पटना:लोकसभा चुनाव 2024 के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 400 पार का नारा एनडीए के लिए दिया है. बीजेपी उसे जमीन पर उतारने में लगी है. कई राज्यों में बीजेपी ने छोटे-छोटे दलों के साथ तालमेल किया है. बिहार में अधिकांश छोटे दलों को भाजपा ने अपने साथ जोड़ लिया है. 2019 में एनडीए ने 40 में से 39 सीट जीता था. इस बार 40 सीट पर नजर है. 40 सीट को जीतने में छोटे दल बीजेपी के लिए बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.
मुकेश सहनी को एनडीए में लाने की तैयारी: बिहार एनडीए में अभी 6 दल हैं. मुकेश सहनी को भी लाने की तैयारी हो रही है. पहले से जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और लोजपा दोनों गुट चिराग और पशुपति पारस बिहार में बीजेपी के साथ हैं. जीतन राम मांझी और चिराग पासवान बिहार में दलित के बड़े चेहरे हैं. चिराग पासवान युवा चेहरा के तौर पर दलितों के बीच एक विशेष पहचान बना रहे हैं. चिराग पासवान अभी जमुई से सांसद हैं. उनके परिवार के सदस्यों का हाजीपुर और समस्तीपुर लोक सभा सीट पर कब्जा है.
दलित वोट बैंक पर है नजरः बिहार में दलितों का 21% के करीब वोट बैंक है. ऐसे तो हर दल में दलितों के नेता हैं, लेकिन दलित वोट बैंक पर चिराग पासवान और जीतन राम मांझी की पकड़ है. एनडीए में रहने के कारण जहां चिराग पासवान और जीतन राम मांझी सुरक्षित सभी सीटों हाजीपुर, समस्तीपुर, गया, सासाराम, गोपालगंज और जमुई पर असर तो डालेंगे ही साथ ही एक दर्जन से अधिक सीटों पर भी जीत हार में बड़ी भूमिका निभाएंगे.
उपेंद्र कुशवाहा का कई सीटों पर है प्रभावः राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता उपेंद्र कुशवाहा, कुशवाहा जाति के बड़े नेता के तौर पर जाने जाते हैं. ऐसे तो बीजेपी ने सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष बनाकर इस वोट बैंक पर दावेदारी की है, लेकिन इसके बावजूद उपेंद्र कुशवाहा भी बिहार की कई सीटों पर अपना असर डाल सकते हैं. इनमें काराकाट, सीतामढ़ी, बाल्मीकिनगर, जहानाबाद जैसी सीट महत्वपूर्ण है. उपेंद्र कुशवाहा काराकाट से 2014 में एनडीए में रहते सांसद भी रह चुके हैं.
मुकेश साहनी को साधने की कोशिशः वीआईपी के मुकेश सहनी, मल्लाह जाति के बड़े नेता के तौर पर आज पहचान बना रहे हैं. अभी एनडीए में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन कई राउंड की उनकी बातचीत भाजपा नेताओं से हो चुकी है. निषाद को आरक्षण दिलाने की उनकी मांग है. लगातार कहते रहे हैं जो भी आरक्षण देगा उसके साथ हम रहेंगे. बिहार में मल्लाह की आबादी 3% के करीब है. कई सीटों पर मल्लाह की भूमिका महत्वपूर्ण है. इसमें खगड़िया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी शामिल है. वैसे तो बीजेपी और जदयू में मल्लाह जाति से आने वाले कई नेता हैं, बीजेपी ने महागठबंधन की सरकार रहते हरि सहनी को विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष भी बनाया था. इसके बाद भी मुकेश सहनी बड़े वोट बैंक के तौर पर बिहार में देखे जा रहे हैं.
एआईएमआईएम की भूमिका महत्वपूर्णः छोटे दलों में एआईएमआईएम की भूमिका भी लोकसभा चुनाव में इस बार महत्वपूर्ण होने जा रही है. एआईएमआईएम मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करती है. बिहार में मुस्लिम वोट बैंक 17% से अधिक है. ऐसे तो एआइएमआइएम फिलहाल किसी गठबंधन में शामिल नहीं है. एनडीए में आने की दूर-दूर तक संभावना नहीं है. लेकिन एआईएमआईएम कई सीटों पर असर डालेगा. खासकर सीमांचल की चार सीट किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार मुस्लिम बहुल इलाके में जीत हार में बड़ी भूमिका निभाएगा.
...तो महागठबंधन को हो सकता है नुकसानः यदि एआईएमआईएम महागठबंधन के साथ नहीं जाता है तो जितनी सीट पर भी एआईएमआईएम उम्मीदवार उतारेगी, उसका सीधा लाभ एनडीए को होगा. महागठबंधन को नुकसान होना तय है. क्योंकि, महागठबंधन भी मुस्लिम वोट पर अपनी दावेदारी करता है. पिछले लोकसभा चुनाव में एआईएमआईएम की तरफ से किशनगंज सीट पर अख्तरुल इमान ने 3 लाख से अधिक वोट लाया था. हालांकि कांग्रेस के उम्मीदवार को हराने में सफल नहीं रहे थे. वहीं 2020 विधानसभा चुनाव में सीमांचल के पांच सीटों आमौर, कोचाधाम, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज में जीत हासिल की थी. बाद में पांच में से चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए.