भरतपुर : 42वीं सारस गणना सोमवार से शुरू हो रही है. भरतपुर घना केवलादेव नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के अध्यक्ष और केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के पूर्व अवैतनिक वाइल्ड लाइफ वार्डन कृष्ण कुमार ने बताया कि 1983 से यह गणना राजस्थान वन विभाग के सहयोग से लगातार हो रही है. सटीक गणना के लिए राष्ट्रीय उद्यान को 12 जोनों में विभाजित किया गया है, जबकि भरतपुर जिले और उत्तर प्रदेश से सटे इलाकों को पांच भागों में बांटा गया है. इस प्रक्रिया से सारसों की वास्तविक संख्या, उनके प्रवास और पर्यावरणीय स्थिति का अध्ययन किया जाएगा.
पिछले वर्ष 143 सारस मिले थे : पिछले वर्ष की गणना में कुल 143 सारस दर्ज किए गए. विशेष रूप से नौनेरा (कामां) और सांवई खेड़ा (डीग) में सारसों की मौजूदगी को शोध की बड़ी उपलब्धि माना गया. इन क्षेत्रों के जल स्रोतों और पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक हो गया है. इस दौरान 15 सारस केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में मिले थे. 91 सारस नौनेरा (कामां), सांवई खेड़ा (डीग) और कौरेर (कुम्हेर) के वेटलैंड्स में देखे गए. वहीं, 12 सारस उत्तर प्रदेश से सटे क्षेत्रों में दिखाई दिए.
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सारस संरक्षण जरूरी : कृष्ण कुमार ने बताया कि सारस केवल एक पक्षी नहीं, बल्कि वेटलैंड्स और पर्यावरण के स्वास्थ्य का संकेतक हैं. यदि सारस बचते हैं, तो जल स्रोत बचेंगे. जल स्रोत बचेंगे तो मानव जीवन भी संरक्षित रहेगा. सारसों का अस्तित्व बढ़ते जल संकट और जलवायु परिवर्तन के दौर में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. यदि इनके प्राकृतिक आवास सुरक्षित रहेंगे तो जैव विविधता को भी संरक्षित किया जा सकेगा.