नई दिल्ली:शास्त्रीय संगीत और पॉप के संगम की बात करें तो एक नाम बिना किसी संदेह के सामने आता है: पद्मश्री शुभा मुद्गल 90 के दशक में उन्होंने संगीत की न केवल धाराओं को बदल दिया, बल्कि यह भी दिखा दिया कि कैसे शास्त्रीय संगीत को पॉप के साथ सफलतापूर्वक मिलाया जा सकता है. शुभा की गायकी में एक विशेषता है जो उनके गाए जाने वाले गानों को न केवल सुनने में मधुर बनाती है, बल्कि उनकी रचनाओं में एक गहरी संवेदनशीलता और भावनात्मक गहराई भी होती है.
शुभा मुद्गल के कुछ मशहूर गीत
- अब के सावन ऐसे बरसे, बह जाए रंग मेरी चुनर से...
- अर ररा आयो रे म्हारो ढोलना...
- पिया तोरा कैसा अभिमान
- अली मोरे अंगना दरस दिखा
यह गाने श्रोताओं के दिलों में बसे हुए हैं. इसके अलावा, शुभा ने टेलीविजन के लोकप्रिय धारावाहिक 'दीया और बाती हम' के टाइटल ट्रैक को भी अपनी मधुर आवाज दी है, जिससे उन्होंने एक नया आयाम जोड़ा.
साल 2000 में पद्मश्री से सम्मानित
शुभा मुद्गल का म्यूजिक करियर कई पुरस्कारों और सम्मान से भरा हुआ है. उन्हें 2000 में भारत सरकार से पद्मश्री मिला, और इसके अलावा 34वें शिकागो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में संगीत में विशेष उपलब्धि के लिए गोल्ड प्लेक पुरस्कार और 2015 में उत्तर प्रदेश सरकार से यश भारती सम्मान प्राप्त हुआ.
'ETV भारत' से एक विशेष बातचीत में शुभा ने शास्त्रीय संगीत और पॉप के संबंध में अपने विचार साझा किए. उन्होंने कहा कि उन्हें कभी भी नहीं लगा कि वे पॉप को शास्त्रीय संगीत के साथ गाने के बारे में सोचेंगी, लेकिन जब मौका आया, तो उन्होंने उसे हाथ से जाने नहीं दिया और शास्त्रीय संगीत को पॉप के साथ प्रस्तुत करने का निर्णय लिया. इसके पीछे का उनका मकसद अनुभवों को श्रोताओं के सामने रखना था.