पट्टे वितरित किए गए हैं. इसमें लगभग आधे किसानों को फसल में चीरा लगाने की अनुमति नहीं है.''
क्या है अफीम उत्पादन का इकोनॉमिक्स
अफीम उत्पादक किसानों के अनुसार, 10 आरी का पट्टा भारत सरकार द्वारा दिया जाता है. इसमें लागत की बात करें तो करीब 70 हजार रुपए का खर्च 10 आरी की फसल में आता है. सीपीएस के पट्टे में किसानों को औसतन एक क्विंटल पोस्तादाना प्राप्त होता है, जिसका बाजार मूल्य 80 हजार से लेकर 1 लाख 20 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक मिलता है. वहीं, 200 रुपए प्रति किलो की दर पर डोडा डंठल सहित नारकोटिक्स विभाग खरीदता है.
जबकि परंपरागत चीरा लगाकर अफीम निकालने की पद्धति में भी लगभग लागत समान ही रहती हैं. लेकिन पोस्तादाना उत्पादन अच्छा मिलता है. निकाली गई अफीम के दाम गुणवत्ता अनुसार 1500 से ₹3500 प्रति किलोग्राम तक प्राप्त होते हैं. किसान जो अफीम या डोडा डंठल सहित नारकोटिक्स विभाग को बेचते हैं उसकी मात्रा प्रति आरी निर्धारित होती है. विभाग की देखरेख में तोलना होता है.
नारकोटिक्स विभाग के क्षेत्रीय अधिकारी संजय मीणा के अनुसार, ''इस वर्ष नीमच, मंदसौर और रतलाम जिले में कुल 54751 पट्टे किसानों को वितरित किए गए हैं. जिसमें नियमित यानी चीरा लगाने वाले पट्टाधारकों की संख्या 25270 एवं सीपीएस पद्धति यानी चीरा नहीं लगाने वाले किसानों की संख्या 29481 हजार है.''
बहरहाल नारकोटिक्स विभाग के आंकड़ों के अनुसार भी अफीम के डोडे में चीरा नहीं लगाने वाले किसानों की संख्या नियमित पट्टाधारी किसानों से अधिक है. अफीम का उत्पादन लेने वाले किसानों की मांग है कि उन्हें अफीम अथवा खरीदे जाने वाले डोडा का अधिक मूल्य मिलना चाहिए. क्योंकि दोनों ही पद्धति में लागत लगातार बढ़ती जा रही है. जबकि शासन द्वारा तय मूल्य उस अनुपात में नहीं बढ़ा है.