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राजस्थान को ज्यादा बिजली उत्पादन करने के बाद भी करोड़ों का नुकसान, एमपी वसूल रहा ज्यादा लागत - MP and Rajasthan Hydro Connection

राजस्थान हर साल करोड़ों रुपए की बिजली बनाने के बाद भी करोड़ों रुपए का नुकसान झेल रहा है. एमपी और राजस्थान के बीच हुए 50 साल पहले हुए एक समझौते के कारण ये नुकसान प्रदेश को हो रहा है. पढ़िए ये रिपोर्ट...

राजस्थान में बिजली उत्पादन
राजस्थान में बिजली उत्पादन (ETV Bharat GFX)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 13, 2024, 9:05 PM IST

बिजली उत्पादन में करोड़ों का नुकसान (ETV Bharat Kota)

कोटा :चंबल नदी पर बने हुए राणा प्रताप सागर और जवाहर सागर बांध पर स्थापित हाइड्रो यूनिट्स करोड़ों रुपए की बिजली हर साल बना रहे हैं, लेकिन 50 साल पुराने समझौते के तहत उत्पादित की गई बिजली को मध्य प्रदेश को देना पड़ रहा है. इसके चलते राजस्थान को करोड़ों रुपए का नुकसान हर साल हो रहा है, जबकि अब यह यूनिट्स पुरानी हो गईं हैं और इन्हें नवीकरण, आधुनिकीकरण और उन्नयन की आवश्यकता है.

राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के डिप्टी चीफ इंजीनियर एनएस खंगारोत का कहना है कि मध्य प्रदेश की गांधी सागर बांध पर प्लांट की क्षमता ज्यादा होने के बाद भी बिजली उत्पादन कम हो रहा है. यह छोटे प्लांट जेएस डैम से भी कम बिजली जनरेट कर रहा है. मध्य प्रदेश को हम ज्यादा पैसा दे रहे हैं और उनसे जो बिजली मिल रही है, वह कम मिल रही है. इसमें कुल मिलाकर राजस्थान को नुकसान हो रह रहा है. हम सस्ती बिजली उत्पादन करके उनको दे रहे हैं, जबकि वे बिजली उत्पादन कम कर रहे हैं. उस पर सेस (उपकर टैक्स के ऊपर लगाया जाने वाला एक विशेष कर) भी वसूल रहे हैं.

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गांधी सागर से छोटे प्लांट ने किया ज्यादा उत्पादन :डिप्टी चीफ इंजीनियर के टेक्निकल असिस्टेंट और सहायक अभियंता राजीव लोमी का कहना है कि गांधी सागर बांध ने 2023-24 में जहां 2954 लाख यूनिट बिजली उत्पादन किया है, वहां पर 23 मेगावाट की पांच इकाइयां स्थापित हैं. इन्हें मिलकर 115 मेगावाट क्षमता पूरे प्लांट की है, जबकि चंबल नदी पर ही बूंदी जिले में बने जवाहर सागर डैम पर 33 मेगावाट की तीन यूनिट्स है. ऐसे में 99 मेगावाट के इस जल आधारित पावर प्लांट में 3014 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन किया गया है. राजस्थान सरकार उनसे सेस को हटाने की मांग कर रही है. वे अकाउंट बुक में डालकर सेस को वसूल रहे हैं, जिससे बिजली उत्पादन लागत 30 पैसे से बढ़कर 50 पैसे हो गया है. इस कारण उत्पादन लागत करीब 65 फीसदी बढ़ गई है, जबकि हमारा उत्पादन आज भी 30 पैसे प्रति यूनिट में ही हो रहा है.

चंबल नदी पर बने हाइड्रो पावर प्लांट को लेकर किस तरह का समझौता और अनुबंध है, इसकी पूरी जानकारी लेते हैं. इसमें किस तरह की शर्तें हैं कि मध्य प्रदेश को बिजली और करोड़ों की राशि क्यों देनी पड़ रही है. बिजली उत्पादन पर मध्य प्रदेश सरकार के सेस लेने के विषय को भी उठाया जाएगा, जिस पर नियमानुसार कार्रवाई करवाई जाएगी. :हीरालाल नागर, ऊर्जा मंत्री, राजस्थान

राजस्थान में बीते 7 सालों में सर्वाधिक उत्पादन :डिप्टी चीफ इंजीनियर जेनरेशन एनएस खंगारोत का कहना है कि आरपीएस, जेएस व मांगरोल में स्थापित हाइड्रल पावर स्टेशन पर 2023-24 में 8098.270 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन हुआ है. इस उत्पादन को पांच रुपए प्रति यूनिट भी देखा जाए तो करीब 400 करोड़ से ज्यादा की बिजली उत्पादित की गई है. यह बीते 7 सालों में सर्वाधिक उत्पादन है, जबकि अभी आरपीएस डैम की एक यूनिट काम नहीं कर रही है. यह बिजली उत्पादन महज 24 करोड़ में हुआ है. ऐसे में करीब 30 पैसे प्रति यूनिट का खर्चा हुआ है.

ये देखें आंकड़ें (ETV Bharat GFX)

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केंद्र की मनाही, फिर भी वसूला टैक्स :एईएन राजीव लोमी का कहना है कि केंद्र सरकार ने राज्यों के ऊपर विद्युत उत्पादन को लेकर किसी भी तरह का टैक्स या सेस नहीं लगाने का सर्कुलर जारी किया हुआ है. इसके तहत विद्युत उत्पादन पर टैक्स लगाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार का है, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने 20 पैसा प्रति यूनिट सेस लगाया हुआ है. ऐसे में मध्य प्रदेश में उत्पादित हुई बिजली का सेस अनुबंध के तहत राजस्थान सरकार को वहन करना पड़ रहा है. हाइड्रो पावर में 30 पैसे प्रति यूनिट का खर्चा बिजली उत्पादन में आता है. ऐसे में गांधी सागर बांध पर उत्पादित की गई 2954 लाख यूनिट बिजली का करीब 6 करोड़ रुपए टैक्स राजस्थान ने वहन किया है, जबकि बिजली बनाने में ही 9 करोड़ का खर्चा हुआ है. ऐसा सालों से चल रहा है.

मध्य प्रदेश में 50 पैसे यूनिट, राजस्थान में 30 पैसे में निर्माण :राशि के आधार पर देखा जाए तो गांधी सागर डैम 120 करोड़ रुपए की बिजली बना पाया है. इसमें बिजली बनाने का खर्च 9 करोड़ और इस पर मध्य प्रदेश सरकार का 6 करोड़ सेस है, जबकि जेएस डैम 155 करोड़, आरपीएस 245 करोड़ व मांगरोल में 4.25 करोड़ रुपए की बिजली उत्पादित हुई है. यहां पर किसी तरह का कोई सेस नहीं होने के चलते महज 24 करोड़ रुपए उत्पादन पर खर्च हुए हैं. कुल बिजली उत्पादन 400 करोड़ से ज्यादा का है. ऐसे में मध्य प्रदेश में बिजली सेस और खर्चा मिलाकर करीब 50 पैसे प्रति यूनिट पड़ रही है, जबकि राजस्थान में यह 30 पैसे में ही निर्माण हो रहा है.

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यह हो रखा है समझौता, बिजली और खर्च आधा-आधा :एईएन राजीव लोमी का कहना है कि साल 1968 में जब यह प्लांट बने थे, तब मध्य प्रदेश व राजस्थान सरकार के बीच समझौता हुआ था. इसमें तीन प्लांट बने थे, जिसमें एक गांधी सागर मध्य प्रदेश के पास है, जबकि राणा प्रताप सागर और जवाहर सागर बांध राजस्थान सरकार के पास है. इस समझौते के तहत बिजली का उत्पादन जितना भी होगा, वह 50-50 फीसदी लिया जाएगा, जबकि खर्चा भी 50-50 फीसदी ही होगा. इस समझौते को काफी लंबा समय हो गया है, दोबारा यह प्लांट खर्च मांग रहे हैं. ऐसे में दोनों प्रदेश को अलग हो जाना चाहिए.

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