मेरठ: यूं तो आपने बड़े-बड़े दानवीरों के बारे में सुना होगा, लेकिन आज हम जिन महादानियों के बारे में बात करने जा रहे हैं वह अपने विशेष कर्तव्य के चलते असल जीवन में महादानी हैं और किसी नायक से कम नहीं हैं. हम बात कर रहे हैं मेरठ के रहने वाले सुनील प्रताप सिंह और राहुल वर्मा के बारे में.
सुनील प्रताप सिंह मेरठ की ग्रामीण पृष्ठ भूमि से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन उनके रगों में जो खून बहता है उसे वह लगातार दान करते रहते हैं. वह ऐसे शख्स हैं जिन्होंने अब तक 90 बार ब्लड डोनेट किया है. उनका मानना है कि कई बार ऐसी दुर्घटना हो जाती हैं जब किसी की भी जान पर बन आती है.
राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस पर संवाददाता की खास रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat) ऐसे में जब किसी को चोट लगती है तो स्वाभाविक है कि रक्तश्राव भी होना लाजिमी है. ऐसे में वह हर मुमकिन मदद ऐसे व्यक्ति की करने की इच्छा रखते हैं औऱ आवश्यकता लगती है तो औऱ लोगों को भी मदद के लिए बुलाते हैं.
सुनील प्रताप सिंह बताते हैं कि ईश्वर की कृपा है कि वह हर तीसरे माह रक्तदान करते हैं. उनके शरीर में गजब की फुर्ती बनी रहती है. कई बार कुछ लोग भ्रम उतपन्न करते हैं कि ब्लड डोनेट करने से कमजोरी आ जाती है. ब्लड डोनेट नहीं करना चाहिए, लेकिन ये सब बाते निरर्थक हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें बेसब्री से इंतजार रहता है कि कब 90 दिन रक्तदान किए हुए हों और वह पुनः ब्लड डोनेट करें.
रक्तदान करते मेरठ के युवा. (Photo Credit; ETV Bharat) सुनील प्रताप बताते हैं कि अलग-अलग ग्रुप उन्होंने बनाए हैं. सैकड़ों लोगों को प्रेरित करके रक्तदान करने के लिए आगे लाए हैं. वह जहां जाते हैं उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. इंसान का पहला धर्म यही होना चाहिए कि अगर हम किसी भी तरह से किसी की जान बचाने के लायक हैं तो हमें बढ़-चढ़कर आगे आना चाहिए. वह कहते हैं कि उनकी उम्र का नंबर चाहे जो हो लेकिन उनमें खूब फुर्ती है.
राहुल वर्मा मेरठ के बक्सर के रहने वाले हैं. वह अब तक 59 बार रक्तदान कर चुके हैं. वह बताते हैं कि उन्हें ऐसा करते रहना अच्छा लगता है. उन्हें रक्तदान करने से किसी भी तरह की कोई कमजोरी महसूस नहीं होती है. जब भी किसी प्रोग्राम में वह जाते हैं, तो लोगों को जागरूक करते हैं कि सभी रक्तदान करें.
वह चाहते हैं कि लोग आगे आएं ताकि जिन लोगों को समय पर ब्लड नहीं मिल पाता है, उन लोगों के लिए ब्लड की व्यवस्था हो सके.
राहुल बताते हैं कि वह एक बार कहीं जा रहे थे. किसी बच्चे का एक्सीडेंट हुआ और उसका रक्त काफी बह गया था. उसके माता पिता को अस्पताल में ब्लड नहीं मिला. बस उस दिन वहां पहुंचकर उन्होंने रक्तदान किया और अपने एक दोस्त से भी ब्लड डोनेट कराया. उस बच्चे की जान बच गई जिससे काफी आत्मसंतोष मिला. उसके बाद से आज तक लगभग हर तीन महीने के बाद रक्तदान करते ही आ रहे हैं.
वह बताते हैं कि कभी भी किसी रक्तदान शिविर में जाकर फोटो खिंचवाने के लिए रक्तदान उन्होंने नहीं किया. बल्कि जिला अस्पताल के ब्लड बैंक में जाकर ही रक्तदान करते हैं. इसके अलावा वाट्सएप ग्रुप बनाए हुए हैं. जिन लोगों को वह मोटिवेट करते हैं उनका नंबर उस ग्रुप में शामिल कर देते हैं. इससे एक तो सभी प्रेरित होते हैं. साथ ही अगर कहीं किसी को भी ब्लड की आवश्यकता होती है तो उस ग्रुप के सदस्य तत्काल जरूरतमंद के सम्पर्क में आ जाते हैं.
ये भी पढ़ेंःयूपी में पलटते-पलटते बची केरला एक्सप्रेस; चालक ने टूटी पटरी पर दौड़ा दी ट्रेन, रेल कर्मचारी दिखाते रहे लाल झंडी