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प्रकाश पर्व में भी 'अंधेरे' में कुम्हारों की जिंदगी, दो जून की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे मिट्टी के कारीगर

आधुनिकता की दौड़ में दम तोड़ रहा पारंपरिक रोजगार, दीवाली पर मिट्टी के कारीगरों को रहती है खास आस, दीयों-बर्तनों की हो रही कम बिक्री

Clay Artist Struggle
मिट्टी के कारीगरों की आस (फोटो- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 3 hours ago

Updated : 1 hours ago

काशीपुर: बाजारों में बिजली की झालरों और इलेक्ट्रॉनिक सामनों की व्यापकता के चलते हाथ की पारंपरिक कारीगरी अब दम तोड़ने पर मजबूर है. प्लास्टिक के मकड़ जाल में अब मिट्टी के सामान उलझ से गए हैं. यही वजह है कि आज कुम्हार यानी मिट्टी के कारीगरों को दो जून की रोटी की जुगत करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है. काशीपुर में भी दीवाली आते ही मिट्टी के कारीगर खास उम्मीद लगाकर बैठे हैं, लेकिन मिट्टी के दीयों और बर्तनों की बिक्री कम होने से उनके माथे पर अलग ही सिकन देखने को मिल रही है.

बता दें कि दीपों का पर्व दीपावली आ गया है. ऐसे में मिट्टी के कारीगर अपनी मेहनत को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं. बावजूद इसके वो संघर्ष करते नजर आ रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण बाजार में बिजली की झालरों के साथ इलेक्ट्रॉनिक चीजों का आना है. काशीपुर में घनी आबादी से करीब 2 किलोमीटर दूर दक्ष प्रजापति चौक पर गरीब मिट्टी के कारीगरों के आशियाने हैं. यहां ये मिट्टी के कारीगर जी तोड़ मेहनत कर दीये आदि तैयार कर बेच रहे हैं.

मिट्टी के कारीगरों का संघर्ष (वीडियो- ETV Bharat)

कुम्हारों की चाक की रफ्तार हुई धीमी:अतीत से ही लोग दीपावली पर घरों की सजावट करते आ रहे हैं. इसमें खासकर हाथ की बनी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता रहा है. लेकिन आधुनिकता की वजह से इन वस्तुओं का क्रेज लगातार घटता जा रहा है. दीये और मिट्टी के अन्य सामानों की ब्रिकी से ही कुम्हारों के घर रोशन होते हैं. मगर बाजारों में बिजली की झालरों, बिजली के दीयों और चाइनीज झालरों ने मिट्टी कारीगरों की चाक की रफ्तार को उलझा दिया है.

मिट्टी के कारीगर (फोटो- ETV Bharat)

3 महीने पहले से ही शुरू कर देते हैं काम: साल में एक बार ही दीपावली का त्यौहार आता है. इस त्यौहार के समय ही मिट्टी के दीये, पुरवे, हठली, करवे आदि की बिक्री से ही इन मिट्टी के कारीगरों के परिवार की आस बंधी रहती है. मिट्टी के कारीगर आदेश प्रजापति का कहना है कि दीपावली पर दीये और मिट्टी के सामान बनाने की तैयारी 3 महीने पहले शुरू कर देते हैं. वे छोटे चिराग, बड़े चिराग, हठली, दीये पुरवे आदि तैयार करते हैं.

चाक पर तैयार होता मिट्टी का उत्पाद (फोटो- ETV Bharat)

मिट्टी के दीयों को लेकर आभूषणों की तरह मोलभाव करते हैं लोग: उन्होंने बताया कि इस साल बिक्री काफी कम है. लोग आभूषणों की तरह मोलभाव कर रहे हैं. वहीं, मिट्टी के कारीगर महिपाल का कहना है कि बिजली की झालरों और फैंसी दीयों आदि ने मिट्टी के दीयों की बिक्री पर काफी असर डाला है.

मिट्टी से तैयार सामान (फोटो- ETV Bharat)

अपनी 3 महीने की मेहनत और दिन रात के परिश्रम के बाद जब वो बाजार में अपने हाथ से बनाए उत्पाद लेकर जाते हैं तो ग्राहक उनकी मेहनत को नजरअंदाज कर इलेक्ट्रॉनिक दीयों की तरफ अपना रुख करते. इससे उनके बनाए दीये और अन्य सामान धरे के धरे रह जाते हैं.

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