नई दिल्ली/गाजियाबाद: गाजियाबाद में स्थित श्री दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर में शुक्रवार को प्राकट्योसव व वैकुंठ चतुर्दशी मनाई गई. इस दौरान पूजा-अर्चना करने के लिए भक्तों का तांता लगा रहा और दूर दूर से लोगों ने आकर भगवान दूधेश्वर नाथ का अभिषेक किया. मंदिर के मीडिया प्रभारी एसआर सुथार ने बताया कि शुक्रवार को प्रात: 3 बजे भगवान दूधेश्वर नाथ का भव्य श्रृंगार कर आरती की गई. साथ ही भगवान दूधेश्वर नाथ को 108 प्रकार के भोग भी लगाए गए.
मंदिर के पीठाधीश्वर महंत नारायण गिरी ने बताया कि दूधेश्वर नाथ मंदिर अपने आप में ऐतिहासिक महत्व रखता है. स्वयंभू भगवान दूधेश्वर नाथ के शिवलिंग का कलयुग में प्राकट्य कार्तिक शुक्ल पक्ष की वैकुंठ चतुर्दशी को हुआ था. मंदिर की स्थापना रावण के पिता विश्रवा ऋषि ने की थी. इतना हीं नहीं, कहा जाता है कि भगवान दूधेश्वर नाथ के पूजन अर्चन से ही रावण को सोने की लंका प्राप्त हुई थी.
शिवाजी ने कराया था मंदिर का जिर्णोद्वार: महंत नारायण गिरी ने आगे बताया, पहले यहां टीला हुआ करता था, जहां निकटवर्ती गांव की गाय चरने के लिए आती थीं. टीले पर पहुंचते ही गायों के थनों से स्वतः ही दूध निकलने लगता था. इसकी जानकारी मिलने पर जब टीले की खुदाई की गई तो दिव्य शिवलिंग निकलने पर यहां पर मंदिर का निर्माण हुआ, जो आज सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर नाम से प्रसिद्ध है. मंदिर में छत्रपति शिवाजी ने भी आकर पूजा अर्चना की थी. उन्होंने करीब 400 वर्ष पूर्व मंदिर का जीर्णोद्वार कराया था.