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कौमी एकता की मिसाल है मचकुंड का देव छठ मेला, तीर्थराज के साथ अब्दाल शाह बाबा की मजार पर भी माथा टेकते हैं श्रद्धालु - Machkund Dev Chhat Mela 2024

9 सितंबर से तीर्थराज मचकुंड का देव छठ मेला शुरू होगा. यहां देशभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं. तीर्थराज में स्नान, पूजा-अर्चना के बाद अधिकांश श्रद्धालु अब्दाल शाह बाबा की मजार पर भी माथा टेकते हैं.

Machkund Dev Chhat Mela 2024
मचकुंड का देव छठ मेला 9 से (ETV Bharat Dholpur)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 7, 2024, 6:41 PM IST

9 सितंबर से तीर्थराज मचकुंड का देव छठ मेला (ETV Bharat Dholpur)

धौलपुर: कौमी एकता की मिसाल माने जाने वाले ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड पर 9 सितंबर को लक्खी मेले का आयोजन किया जाएगा. तीर्थराज मचकुंड मेले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के आस-पास के क्षेत्रों से लाखों की तादाद में श्रद्धालु सरोवर में डुबकी लगाने पहुंचते हैं. वहीं पहाड़ वाले अब्दाल शाह बाबा की दरगाह में माथा भी टेकते हैं. पौराणिक मान्यता के मुताबिक, मचकुंड महाराज को सभी तीर्थो का भांजा कहा जाता है. माना जाता है कि सरोवर में देवछठ वाले दिन स्नान करने से पुण्य लाभ मिलता है.

छठ तक चलने वाले इस मेले में राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु सरोवर में स्नान करने पहुंचते हैं. प्रति वर्ष ऋषि पंचमी से देवछठ तक लगने वाले तीर्थराज मचकुंड के लक्खी मेले को लेकर मान्यता है कि देवासुर संग्राम के बाद जब राक्षस कालयवन के अत्याचार बढ़ने लगे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने कालयवन को युद्ध के लिए ललकारा था. युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण को भी हार का मुंह देखना पड़ा था. तब श्रीकृष्ण ने छल से मचकुंड महाराज के जरिए कालयवन का वध करवाया था. जिसके बाद कालयवन के अत्याचारों से पीड़ित ब्रजवासियों में खुशी की लहर दौड़ गई थी. तब से लेकर आज तक मचकुंड महाराज की तपोभूमि में सभी लोग देवछठ के मौके पर स्नान करने आते हैं.

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नव विवाहित जोड़ों की होती कलंगी विसर्जित:मान्यता है कि यहां नवविवाहित जोड़ों के सहरे की कलंगी को सरोवर में विसर्जित कर उनके जीवन की मंगलकामना की जाती है. हजारों की संख्या में नवविवाहित जोड़े हर वर्ष यहां आते हैं. नवविवाहित जोड़ों के परिजन मचकुंड सरोवर में स्नान और पूजा के बाद मोहरी को मचकुंड में प्रवाहित करते हैं. एक मान्यता यह भी है कि जो श्रद्धालु चार धाम की यात्रा करता है, उसकी यात्रा तब तक सफल नहीं मानी जाती, जब तक वह मचकुंड मेले में डुबकी नहीं लगाता. वहीं इस मेले की एक मान्यता है कि सुबह श्रद्धालु तीर्थराज सरोवर में श्रद्धा की डुबकी लगाते हैं फिर शाम को पहाड़ अब्दाल शाह की दरगाह पर माथा टेक कर रात्रि में होने वाले मुशायरे और कव्वाली का लुफ्त उठाते हैं.

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प्रशासन की रहेगी चाक-चौबंद व्यवस्था: जिला कलेक्टर श्रीनिधि बीटी ने बताया कि ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड पर छठ को लगने वाले मेले को लेकर तैयारियां को अंतिम रूप दिया जा रहा है. पुलिस और प्रशासन की माकूल व्यवस्था मेले में तैनात की जाएगी. सरोवर में स्नान करने वाले लोगों के लिए 50 गोताखोरों को तैनात किया जाएगा. इसके अलावा मचकुंड पर लाइट, पार्किंग आदि व्यवस्था को दुरुस्त करने के निर्देश दिए हैं. मेले में आने वाली भारी भीड़ को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए हैं.

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गंगा-जमुना तहजीब की बड़ी मिशाल: तीर्थराज मचकुंड एवं अब्दाल शाह बाबा का मेला सांप्रदायिक सौहार्द एवं गंगा जमुनी तहजीब की बड़ी मिशाल है. तीर्थराज मचकुंड पर पूजा-अर्चना कर अधिकांश श्रद्धालु अब्दाल शाह बाबा की मजार पर भी माथा टेकने ने पहुंचते हैं. बताया जाता है बाबा की दुआ से भी लोगों की मनोकामना पूरी होती है.

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