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दादा फौज में, कारगिल युद्ध में पिता पाक को चटा चुके धूल, अब बेटा बना आर्मी अधिकारी - DEV PANGHAL BECOMES ARMY OFFICER

पंचकूला का बेटा देव पंघाल आर्मी अफसर बन गया है. देव के दादा फौजी में थे और पिता कारगिल युद्ध में शामिल थे.

kargil war memories
कारगिल युद्ध की यादें (ETV Bharat)

By ETV Bharat Haryana Team

Published : Dec 22, 2024, 12:29 PM IST

Updated : Dec 22, 2024, 1:16 PM IST

पंचकूला:कारगिल युद्ध की सिल्वर जुबली इस साल मनाई जा चुकी है. युद्ध में कई वीरों ने न सिर्फ अपने प्राणों की आहूति दी बल्कि दुश्मनों को भी धूल चटाया था. ऐसे वीरों में कारगिल युद्ध के हीरो महावीर चक्र विजेता कर्नल बलवान सिंह भी शामिल थे. अब उनके बेटे देव पंघाल भी पिता की तरह सेना में अफसर बन गए हैं. इंडियन मिलिट्री एकेडमी देहरादून में हुए पासिंग आउट परेड में हरियाणा के देव पंघाल आर्मी ऑफिसर बन गए हैं. उन्होंने ऑलिव ग्रीम यूनिफॉर्म पहना है.

ईटीवी भारत ने भी कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस का परिचय देकर सबसे ऊंची छोटी "टाइगर हिल" को फतह करने वाले परमवीर चक्र और महावीर चक्र प्राप्त करने वाले कैप्टन योगेन्द्र सिंह यादव और कर्नल बलवान सिंह से बातचीत की.

कारगिल युद्ध में पिता ने पाक को चटाई धूल (ETV Bharat)

दादा, पिता और बेटा बने फौजी अधिकारी:महावीर चक्र विजेता कर्नल बलवान सिंह ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि उनके पिता भी जाट रेजिमेंट की दूसरी बटालियन में काम करते थे. वो साल 1962, साल 1965 और साल 1971 के युद्ध में शामिल रहे. इस कारण पिता ने ग्लैंट्री अवॉर्ड भी हासिल किया. उन्होंने सैनिक स्कूल कुंजपुरा से शिक्षा प्राप्त की थी. इसके बाद आर्म्ड फोर्स जॉइन करना होता है.

इसके बाद बलवान सिंह ने ऑफिसर ट्रेनिंग अकादमी, चेन्नई से प्रशिक्षण हासिल कर 18 ग्रेनेडियर में कमिशन प्राप्त किया. इस बटालियन को कमांड करने का मौका भी मिला. वह गौरवान्वित महसूस करते हैं, जो उन्हें कारगिल युद्ध में दो चोटियों "तोलोलिंग और टाइगर हिल" के नेतृत्व करने का मौका मिला. कारगिल युद्ध में टाइगर हिल पर कब्जा करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण था.

अपने दादा और उनसे प्रेरणा लेकर हाल ही में मेरा बेटा देव पंघाल भी ओलिव ग्रीन यूनिफॉर्म पहनकर फौजी अधिकारी बना है. बेटे देव पंघाल से उम्मीद रखते हैं कि वह अच्छी सेवाएं दे और जब कभी राष्ट्र की सुरक्षा पर संकट की स्थिति आती दिखे तो प्राण न्यौछावर करने में कभी हिचकिचाए नहीं. -कर्नल बलवान सिंह

पंचकूला भवन विद्यालय स्कूल से ली शिक्षा:कर्नल बलवान सिंह ने कहा कि इंडियन मिलिट्री अकादमी देहरादून से पासिंग आउट परेड में अपने पिता और दादा की विरासत को आगे बढ़ाते हुए देव पंघाल ने ऑलिव ग्रीन यूनिफॉर्म पहनी. देव पंघाल की शुरूआती पढ़ाई पंचकूला के सेक्टर 15 स्थित भवन विद्यालय से हुई है. उन्होंने साल 2020 में इंटरमीडिएट पास करने के बाद एनडीए की परीक्षा दी और सफल रहे. उनकी बहन इशिका नीट यूजी की तैयारी कर रही हैं, जो सेना में डॉक्टर बनना चाहती हैं.

टाइगर हिल पर कब्जे के बाद सीजफायर शुरू: कर्नल बलवान सिंह ने बताया कि जब उनकी यूनिट ने टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया तो उसके बाद सीजफायर शुरू हो गया. दुश्मन देश ने विड्रॉल शुरू कर दिया. इससे पाकिस्तानी फौज का मनोबल टूट गया. कर्नल ने युवाओं को दिए संदेश में कहा कि हर किसी को राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहिए. भले ही किसी भी क्षेत्र या माध्यम से हो. साथ ही अधिक संख्या में आर्म्ड फोर्स में शामिल होने की बात कही, ताकि जिंदगी में अनुशासन बना रहे. कर्नल बलवान सिंह ने कहा कि देशभक्ति की मंशा के साथ देश की सीमाओं पर मातृभूमि की सेवा के लिए युवा जो कुछ करना चाहते हैं, उसका सबसे सही माध्यम फौज ही है.

युवावस्था में सीने पर परमवीर चक्र:कारगिल युद्ध 1999 में 18 ग्रेनेडियर यूनिट में शामिल ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव को 4 जुलाई 1999 को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. 19 साल की उम्र में परमवीर चक्र सम्मान पाने वाले योगेन्द्र सिंह यादव सबसे कम उम्र के सैनिक हैं. कारगिल युद्ध में उनके अदम्य साहस को भारतीय फौज और हर देशवासी सदैव याद रखेगा.

सीने पर लगी 17 गोलियां, फिर भी दी सूचनाएं:18 ग्रेनेडियर यूनिट में शामिल 19 साल के योगेन्द्र सिंह यादव अधिकारियों के आदेश पर टाइगर हिल पर कब्जा करने के लिए पूरे जोश में थे. हालांकि इससे पहले उन्हें ऐसा कोई अनुभव नहीं था, क्योंकि कारगिल युद्ध से पहले उनके सेवा काल को महज ढाई वर्ष ही बीते थे. इनमें भी एक वर्ष ट्रेनिंग का ही शामिल था, लेकिन तभी कारगिल का युद्ध छिड़ गया और उन्हें टाइगर हिल पर कब्जे का आदेश प्राप्त हुआ. टाइगर हिल पर कब्जे के प्रयास में देश ने अपने कई शूरवीर सपूतों को खो दिया, लेकिन इससे ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव समेत अन्य सैनिकों का जज्बा और जुनून कम नहीं हुआ. इस ऑपरेशन में योगेंद्र सिंह यादव का शरीर भी 17 गोलियां (बुलेट) लगने से छलनी हो गया. उन्हें फर्स्ट-एड देते हुए कुछ साथी सैनिक भी शहीद हो गए.

छलनी हालत में महत्वपूर्ण सूचनाएं पहुंचाई:17 गोलियों से छलनी हुए योगेन्द्र सिंह यादव अपने टूटे हाथ को पीठ पर गिराकर महत्वपूर्ण सूचनाएं देने के लिए टाइगर हिल चोटी से लुढ़कते हुए नीचे भारतीय सैनिकों के पास पहुंचे. यहां उन्होंने टाइगर हिल की सभी गतिविधियों और सैनिकों के बारे मे अधिकारियों को सूचना दिए. इसके बाद टाइगर हिल पर फतह करने का ऑपरेशन दोबारा शुरू हुआ और अंततः भारतीय फौज ने इस महत्वपूर्ण चोटी "टाइगर हिल" पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर जीत का बिगुल बजाया. यहां गौर करने वाली बात यह है कि 18 ग्रेनेडियर्स यूनिट ने ही कारगिल युद्ध की शुरूआत की और ``टाइगर हिल" पर जीत के साथ युद्ध का अंत भी किया.

कैप्टन विक्रम बत्रा:कैप्टन विक्रम बत्रा को 15 अगस्त साल 1999 को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. कैप्टन विक्रम बत्रा को 'शेरशाह' के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने चोटिल होने के बावजूद अपनी टीम का नेतृत्व करते हुए पॉइंट 4875 पर कब्जा किया. इस दौरान उनका नारा 'ये दिल मांगे मोर!' खूब चर्चा में रहा.

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Last Updated : Dec 22, 2024, 1:16 PM IST

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