अजमेर.मोहर्रम के अवसर पर अजमेर में 800 बरस पुरानी हाईदौस की परंपरा को अंदरकोटियान बिरादरी के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आए हैं. इस खास परम्परा का कनेक्शन पाकिस्तान से भी है. विभाजन के वक्त यहां से गए बिरादरी के लोग पाकिस्तान के हैदराबाद में खाता चौक में हाईदौस खेलते हैं. हजरत ईमाम हुसैन और उनके साथ शहीद हुए 72 लोगों की शहादत को याद को ताजा रखने के लिए बिरादरी के लोग हाईदौस खेलते है.
मोहर्रम के अवसर पर कई जगह ताजिए निकाले जाते हैं, लेकिन अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के समीप 800 बरस से अंदरकोटियान बिरादरी के लोग मोहर्रम के अवसर पर हाईदौस खेलने की परंपरा को जीवित रखें हुए है. दी सोसाइटी पंचायत अंदरकोटियान के सदर शमीर खान बताते हैं कि मोहर्रम की 9 तारीख यानी 16 जुलाई की रात को बिरादरी के लोग हाईदौस खेलते हैं. अगले दिन जौहर की नमाज के बाद 17 जुलाई को अंदरकोट क्षेत्र में ढाई दिन के झोपड़े के समीप हाईदौस खेला जाता है. हजरत ईमाम हुसैन और उनके साथ शहीद हुए 72 लोगों की याद में हाईदौस खेला जाता है. 800 बरस पहले बुजुर्गों ने हाई दौस की परंपरा की शुरूआत की थी. पीढ़ी दर पीढ़ी बिरादरी के लोग विरासत के तौर पर परंपरा को पूरी शिद्दत के साथ निभा रहे हैं.
परंपरा का पाकिस्तान से कनेक्शन :उन्होंने बताया कि मोहर्रम के अवसर पर हाईदौस देश में केवल अजमेर और पाकिस्तान के हैदराबाद के खाता चौक में खेला जाता है. सदर शामीर खान बताते हैं कि हाईदौस खेलने की परंपरा अजमेर से शुरू हुई थी. विभाजन के बाद बिरादरी के कुछ लोग पाकिस्तान जाकर बस गए. वहां उन लोगों ने हाईदौस खेलने की परंपरा को कायम रखा हुआ है.
डोले शरीफ की निकलती है सवारी : हाईदौस खेलने के साथ ही डोले शरीफ की सवारी निकाली जाती है. मोहर्रम की 9 तारीख की रात को ढाई दिन के झोपड़े से डोले शरीफ की सवारी शुरू होती है जो सीढ़ियों से होकर हताई चौक तक सवारी को लाया जाता है. उसके बाद हाईदौस खेला जाता है. उन्होंने बताया कि इमाम हुसैन की माता बीबी फातमा का यह डोला शरीफ होता है. बिरादरी के लोगों की ढोला शरीफ में गहरी आस्था है. सवारी के दौरान बिरादरी के लोग ढोला शरीफ की जियारत करते हैं और मन्नते मांगते हैं. बिरादरी के लोगों का अकीदा ( विश्वास ) है कि ढोला शरीफ की जियारत से उनकी हर जायज मन्नत पूरी होती है.
सदर शामीर खान बताते हैं कि अगले दिन जोहर की नमाज के बाद परंपरागत रूप से तोप चलाई जाती है. उसके बाद डोला शरीफ की सवारी की शुरुआत होती है. हताई चौक से त्रिपोलिया गेट तक ढोले शरीफ की सवारी पहुचती है. यहां से हाईदौस खेलने की भी शुरुआत होती है. आगे अलम ( झंडे ) रहता है और पीछे हाईदौस खेलते हुए सैकड़ों बिरादरी के लोग चलते हैं. डोले शरीफ की सवारी आम्बा बावड़ी तक जाती है जहां डोले शरीफ को सैराब ( ठंडा ) किया जाता है.