नर्मदापुरम: पेरिस ओलंपिक पदक विजेता भारतीय हॉकी टीम के सदस्य विवेक सागर प्रसाद शनिवार को अपने घर इटारसी पहुंचे. जहां पर विवेक का भव्य स्वागत किया गया. जिला हॉकी संघ द्वारा उनका भव्य रोड रोड शो निकाला गया. शहर के ओवर ब्रिज से रोड से शुरू हुआ जो शहर के मुख्य मार्ग से होते हुए जिला हॉकी संघ कार्यालय पहुंचकर समाप्त हुआ. अनेक संगठनों द्वारा उनका भव्य स्वागत किया गया. इस अवसर पर इटारसी के छोटे से बड़े खिलाड़ियों ने विवेक सागर का स्वागत किया. इस दौरान विवेक सागर ने मीडिया से भी बात की.
'देश में टैलेंट बहुत है मगर पहचानने वालों की कमी है'
मीडिया से चर्चा करने के दौरान विवेक वरिष्ठ हॉकी खिलाड़ी और अपने गुरु अशोक कुमार का नाम लेना नहीं भूले. उन्होंने अपने इस मुकाम का श्रेय अशोक कुमार को दिया. उन्होंने कहा,''अशोक सर ने हमारे टैलेंट को पहचाना और आज मैं यहां हूं. उन्होंने जब मुझे पहली बार एक टूर्नामेंट में खेलते हुए देखा था तो उस समय मैं नेशनल भी नहीं खेला था. अगर वह उस टूर्नामेंट में बतौर चीफ गेस्ट नहीं आए होते तो मैं भी आज यहां नहीं होता. इसी तरह कई खिलाड़ी ऐसे हैं कि उनके अंदर टैलेंट बहुत है मगर उनके टैलेंट को पहचानने वाला कोई नहीं है. हमारे देश में बहुत सी प्रतिभाएं ऐसी हैं जिन्हें मौका नहीं मिल पाता.''
विवेक सागर के हॉकी के जीवन के बारे में
आज विवेक सागर दो बार ओलंपिक विजेता हॉकी टीम का हिस्सा हैं. लेकिन विवेक को इसके लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा. यह सफर इतना भी आसान नहीं था. आइए एक फौरी नजर ने इस चैंपियन खिलाड़ी की हॉकी की दुनिया में झांक कर देखते हैं कि कैसा रहा विवेक का हॉकी का सफर.
बचपन में हॉकी में नहीं थी रुचि
विवेक सागर का जन्म 25 फरवरी 2000 को मध्य प्रदेश के इटारसी के शिवनगर चंदन गांव में हुआ था. बचपन में विवेक को शतरंज, बैडमिंटन और क्रिकेट खेलना पसंद था. हॉकी में उन्हें कुछ खास रुचि नहीं थी. विवेक का हॉकी से पहला सामना उनकी 10 साल की उम्र में हुआ था. दरअसल, विवेक के स्कूल में हॉकी खेलने वालों को उसकी ट्रेनिंग दी जा रही थी. सागर की हॉकी में विशेष रुचि नहीं थी लेकिन फिर भी वो इस ट्रेनिंग में शामिल हो गए. बस वहीं से उनके जीवन में हॉकी का आगमन हुआ और ऐसा आगमन हुआ कि आगे चलकर विवेक ने मेडलों की झड़ी लगा दी.
स्थानीय टूर्नामेंट में अशोक सागर की पड़ी नजर
हॉकी का जादू जल्द ही विवेक के सिर चढ़ कर बोलने लगा. वे बैडमिंटन और शतरंज खेलने में समय देने के बजाय अपना समय हॉकी को देने लगे. अपने घर के पास एक छोटी सी जगह पर अभ्यास किया करते थे. देखते ही देखते विवके स्कूल लेवल के ऊपर के खिलाड़ी बन गए. साल 2013 में महाराष्ट्र के अकोला में एक स्थानीय सीनियर लेवल के टूर्नामेंट में खेलते हुए सागर पर हॉकी के महान खिलाड़ी अशोक कुमार की नजर पड़ी, फिर क्या था उनको विवेक का खेल पसंद आ गया और उन्होंने इस हीरे को तराशने का सोच लिया. टूर्नामेंट की समाप्ति के बाद विवेक को भोपाल में अशोक कुमार की एमपी हॉकी अकादमी में प्लेसमेंट की पेशकश मिली. यह प्रतिभाशाली मिडफिल्डर ऐसे ही मौके की तलाश में था. उन्होंने इसको हाथों-हाथ लिया और अशोक कुमार की एकेडमी में अपनी प्रतिभा को निखारने में लग गए.