पटना:जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद संजय झा ने केंद्र से मैथिली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की मांग की है. हाल में ही केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार ने 5 भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है. इसके बाद संजय झा की तरफ से यह मांग उठी है. उन्होंने ने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से इसकी जानकारी दी है.
1300 वर्ष पुरानी है मैथिली भाषाः संजय झा ने कहा कि कि मैथिली भाषा 1300 वर्ष पुरानी है. इसके साहित्य का विकास स्वतंत्र रूप से अनवरत होता रहा है. संजय झा ने कहा कि शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए 31 अगस्त 2018 में चार सदस्यीय समिति ने मानव संसाधन मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट भी दे दी है. जिसमें 11 सिफारिश की गई है. संजय झा ने यह भी कहा है कि जल्द ही अपनी इस मांग को लेकर मानव संसाधन मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात करेंगे.
संरक्षण और संवर्धन मेरी प्राथमिकता: मैथिली भाषा का संरक्षण एवं संवर्धन मेरी शीर्ष प्राथमिकता रही है. मेरे प्रयासों से केंद्र सरकार द्वारा गठित मैथिली के विद्वानों की विशेषज्ञ समिति ने 31 अगस्त 2018 को पूर्ण की गई अपनी रिपोर्ट सौंपी. पिछले छह वर्षों में समिति की कुछ सिफारिशों पर काम हुए हैं लेकिन इसे शास्त्रीय भाषा का दर्जा नहीं मिल पाया है. अब समिति की सिफारिशों के अनुरूप मैथिली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए जल्द ही माननीय केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान जी से मिलूंगा.
संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिलःसंजय झा ने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि मैथिली भाषा के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए अब तक जितने भी काम हुए हैं, एनडीए की राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा ही किये गये हैं. सीएम नीतीश कुमार की पहल पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने हम मिथिलावासियों की दशकों से लंबित मांग को पूरा करते हुए मैथिली भाषा को संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल किया था.
बीपीएससी सिलेबस से हटा दियाः 2005 में जब नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में सरकार बनी तब उन्होंने मैथिली को पुन: बीपीएससी के सिलेबस में शामिल किया. जिसे पूर्व की कांग्रेस और राजद गठबंधन की सरकार ने सिलेबस से हटा दिया था. सीएम के निर्देश पर सौराठ (मधुबनी) में मिथिला चित्रकला संस्थान और मिथिला ललितकला संग्रहालय की स्थापना की गई जो प्राचीन एवं विश्वविख्यात मिथिला चित्रकला को संरक्षित करने तथा मिथिला की कला-संस्कृति के संवर्धन की दिशा में आजादी के बाद की सबसे बड़ी एवं ऐतिहासिक पहल है.