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चुनाव प्रचार के अंतिम दिन भाजपा ने झोंकी ताकत, सीएम-अध्यक्ष ने संभाला मोर्चा, लेकिन वसुंधरा की दूरी

राजस्थान उपचुनाव का रण. चुनाव प्रचार के अंतिम दिन भाजपा ने झोंकी ताकत. सीएम-अध्यक्ष ने संभाला मोर्चा, लेकिन वसुंधरा की दूरी.

Rajasthan By Election 2024
उपचुनाव का रण (ETV Bharat GFX)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 11, 2024, 9:54 PM IST

जयपुर: प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में भाजपा-कांग्रेस के साथ आरएलपी और बीएपी नेताओं ने सोमवार को पूरी ताकत झोंकी. प्रचार के अंतिम दिन नेताओं ने रोड-शो और जनसभाओं के जरिए एक-दूसरे पर वार-पलटवार किए. 13 नवंबर को होने वाले मतदान को लेकर सोमवार शाम 6 बजने के साथ प्रचार थम गया. प्रचार थमने से एक दिन पहले मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने चौरासी और सलूंबर में रोड-शो और जनसभा के जरिए भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की.

वहीं, इस बार उपचुनाव में भी पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की प्रचार से दूरी सियासी गलियारों में चर्चा का विषय रहा. राजनीतिक जानकारों की मानें तो भाजपा ने रणनीति के तौर पर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को दौसा और पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ को झुंझुनू विधानसभा सीट पर प्रचार से दूर रख कर पार्टी पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की है.

सीएम-अध्यक्ष ने संभाली कमान : विधानसभा उपचुनाव में सातों सीटों पर इस बार मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने चुनाव कमान संभाली. यही वजह है कि प्रत्याशियों की घोषणा होने के साथ ही नामांकन सभा और रैली में भजनलाल शर्मा और मदन राठौड़ दोनों शामिल हुए. इतना ही नहीं, दिवाली के बाद जैसे ही चुनाव प्रचार जोर पकड़ने लगा, उसके बाद सीएम और अध्यक्ष की जोड़ी ने सभी विधानसभा सीटों पर रोड शो और जनसभा के जरिए भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ की जोड़ी ने नामांकन सभा के बाद एक साथ चुनावी प्रचार संभाला, जिसकी शुरुआत 8 नवंबर से देवली-उनियारा विधानसभा सीट पर अपने प्रत्याशी राजेंद्र गुर्जर के समर्थन में प्रचार से हुई.

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इसके बाद 9 नवंबर को झुंझुनू में राजेंद्र भामू और खींवसर में देवत राम डांगा के समर्थन में सीएम और अध्यक्ष ने चुनावी सभा को संबोधित किया. इसके बाद 10 नवंबर को दौसा में जगमोहन मीणा के समर्थन में रोड शो और रामगढ़ में सुखवंत सिंह के समर्थन में जनसभा की. इसके बाद प्रचार के अंतिम दिन चौरासी और सलूंबर में रोड शो और जनसभा के जरिये हुंकार भरी. उपचुनाव वैसे तो सरकार के कामकाज के आकलन के हिसाब से होते हैं, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद मदन राठौड़ के लिए भी चुनाव पहली परीक्षा के तौर पर देखे जा रहे हैं.

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा हो या प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ दोनों के लिए उपचुनाव के परिणाम किसी अग्नि परीक्षा से काम नहीं है. हालांकि, भाजपा ने जिस तरह से बागियों को मनाने में कामयाब रही और अन्य नेताओं की भी बैठकों के जरिए नाराजगी को दूर किया उसके बाद पार्टी अस्वस्थ है कि वह इस बार सभी सातों सिटी जीत मिलेगी. पिछले दिनों भाजपा प्रदेश मदन राठौड़ ने कहा था कि सरकार की 11 महीने के कामकाज के आधार पर सभी सातों सीटें जीतने का दावा किया था. वहीं, राठौड़ ने कहा था कि बीजेपी के पास इन 7 सीटों में से सिर्फ एक सीट मौजूदा स्थिति में है, लेकिन चुनाव परिणाम की बाद कांग्रेस और अन्य पार्टियों से शेष 6 सीटें भी छीनकर बीजेपी सभी साथ सीटों पर कमल खिलाएगी.

राजे की दूरी : लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश में हो रहे उपचुनाव में भी पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की दूरी सियासी गलियारों में न केवल चर्चा का विषय है, बल्कि राजनीति के पंडित इस बात को भी मान रहे हैं कि कहीं ऐसा नहीं हो कि राजे की चुनाव से दूरी पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हो जाए. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने किसी भी उपचुनाव वाली सीट पर चुनावी प्रचार या जनसभा नहीं की. इतना ही नहीं, किसी भी विधानसभा सीट पर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को लेकर कोई पोस्टर-होर्डिंग भी नहीं लगे.

राजे की दूरी को लेकर बीजेपी के नेताओं से कई बार सवाल भी किया गया, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए अपना बचाव करने की कोशिश की कि वह जनसभाओं के जरिए नहीं, बल्कि आंतरिक रूप से पार्टी के संगठन को मजबूत करें और रणनीति के तहत कार्यकर्ताओं-नेताओं को काम के निर्देश दे रही हैं. हालांकि, पहले यह माना जा रहा था कि झुंझुनू, देवली-उनियारा सीट पर समर्थित नेताओं को टिकट दिया गया है तो उनके प्रचार के लिए हो जाएंगे, लेकिन चुनाव प्रचार थमने के साथ-साथ यह साफ हो गया कि राजे ने इस बार विधानसभा चुनाव में प्रत्यक्ष रूप से अपनी भूमिका नहीं निभाई है.

राठौड़-पूनिया को दूर रखा : बीजेपी ने इस बार सभी सातों सीटों पर प्रत्याशी घोषणा के साथ ही बागी नेताओं को मनाने की रणनीति में कामयाबी के साथ जरूरत पड़ने पर प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री ने नाराज नेताओं से वन टू वन मुलाकात करके उनकी नाराजगी को भी दूर किया. बीजेपी ने इस बार हर एक सीट पर अलग-अलग राजनीति के साथ काम किया, जिसमें प्रचार के लिए उन नेताओं को चुनाव मैदान में उतरा जिस विधानसभा सीट पर उनकी डिमांड थी.

मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी और डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा ने कमोबेश सभी विधानसभा सीटों पर प्रचार का जिम्मा संभाला, लेकिन पार्टी ने दो बड़े नेता जिसमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और हरियाणा प्रभारी सतीश पूनिया और पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ को दौसा और झुंझुनू विधानसभा सीट से दूर रखा. किरोड़ीलाल मीणा और सतीश पूनिया की अदावत पूर्व में कई बार चर्चाओं में रही. यही वजह है कि पार्टी ने सतीश पूनिया को दौसा विधानसभा सीट से दूर रखा तो वहीं पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ को शेखावाटी में जाटों की नाराजगी के असर को देखते हुए झुंझुनू विधानसभा सीट से दूर रखा.

राजनीतिक विश्लेषक की राय : वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं कि बीजेपी ने इस बार रणनीति के तहत चुनाव को अपने पक्ष में बनाने की कोशिश की है. शेखावाटी में जिस तरह से जाट समाज विधानसभा चुनाव से ही पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ को लेकर नाराज थे, तो उसको देखते हुए पार्टी को उपचुनाव में नुकसान नहीं हो, इसलिए झुंझुनू से राजेंद्र राठौड़ को दूर रखा गया है. राजेंद्र राठौड़ ने चौरासी और सलूंबर विधानसभा सीट पर ज्यादा वक्त बिताया है. इसके साथ देवली-उनियारा, दौसा में उन्होंने कुछ सभाएं की है. वहीं, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और हरियाणा प्रभारी सतीश पूनिया की बात की जाए तो उन्हें दौसा विधानसभा सीट से दूर रखा गया है, क्योंकि किरोड़ीलाल मीणा और सतीश पूनिया की अदावत जग जाहिर है.

पूनिया के जाने से मीणा वोट बैंक नाराज नहीं हो, इसलिए पूनिया को दौसा विधानसभा सीट से दूर रखा. पूनिया ने बाकी सीटों पर चुनावी सभा की है. श्याम सुंदर शर्मा ने कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद इस बार उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एक बार फिर चुनाव प्रचार से दूर नजर आईं. वसुंधरा राजे लंबे समय से पार्टी की गतिविधियों में भी भाग नहीं ले रही हैं. हालांकि, पार्टी के नेता भले ही उनको आंतरिक रणनीति में शामिल होने की बात करते हों, लेकिन उपचुनाव में जब टिकट बंटवारा हो और उसको लेकर जो बैठकें हुईं, उसमें भी वसुंधरा राजे शामिल नहीं होकर अपनी नाराजगी दिखाई है. श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं कि वसुंधरा की नाराजगी का नुकसान भी पार्टी को उपचुनाव की कुछ सीटों पर उठाना पड़ सकता है.

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