करनाल: हरियाणा समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में इस समय गेहूं की फसल की बिजाई किसानों द्वारा की हुई है. लेकिन किसानों द्वारा गेहूं की फसल में पहले पानी लगाने के बाद उनके सामने खरपतवार की समस्या खड़ी हो जाती है. यह खरपतवार गेहूं के उत्पादन पर काफी प्रभाव डालती है. इसलिए इसका नियंत्रण काफी जरुरी होता है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर समय रहते गेहूं में खरपतवार का नियंत्रण न किया जाए, तो 40% या जिस खेत में खरपतवार ज्यादा है. उसमें इससे भी ज्यादा उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है. ऐसे में इसका नियंत्रण काफी जरूरी हो जाता है. तो आईए जानते हैं कि गेहूं में कौन-कौन से खरपतवार होते हैं और उनका नियंत्रण कैसे करें.
खरपतवार के प्रकार: डॉ. करमचंद जिला कृषि उपनिदेशक कुरुक्षेत्र ने बताया कि इस समय किसानों की फसल काफी अच्छी खड़ी है. लेकिन उनके सामने खरपतवार की समस्या बनी हुई है. गेहूं में मुख्यतः दो प्रकार के खरपतवार होते हैं. जिसमें संकरी पत्ती खरपतवार और चौड़ी पत्ती खरपतवार शामिल है. दोनों का हिट नियंत्रण काफी जरूरी होता है. लेकिन इसमें कुछ ऐसे खरपतवार होते हैं, जो फसल की पैदावार पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालते हैं. इसमें संकरी पट्टी वाले सबसे ज्यादा प्रभाव गेहूं की फसल में डालते हैं.
संकरी पत्ती वाले खरपतवार पर नियंत्रण: गेहूं की फसल में संकरी पत्ती वाले खरपतवार सबसे ज्यादा नुकसानदायक गेहूं के लिए माने जाते हैं. इसमें मुख्य खरपतवार मंडूसी होती है. मंडूसी का पौधा गेहूं के पौधे से मिलता जुलता होता है. लेकिन इस कारण गेहूं के पौधे से हल्का हरा होता है. यही इसकी पहचान होती है. मंडूसी गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचाने वाला एक खरपतवार है.
मंडूसी को प्रत्येक क्षेत्र और राज्य में अलग-अलग नाम से जाना जाता है. हरियाणा के ज्यादातर एरिया में इसको मंडूसी कहा जाता है, तो इसके साथ-साथ इसे गुल्ली डंडा, गेहूं का मामा, और कनकी भी कहा जाता है. यह भारत में रबी फसलों का सबसे खतरनाक खरपतवार है. मंडूसी से गेहूं की पैदावार पर 40% तक या इससे ज्यादा भी असर पड़ सकता है. इस पर नियंत्रण पाने के लिए जब यह 35 दिन बाद दो से चार पत्ती में खेत में हो जाए इस पर क्लोडिनाफॉप नामक दवाई 160 ग्राम प्रति एकड़ में लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें.
चौड़ी पत्ती के गेहूं में खरपतवार पर नियंत्रण: उन्होंने बताया कि संकरी पट्टी के साथ-साथ गेहूं की फसल में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार भी होते हैं. जिनका नियंत्रित करना भी जरूरी होता है. यह भी फसल के उत्पादन पर काफी प्रभाव डालते हैं. हरियाणा में गेहूं की फसल में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों में मालवा, जंगली पालक, हिरनखुरी ये शामिल हैं. इनका नियंत्रण करने के लिए सल्फोसल्फ्यूरॉन दवाई 13 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें.
कुछ किसान गेहूं की बिजाई के तुरंत बाद भी स्प्रे करते हैं, जो खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए होते हैं. लेकिन कई बार ऐसी स्थिति बनती है कि तापमान के या मौसम के उतार-चढ़ाव के चलते उनका प्रभाव कम हो जाता है. जिसके चलते खेत में खरपतवार उग जाते हैं. बिजाई के तुरंत बाद पेंडीमेथालिन दवाई का स्प्रे किया जाता है. लेकिन उसका भी काफी अच्छा रिजल्ट देखने को मिलता है. अगर फिर भी समस्या है तो किसान ऊपर बताई गई दवाइयां का इस्तेमाल करके खरपतवार पर नियंत्रण कर सकते हैं.
दोनों खरपतवार पर करें दवा का इस्तेमाल: उन्होंने बताया कि किसानों की गेहूं की फसल में संकरी पत्ती और चौड़ी पत्ती दोनों अलग-अलग खरपतवार देखने को मिलते हैं. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि संकरी पत्ती और चौड़ी पट्टी दोनों खरपतवार किसानों की गेहूं की फसल में उग जाते हैं. उसके लिए सल्फ़ोसल्फ़्यूरॉन और मेटसल्फ़्यूरॉन दोनों दवाई का इस्तेमाल गेहूं में संकरी और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है. इन दोनों दवाइयां का एक एकड़ में 16 ग्राम के हिसाब से स्प्रे करें.
खरपतवार के लिए किसान के पास स्प्रे ही एकमात्र विकल्प होता है. जिसके कारण वह खरपतवार पर नियंत्रण पा सकते हैं. लेकिन कई बार किसान स्प्रे करने के दौरान कई गलतियां कर देते हैं. जिससे खरपतवार नियंत्रण नहीं हो पता. इसलिए स्प्रे दोपहर के बाद और चौड़ी नोजल वाले पंप से ही स्प्रे करें और ध्यान रहे की स्प्रे करने वाला व्यक्ति पहले भी स्प्रे कर चुका हूं. खेत में स्प्रे करने के दौरान गैप रहा जाता है जिससे खरपतवार नियंत्रण नहीं हो पता.
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