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82 साल की उम्र में भी जज्बा बरकरार, मिथिला पेंटिंग से 'पद्मश्री' बौआ देवी ने बनाई विशेष पहचान - Padmashree Baua Devi

Mithila Painting Artist: मधुबनी की रहने वाली पद्मश्री बौआ देवी ने 13 साल की उम्र से ही मिथिला पेंटिंग करना शुरू कर दिया था. वह पांचवीं कक्षा तक ही पढ़ी हैं और उनकी शादी मात्र 12 वर्ष की उम्र में हो गई थी. शादी के बाद भी उनकी कला साधना अनवरत जारी रही. आगे पढ़ें पूरी खबर.

Mithila Painting Artist
पद्मश्री बौआ देवी (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 7, 2024, 1:14 PM IST

पद्मश्री बौआ देवी (ETV Bharat)

पटना: मिथिला पेंटिंग को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल चुकी है. खास तौर पर महिला कलाकारों ने मिथिला पेंटिंग को जन कला बनाने में अहम भूमिका निभाई है. इसमें एक नाम बैआ देवी का है, जिन्होंने विदेश में भी मिथिला पेंटिंग को प्रचलित करने का काम किया है.

मिथिला पेंटिंग ने महिलाओं को किया सशक्त: मिथिला पेंटिंग पर महिलाओं का एक तरीके से एकाधिकार है. मिथिला इलाके में आज महिलाएं मिथिला पेंटिंग को व्यापक रूप दे चुकी हैं. आज की तारीख में मिथिला पेंटिंग की डिमांड विदेशों तक है, खासतौर पर साड़ी में की गई मिथिला पेंटिंग लोगों को खूब पसंद आती है और कई देशों में भी इसकी काफी डिमांड है.

पद्मश्री बौआ देवी (ETV Bharat)

12 देश की यात्रा कर चुकी है बौआ देवी: मधुबनी जिले के जितवारपुर गांव की रहने वाली बौआ देवी ने भी मिथिला पेंटिंग के जरिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई. बौआ देवी को भारत सरकार ने 2017 में पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा है. बोआ देवी 12 देश का भ्रमण कर चुकी हैं.

बौआ देवी 82 की उम्र भी हैं एक्टिव: बौआ देवी 82 साल की उम्र पूरी कर चुकी हैं इसके साथ ही आज भी उनका मिथिला पेंटिंग के प्रति आकर्षण बरकरार है. वो हर रोज 8 से 10 घंटे पेंटिंग करती हैं. 12 साल की उम्र में बौआ देवी का बाल विवाह हो गया था. साल 1984 में बौआ देवी को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और फिर 2017 में पदम श्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

मधुबनी की हैं बौआ देवी (ETV Bharat)

संगीत के जरिए मिलती है चित्र बनाने की प्रेरणा: बौआ देवी को कलाकृति बनाने की कल्पना गीत संगीत से आती है. पारंपरिक गीत के जरिए वह मिथिला पेंटिंग को बनाने का काम करती हैं. ढाई सौ से 300 पारंपरिक गीत बौआ देवी को आज भी याद है. बता दें कि मिथिला पेंटिंग प्राचीन लोक कला है, इसकी उत्पत्ति मिथिला इलाके में ही हुई है. पहले खास मौसमों पर मिथिला पेंटिंग दीवारों पर बनाई जाती थी लेकिन धीरे-धीरे यह कला कैनवास पर बनाए जाने लगा.

पहली पेंटिंग के मिले थे डेढ़ रुपये: खास बातचीत के दौरान बौआ देवी ने कहा कि पहले कलाकृति के उन्हें डेढ़ रुपये मिली थी और उसे पाकर बेहद खुश हुई थीं. बाद में 5 रुपये एक कलाकृति के मिलने लगे. पहले स्थिति ऐसी नहीं थी कि रंग के पैसे का भी जुगाड़ हो सके. तो वो खुद से हम कलर बनाकर पेंटिंग करती थी.

13 साल की उम्र से ही कर रही मिथिला पेंटिंग (ETV Bharat)

घर पर बनाती थी नेचुरल कलर: बौआ देवी ने कहा कि उनकी दादी मिथिला पेंटिंग बनती थी. उसके बाद उनकी भी मिथिला पेंटिंग में दिलचस्पी बढ़ी और उन्होंने भी बनना शुरू कर दिया. सिंदूर, फुल, पत्ता, गेहूं और बीट से वो नेचुरल कलर बनाने का काम करती थी. जिससे पेंटिंग बनाई जाती थी. वो दिन में घर का काम करके, रात में दिए की रोशनी में पूरी रात पेंटिंग बनाने का काम करती थी. उन्हें घर वालों का भी पूरा सहयोग मिला जिसके चलते आज इस मुकाम पर पहुंची हैं.

"मुझे सम्मान से ज्यादा इस बात की खुशी है कि यह कला गांव से निकलकर देश-दुनिया में पहुंच गई है. आज की तारीख में मेरा पूरा परिवार मिथिला पेंटिंग बनाने का काम करता है और देश-विदेश से पेंटिंग की डिमांड होती है."-बौआ देवी, मिथिला पेंटिंग कलाकार

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