काशीपुर: बाजारों में बिजली की झालरों और इलेक्ट्रॉनिक सामनों की व्यापकता के चलते हाथ की पारंपरिक कारीगरी अब दम तोड़ने पर मजबूर है. प्लास्टिक के मकड़ जाल में अब मिट्टी के सामान उलझ से गए हैं. यही वजह है कि आज कुम्हार यानी मिट्टी के कारीगरों को दो जून की रोटी की जुगत करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है. काशीपुर में भी दीवाली आते ही मिट्टी के कारीगर खास उम्मीद लगाकर बैठे हैं, लेकिन मिट्टी के दीयों और बर्तनों की बिक्री कम होने से उनके माथे पर अलग ही सिकन देखने को मिल रही है.
बता दें कि दीपों का पर्व दीपावली आ गया है. ऐसे में मिट्टी के कारीगर अपनी मेहनत को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं. बावजूद इसके वो संघर्ष करते नजर आ रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण बाजार में बिजली की झालरों के साथ इलेक्ट्रॉनिक चीजों का आना है. काशीपुर में घनी आबादी से करीब 2 किलोमीटर दूर दक्ष प्रजापति चौक पर गरीब मिट्टी के कारीगरों के आशियाने हैं. यहां ये मिट्टी के कारीगर जी तोड़ मेहनत कर दीये आदि तैयार कर बेच रहे हैं.
कुम्हारों की चाक की रफ्तार हुई धीमी:अतीत से ही लोग दीपावली पर घरों की सजावट करते आ रहे हैं. इसमें खासकर हाथ की बनी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता रहा है. लेकिन आधुनिकता की वजह से इन वस्तुओं का क्रेज लगातार घटता जा रहा है. दीये और मिट्टी के अन्य सामानों की ब्रिकी से ही कुम्हारों के घर रोशन होते हैं. मगर बाजारों में बिजली की झालरों, बिजली के दीयों और चाइनीज झालरों ने मिट्टी कारीगरों की चाक की रफ्तार को उलझा दिया है.