भोपाल एंशिएंट न्यूमिस्मेटिक सोसाइटी का संग्रहण (ETV Bharat Jodhpur) जोधपुर :भारत में पुरातन से लेकर अभी तक के इतिहास में सिक्कों का बड़ा महत्व रहा है. सिक्कों पर लिखी जानकारी ही उस काल के बारे में जानकारी देती है. देश में सबसे पहले अगर किेसी राजा ने अपना सिक्का शुरू किया तो वो 2600 साल पहले हुआ था. तब के अखंड भारत के गांधार प्रदेश, जिसे गंधर्व महाजनपद कहा जाता था, वहां के राजा पुष्कर सेन ने 5वीं से छठी शाताब्दी में चांदी के सिक्के चलाए. करीब दो इंच के चांदी के सिक्के का नाम शतमना था यानी 100 के बराबर. इसी तरह से शना सिक्का चलाया था, जो 100 का आठवां भाग कहलाता था.
भारत में इस तरह के सिक्कों का कलेक्शन जनता तक पहुंचाने में अहम भूमिका भोपाल एंशिएंट न्यूमिस्मेटिक सोसाइटी निभा रही है. सोसाइटी ऐसे कलेक्शन को मंच देती है. सोसाइटी के सचिव राजीव जैन ने बताया कि हमारा उदृेश्य यह है कि हम अपनी धरोहर को संभालना चाहते हैं. लोगों को जागरूक करते हैं कि ऐसे धरोहर वस्तुओं को खरीद कर संग्रहित करें, जिससे हमारी विरासत बच सके, नहीं तो हम आने वाले समय में सिर्फ ऐसे सिक्के गूगल पर देखेंगे. न्यूमिस्मेटिक हॉबी करेंसी कलेक्शन से जुड़ी होती है. हम चाहते हैं कि लोग ऐसे सिक्कों को सहेजें, क्योंकि बाजार में ऐसे सिक्के खरीद कर उनको गलाकर दूसरे काम में लिए जा रहे हैं. ऐसे में विरासत बचाने के लिए हम काम कर रहे हैं. शहरों में मुद्रा उत्सव का आयोजन कर लोगों को जोड़ते हैं.
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2600 साल पहले के सिक्के का नाम बेंट बार :भारत के पुराने सिक्कों का कलेक्शन करने वोल सोहम रामटेक का कहना है कि गंधर्व महाजनपद में सबसे पहले चांदी का सिक्का बना, जो लंबा था. ढाई हजार साल पहले लिपि को धातु पर लाना संभव नहीं था. ऐसे में सिक्के पर निशान बनाए गए. दोनों ओर निशान बनाने से सिक्के में बेंट पड़ गए, इसलिए इस सिक्के को न्यूमिस्मेटिक की दुनिया में बेंट बार कहा जाता है. गंधर्व या गांधार जनपद बहुत समृद्ध था. आज के अफगानिस्तान के इलाके में था. वहां चांदी के ऐसे बहुत सारे सिक्के बनाए गए. चांदी होने से यह आगे से आगे चलते गए. आज भी भारत में काफी लोगों के पास यह है. संग्रहण के लिए इसे 5 हजार रुपए में खरीदा जा सकता है.
16 दिन का राजपाट, फिर भी सिक्का चलाया :भारत में मुगल सहित अन्य 29 मुस्लिम राजा हुए थे, लेकिन कई गुमनामी में खो गए. इनमें एक नाम ऐसा भी था, जिसने सिर्फ 16 दिन तक सल्तनत संभाली थी. इस समय में भी उसने अपना सिक्का चला दिया. दरअसल, औरंगजेब ने अपने पोते अजीम उस शान को बंगाल और बिहार का सूबेदार बनाया था. 1712 में उसके पिता शाह आलम बहादुर की मौत होते ही उसने खुद को सुल्तान घोषित कर दिया था, लेकिन इससे उसके दूसरे भाई नाराज हो गए. उन्होंने उसकी हत्या कर दी. इस दौरान उसने अपना सिक्का चला दिया था, जिसका बदला उसके बेटे फर्रुखसियर ने लिया और बाद में गद्दी संभाली थी. सोहन रामटेक के अनुसार अजीम उस शान के सिक्के काफी रेअर हैं.
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सम्राट, राजा और नवाब सभी के शगल सिक्के :उस दौर में गद्दी और तख्त संभालते ही हर किसी की एक ही ख्वाहिश होती थी कि उसे लोग कैसे याद रखें. उस समय में सिर्फ एक ही चारा था कि वह अपने नाम का सिक्का या मुद्रा का चलन करे. यही कारण है के तब के टकसालों में नए सम्राट, राजा और नवाब बनते ही सिक्कों पर काम होता था. चांदी के अलावा, तांबे और लोहे के सिक्कों का भी चलन था, लेकिन ज्यादा महत्व चांदी के सिक्कों का होता था, क्योंकि सिक्के के वजन बराबर चांदी ही उस सिक्के का मूल्य होता था, जबकि बाकी धातु के सिक्कों का उपयोग कम मूल्यों के उपयोग में होता था.