भोपाल: सोचिए आपके माउस की एक क्लिक पर आपके सामने हिंदी की खड़ी बोली के प्रवर्तक भारतेंदु हरिश्चंद्र की पहली पत्रिका आ जाए. आप महात्मा गांधी की हिंद स्वराज को पढ़ रहे हों. आपके सामने 30 जनवरी का वो अखबार हो, जिसमें बापू के निधन की पहली खबर प्रकाशित हुई थी. हिंदी की पहली शोध पत्रिका काशी नागिरी प्रचारिणी को आप देख पाए.
माखनलाल चतुर्वेदी का कर्मवीर पढ़ सकें. बेहद करीब से रियासतों के दौर की हकीकत जानने होल्कर स्टेट धार स्टेट बड़वानी स्टेट ग्वालियर स्टेट का गजट देख पाएं. मध्यप्रदेश के माधव राव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय में रखी देश की ये दुर्लभ सामग्री अब डिजिटलीकरण के बाद अब कम्प्यूटर की एक क्लिक पर उपलब्ध है.
अब तक संग्रहालय में रखी गई ऐसी दुर्लभ सामग्री के 27 लाख 3 हजार 239 पन्ने डिजीटाइज कराए गए हैं. संग्रहालय में पत्र पत्रिकाओं के पहले अंक के साथ समाचार पत्र के के महत्वपूर्ण अंक भी इस प्रोसेस का हिस्सा हैं. सप्रे संग्रहालय के संस्थापक विजय दत्त श्रीधर ने बताया कि "अगले चरण में इस डिजिटाइजेसन के बाद हम कुछ शुल्क के साथ ये सामग्री ऑनलाइन सबको उपलब्ध करवाएंगे."
अब ये सामग्री एक क्लिक पर हैं उपलब्ध
सप्रे संग्रहालय के संस्थापक विजय दत्त श्रीधर ने बताया कि "राजा राम मोहन राय भारतेंदु हरिश्चंद्र, बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, माखनलाल चतुर्वेदी, अज्ञेय रघुवीर सहा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला गणेश शंकर विद्यार्थी, जैसी हस्तियों का पूरा रचना कर्म जो है, वो डिजीटाइज हो चुका है. इसके अलावा दिनमान हिंदुस्तान धर्मयुग रविवार कल्पना कल्याण इलेस्ट्रेड वीकली वीर अर्जुन, हिंद स्वराज यंग इंडिया नजवीजन इनकी दुर्लभतम प्रतियां अब डिजिटल रूप में उपलब्ध हैं."
श्रीधर बताते हैं कि "हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि इन्हें जो पीढ़ियां अभी जन्म लेने वाली हैं उन तक पहुंचाने कैसे सहेजा जाए. ये उनकी धरोहर है. 4 पैसे 5 पैसे की ये किताबें या अखबार इनका एक पन्ना भी अगर आहत हुआ तो उसका करोड़ों में भी मिल पाना संभव नहीं है. लिहाजा हमने फैसला किया कि अब इन्हें डिजिटाइज करवाया जाए. शोध करने वाले छात्रों के लिए ये एक बड़ी सुविधा हो गई. खास बात ये है कि देश विदेश के शोधार्थी इसका लाभ ले सकेंगे."
दीमक और नमी से जैसे तैसे संभाले दस्तावेज
श्रीधर बताते है "सबसे बड़ी चुनौती ये है कि ये कागज साल दर साल वैसा ही बना रहे. अखबार का कागज किताबों से ज्यादा हल्का होता है, लिहाजा उसकी संभाल उतनी बड़ी चुनौती होती है. कागज पहले पीला पड़ता है और फिर इतना कमजोर हो जाता है कि पलटने भर में फट जाए. हमारे पास न पैसा है न संसाधन तो लेमिनेशन एक विकल्प है लेकिन वो भी बहुत कारगर नहीं है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने हमें इस मुश्किल में रास्ता दिखाया और उन्होंने सीएसआर फंड से हमें करीब 35 लाख 83 हजार 954 रुपए सीएसआर फंड से दिए. जिस सहयोग की बदौलत हम 27 लाख से ज्यादा पन्नों को डिजिटाइज करा पाए."
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संग्रहालय में है 5 करोड़ पन्ने की सामग्री
सप्रे संग्रहालय में करीब 5 करोड़ पन्नों की दुर्लभ सामग्री है. जिसमें सबसे उल्लेखनीय वो अखबार हैं. जिनमें भारतीय के राजनीतिक और सामाजिक इतिहास को जीवंत रूप में देखा जा सकता है. जब जो जैसा घटा उस रूप में दर्ज हुआ है उन अखबारो में. अखबार उस दिन की डायरी की तरह होते हैं जब आप उसे पढ़ते हैं तो उसी समय में खड़े हो जाते हैं. श्रीधर बताते हैं "हमारे पास देश के नामचीन लेखकों की 3 हजार से ज्यादा पांडुलिपि हैं. इनके अलावा एक हजार पोथियां हैं. एक हजार से ज्यादा चिट्ठियां है, जिनमें राहुल सांकृत्यायन की चिट्ठी भी है.