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टूट गया मायावती का तिलिस्म; शून्य पर सिमटी बसपा,1989 से भी बुरे दौर में पहुंची बहुजनों की पार्टी

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 5, 2024, 4:50 PM IST

Updated : Jun 5, 2024, 7:44 PM IST

उत्तर प्रदेश की सत्ता पर कई बार काबिज रही बहुजन समाज पार्टी आज वापस अपने शुरूआती चुनावी साल 1989 से भी बुरे दौर में पहुंच गई है. 2024 के चुनाव में बीएसपी यूपी में किसी सीट पर दूसरे नंबर पर भी न आ सकी.

गठबंधन नहीं करने का बसपा को हुआ नुकसान
गठबंधन नहीं करने का बसपा को हुआ नुकसान (Photo Credit; ETV BHARAT)

यूपी में जीरो पर आई बसपा (VIDEO Credit; ETV BHARAT)

लखनऊ: लोकसभा 2024 के चुनावी नतीजे आ गए हैं. देश भर के अधिकांश राज्यों में एनडीए और इंडिया गठबंधन में सीधा मुकाबला देखने को मिला. किसी भी राज्य में त्रिकोणात्मक संघर्ष देखने को नहीं मिला. उत्तर प्रदेश में भी चुनाव परिणाम ऐसा ही रहा. नगीना (सुरक्षित) सीट को छोड़ दें तो 79 सीटों पर सीधा मुकाबला NDA और INDIA में बीच देखने को मिला. इसीलिए यूपी में सबसे ज्यादा नुकसान में बसपा रही. जो पिछले बार 10 सीट के मुकाबले इस बार शून्य पर सिमट गई. बसपा सुप्रीमो मायावती जनता का मूड नहीं भांप पाई. और बिना किसी खेमे में एक अकेले लड़ने का जोखिम उठाया. जो पूरी तरह से फेल साबित हुआ. और 1989 के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब बसपा को 9 फीसदी के करीब वोट मिले.

बहुजन समाज पार्टी ने साल 1989 में पहला चुनाव लड़ा था. तब पार्टी को दो सीटें मिली थीं और 9.90 % वोट भी बहुजन समाज पार्टी को हासिल हुआ था. अब 2024 में इस पार्टी की स्थिति यह है कि लोकसभा चुनाव में खाता नहीं खुला है और वोट प्रतिशत भी गिरकर 9.15 % रह गया है. बीएसपी अब तक के सबसे खराब समय से गुजर रही है. यूपी में 79 सीटों पर मैदान में उतरी बहुजन समाज पार्टी सीट जीतना तो दूर किसी भी सीट पर दूसरे नंबर पर भी न आ पाई.

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती पार्टी में सर्वमान्य नेता है. वह जो कहती हैं वही होता है. उनकी बनाई रणनीति पर ही नेताओं और कार्यकर्ताओं को चलना होता है. बीएसपी का 2024 के लोकसभा चुनाव में जब सभी पार्टियां गठबंधन में लड़ रही थीं उस समय अपने बलबूते पर चुनाव लड़ने वाला फैसला पूरी तरह से गलत साबित हुआ है. यही वजह रही कि 2019 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में 10 सीटें जीतने वाली बीएसपी 2024 में खत्म हो गई. एक भी सीट नहीं आई.

दूसरी बड़ी वजह है यह भी रही है कि, लोकसभा चुनाव में अपने भतीजे आकाश आनंद को बीएसपी मुखिया ने जोर-जोर से चुनाव मैदान में उतारा. चुनाव प्रचार में उनके भाषण लोगों को खूब आकर्षित कर रहे थे. युवा आकाश से जुड़ने लगे थे, क्योंकि आकाश युवाओं के मुद्दे लगातार उठा रहे थे, लेकिन उन्होंने जोश में एक ऐसा बयान दे दिया कि, उन्हें पद से तो हटाया ही गया प्रचार से भी किनारे कर दिया गया. इससे साफ तौर पर संदेश चला गया कि बीएसपी बीजेपी की बी टीम बनकर रह गई है. इसका उनको कोर वोटरों में गलत मैसेज गया. और बीएसपी का अपना वोट बैंक भी छिटक गया.

27 अप्रैल को आकाश आनंद पर एफआईआर हुई उसके बाद उनकी रैली पर रोक लग गई. नतीजों में साफ दिखा है कि, पहले तीन चरणों के लिए आकाश का जादू चला. आकाश आनंद ने तीन चरणों के चुनाव में लगभग 25 सीटों पर चुनाव प्रचार किया और उनके प्रचार के अंदाज से लोग काफी प्रभावित हुए. कोर वोटर को तो आकाश आनंद पार्टी के साथ रोकने में सफल ही रहे. आम जनता को भी बीएसपी की तरफ आकर्षित करने में कामयाब हुए. आकाश आनंद ने जिन सीटों पर रैलियां और जनसभाएं कीं और नतीजे सामने आए तो उन सीटों का वोट प्रतिशत भी अच्छा रहा है. डेढ़ दर्जन से ज्यादा सीटों पर 50 हजार से ज्यादा वोट और आधा दर्जन सीटों पर एक लाख से ज्यादा वोट पाने में प्रत्याशी सफल भी हुए.

लोकसभा चुनाव के नतीजे में आकाश के प्रचार के असर की बात की जाए तो इनमें से 19 सीटें (73%) ऐसी हैं जिन पर बसपा प्रत्याशियों को 50000 से ज्यादा वोट मिले हैं. छह सीटों (23%) पर प्रत्याशियों को एक लाख से ज्यादा वोट मिले हैं. बाद के चार चरणों में कुल सदस्य 64 सीटों पर चुनाव हुए इनमें से 25 (39%) सीटों पर 50000 से ज्यादा और 11 (17%) सीटों पर ही एक लाख से ज्यादा उम्मीदवारों को वोट मिले.

इस चुनाव में बसपा का कैडर वोट भी खिसक कर इंडी गठबंधन में शिफ्ट हो गया. यही वजह रही कि, पिछले लोकसभा चुनाव में 19.43 प्रतिशत वोट हासिल करने वाली बीएसपी इस बार सिर्फ 9.40 फीसद पर ही रह गई. उत्तर प्रदेश में 20% दलित वोटर हैं इसमें सबसे ज्यादा 70% जाटव वोटर हैं, पार्टी को मिले महज 9.15 % वोटा. इससे साफ हो गया कि पार्टी का परंपरागत वोटर भी खिसकने लगा है. कई सीटों पर बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों ने इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों को जिताने में अहम भूमिका निभाई है.
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Last Updated : Jun 5, 2024, 7:44 PM IST

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