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गांव में सड़क न होने का दर्द, मरीज को कंधे पर उठाकर पहुंचाया अस्पताल

तीर्थन में पेखड़ी पंचायत के सैकड़ों लोग सड़क सुविधा के अभाव में बेहाल. आपाता स्थिति में मरीज को कंधे पर उठाकर अस्पताल पहुंचाना पड़ता है.

कंधे पर उठाकर महिला को पहुंचाया अस्पताल
कंधे पर उठाकर महिला को पहुंचाया अस्पताल (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Nov 10, 2024, 5:54 PM IST

Updated : Nov 10, 2024, 7:48 PM IST

कुल्लू: उप मण्डल बंजार में तीर्थन घाटी के कई गांव आजादी के दशकों बाद भी सड़क मार्ग जैसी मुलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. यहां की ग्राम पंचायत पेखड़ी के सैकड़ों लोग आज भी वाहन योग्य सड़क सुविधा के लिए तरस रहे हैं. तीर्थन घाटी गुशैणी को विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क का प्रवेश द्वार कहा जाता है, जहां पर जैव विविधता का अनमोल खजाना छिपा है.

यहां प्रतिवर्ष सैकड़ों की संख्या में अनुसंधानकर्ता, प्राकृतिक प्रेमी, पर्वतारोही, ट्रैकर और देश-विदेश से सैलानी घूमने फिरने का लुत्फ उठाने के लिए आते हैं, लेकिन इस क्षेत्र के सैकड़ों बाशिंदे आजतक आजादी के सात दशक बाद भी विकास से कोसों दूर हैं. यहां के लोग अभी तक सड़क, रास्तों, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. आपात स्थिति में मरीज को आज भी कंधे पर डंडों के सहारे उठाकर अस्पताल तक पहुंचाना पड़ता है.

कंधे पर उठाकर महिला को पहुंचाया अस्पताल (ईटीवी भारत)

कंधे पर उठाकर मरीजों को पहुंचाना पड़ता है अस्पताल

नाहीं गांव में सुमन लता पत्नी लुदर सिंह उम्र 42 वर्ष अचानक बीमार हो गईं, जिसे बीमारी हालात में पालकी पर उठाकर पहाड़ी रास्ते से करीब 3 किलोमीटर पैदल सड़क मार्ग पेखड़ी तक पहुंचाया गया. यहां से निजी वाहन के जरिए इलाज के लिए बंजार अस्पताल ले जाया गया. इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर भी वायरल हुआ था.

पीठ पर बोझा ढोने के मजबूर लोग

सड़क मार्ग के अभाव में यहां के लोगों को कई बार ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ग्राम पंचायत पेखड़ी के गांव दारन, धार, शूंगचा, घाट, लाकचा, नाहीं, बाईटी, बुरंगा, शलींगा, टलींगा, गदेहड़, लुढ़ार और नडाहर आदि गांव के सैकड़ों लोग अभी तक सरकार और प्रशासन से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि कब उनकी दहलीज तक भी सड़क पहुंचेगी. यहां के लोग अभी तक अपनी पीठ पर बोझ ढोने को मजबूर हैं. इन गांवों में जब कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए तो मरीज को दुर्गम पहाड़ी पगडंडियों से लकड़ी की पालकी और कुर्सी पर उठा कर सड़क मार्ग तक पहुंचाना पड़ता है. इस क्षेत्र से पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को हाई स्कूल व इससे आगे की पढ़ाई करने के लिए प्रतिदिन करीब दो से पांच घंटे तक का सफर पैदल तय करना होता है.

रास्ते में सुरक्षा के नहीं हैं कोई इंतजाम

नाहीं गांव के स्थानीय निवासी लोभु राम, लाल सिंह, धनी राम, गोपाल, दिशू, जगदीश, तुले राम, जीवन, डोला सिंह, महेश्वर, लल्ली, आलम चन्द, राजू राम और सचिन आदि का कहना है कि,'यहां पर सड़क मार्ग तो अभी दूर की बात है, लेकिन जो पैदल चलने योग्य रास्ते हैं उनकी हालात भी बदतर बनी हुई है. इन रास्तों पर घोड़े खच्चर चलाना भी खतरे से खाली नहीं है. इन पहाड़ी रास्तों में कई जगह पर तो लोगों को पैदल चलने में काफी दिक्कत होती है. कुछ खतरनाक स्थानों पर तो सुरक्षा के भी कोई इंतजाम नहीं हैं जहां पर हर समय जान-माल के नुकसान का अंदेशा बना रहता है.'

सालों से लटका सड़क का निर्माण कार्य

स्थानीय लोगों का कहना है कि काफी मुश्किलों के बाद वर्ष 2021 में नगलाड़ी नाला से नाहीं घाट तक करीब 11 किलोमीटर लम्बी सड़क निर्माण का कार्य शुरू हुआ था, लेकिन आजतक यह सड़क अपने मुकाम तक नहीं पहुंच पाई. अधिकारिक सूचना के मुताबिक करीब 9 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित होने वाली इस सड़क का कार्य अप्रैल 2023 में पूर्ण होना था, लेकिन अभी तक यह सड़क तीन किलोमीटर तक भी ठीक से नहीं बन पाई है. लोगों ने ठेकेदार और लोक निर्माण विभाग पर निर्माण कार्य में लेटलतीफी का आरोप लगाया है, जिस कारण लोगों में भारी रोष व्याप्त है. स्थानीय लोगों ने शासन प्रशासन से गुहार लगाई है कि इस सड़क निर्माण के कार्य को गति दी जाए ताकि समय पर इसका लाभ लोगों को मिल सके.

लोक निर्माण विभाग बंजार मंडल के अधिशाषी अभियंता चमन ठाकुर ने बताया कि, 'गत वर्ष आई आपदा के कारण सड़क निर्माण कार्य में देरी हुई थी, लेकिन अब इसका कार्य जारी है. इस सड़क पर दो मशीनरी लगाकर इसके निर्माण कार्य को गति दी जाएगी.'

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Last Updated : Nov 10, 2024, 7:48 PM IST

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