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भागलपुर के 'कतरनी चूड़ा' के बिना अधूरी है मकर संक्रांति, राष्ट्रपति और पीएम की है पहली पसंद - MAKAR SANKRANTI 2025

मकर संक्रांति का त्योहार कल 14 जनवरी को मनाया जाएगा. ऐसे में भागलपुर का कतरनी चूड़ा लोगों की पहली पसंद है. पढ़ें पूरी खबर..

BHAGALPUR KATRANI CHURA
भागलपुर का कतरनी चूड़ा (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jan 13, 2025, 4:20 PM IST

भागलपुर:मकर संक्रांति के अवसर पर बिहार और उत्तर प्रदेश में दही-चूड़ा खाने का विशेष महत्व है. इस व्यंजन को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. कहते हैं कि इस दिन दही-चूड़ा खाने से घर में खुशहाली आती है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है. यह सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायदेमंद है. वहीं दही में यदि चूड़ा भागलपुर का कतरनी हो तो त्योहार में चार चांद लग जाता है.

क्यों मशहूर है भागलपुर का कतरनी चूड़ा?: भागलपुर की पहचान जिन कुछ खास विशिष्टताओं से है, उनमें कतरनी चूड़ा और चावल काफी महत्व रखता है. मकर संक्रांति में अंग क्षेत्र का कतरनी चूड़ा बिहार की पसंदीदा सौगात मानी जाती है. इसकी खास खुशबू की चर्चा रामायण, बौद्ध ग्रंथ और कुछ ऐतिहासिक संदर्भों में भी है. माना जाता है इसका इतिहास काफी पुराना है.

क्यों मशहूर है भागलपुर का कतरनी चूड़ा (ETV Bharat)

भागलपुर का कतरनी चावल भी है कमाल:यहां काकतरनी चावल दुधिया रंग के छोटे-छोटे मोतियों के दाने जितना देखने में सुंदर होता है. सुंदरता के साथ इसकी खुशबू भी लाजवाब होती है. कतरनी चावल की इस खुशबू को अब कुछ कंपनी के माध्यम से पूरे देश में भेजी जा रही है. इस चावल के बिना यहां का कोई धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठान पूरा नहीं होता है.

बिहार में बढ़ी कतरनी चूड़ा की डिमांड (ETV Bharat)

बिहार में ये हैं कतरनी उत्पादक क्षेत्र: कतरनी उत्पादक क्षेत्र अंतर्गत तीन जिलों भागलपुर, बांका और मुंगेर में 800 हेक्टेयर से बढ़कर 1700 हेक्टेयर में इसकी खेती हो गई है. इसकी मांग देश ही नहीं विदेशों में भी होने लगी है. पांच सितारा होटलों, शाही शादियों आदि से भी इसकी खूब फरमाइश आती है.

दूसरी जगह लगाने पर नहीं आता वो स्वाद: बता दें कि केवाल यहां की ही मिट्टी में इसकी खेती करने से पैदावार में अधिक खुशबू देखने को मिलती है. कतरनी को दूसरी जगह लगाने पर यह स्वाद और सुगंध नहीं आता है. भागलपुर की मिट्टी, पानी, जलवायु और तापमान आदि के कारण ही इसमें सुगंध और स्वाद बना रहता है. हालांकि इस पर अभी रिसर्च किया जा रहा है.

पसंद आती है कतरनी चूड़ा की सोंधी खुशबू (ETV Bharat)

भारत सरकार ने दिया जीआई टैग: कतरनी की खेती कई पीढ़ियों से किसान कर रहे हैं. अब तो इसे भारत सरकार द्वारा भौगोलिक सूचकांक भी प्राप्त है. भागलपुरी कतरनी धान उत्पादक संघ को जीआई टैग मिली है. भागलपुर कतरनी की खास खुशबू व मौलिकता को देखते ही भारत सरकार ने 2017 में इसे भौगौलिक सूचकांक जीआइ टैग प्रदान किया था.

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी जाती है कतरनी की सौगात: भौगोलिक सूचकांक मिलने के बाद से किसानों के पास कतरनी की डिमांड और बढ़ गई है. अब सुल्तानगंज प्रखंड के आभा रतनपुर के किसान मनीष कुमार सिंह परम आनंद नाम से कंपनी बनाकर करतनी चावल और चूड़े की बिक्री कर रहे हैं. उनके द्वारा तैयार कतरनी चावल और चूड़ा सौगात के रूप में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित अन्य महानुभावों को भेजा गया है.

भागलपुर का कतरनी चूड़ा क्यों है खास (ETV Bharat)

"बिहार दिवस के मौके पर लगाई गई प्रदर्शनी में परम आनंद के भागलपुरी कतरनी को सेकेंड प्राइज मिला था. महाराष्ट्र के फलटन में स्वराज फाउंडेशन द्वारा कतरनी चावल और चूड़े की मांग को देखकर हम काफी उत्सुक हैं. ये हमारे लिए एक बड़े अवसर के रूप में हैं."- मनीष कुमार सिंह, किसान

इस साल कीमत में हुआ इजाफा:किसान मनीष कुमार सिंह ने बताया कि कतरनी धान की खेती करने वाले किसानों को पहले प्रति किलो दर 50 से 70 रुपये ही मिल पाता था. इस साल इसकी कीमत बढ़कर 110 से 130 रुपये हो गई है. यही कारण है कि किसान फिर से कतरनी धान की खेती करने की ओर बढ़ रहे हैं. सरकार ने भी किसानों को समूह बना कर वित्तीय सहायता के साथ-साथ बाजार भी उपलब्ध कराया है.

बिहार के कुछ खास क्षेत्र में होता है कतरनी चूड़ा (ETV Bharat)

विदेश में भी बढ़ी डिमांड:चूड़ा मिल मालिक सोना सिंह ने बताया कि कतरनी धान की उपज कम होती है. हालांकि अब देश ही नहीं विदेशों में भी इसकी मांग बढने से किसान इसकी खेती में रुचि दिखा रहे हैं. एक बीघा में इसकी पैदावार करीब 13 से 15 क्विंटल तक होती है. यह सुपाच्य और कई गुणों से भरपूर होता है. इसके कारण इसकी कीमत अन्य चावलों की तुलना में अधिक होती है.

"पहले किसानों को कतरनी चूड़ा या चावल की खेती में ज्यादा मुनापा नहीं हो पाता था. हालांकि जीआइ टैग मिलने के बाद अब विदेस में भी इसकी डिमांड पहले से काफी बढ़ गई है. एक बीघा में इसकी पैदावार करीब 13 से 15 क्विंटल तक होती है. वहीं ये कई गुणों से भरपूर होता है."-सोना सिंह, चूड़ा मिल मालिक

2017 में मिला जीआइ टैग (ETV Bharat)

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