अलवर : अलवर के कलाकंद की मिठास ने देश दुनिया में अपनी पहचान बनाई, लेकिन मिल्क केक को जीआई टैग अब तक नहीं मिल पाया है. कलाकंद की बढ़ती मांग को देखते हुए अलवर जिला प्रशासन ने करीब 1.5 साल पूर्व मिल्क केक को जीआई टैग दिलाने के लिए प्रस्ताव उद्यम प्रोत्साहन संस्थान जयपुर के माध्यम से चैन्नई स्थित ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी इंडिया में भेजा गया था, लेकिन यह प्रस्ताव फाइलों में अटक कर रह गया. हालांकि, अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया.
आजादी के समय से तैयार हो रहा कलाकंद : कलाकंद निर्माता अभिषेक तनेजा ने बताया कि अलवर के कलाकंद बनाने की शुरुआत वर्ष 1947 में हुई थी. उन्होंने बताया कि पाकिस्तान से अलवर आए बाबा ठाकुर दास एक दिन दूध गर्म कर रहे थे, तभी दूध फट गया. उन्होंने फटे दूध में चीनी डालकर पकाया और एक बर्तन में जमा दिया. बाद में जब दूध ठंडा हुआ तो उसके अंदर कुछ लाल सा पदार्थ निकला. इसका स्वाद बेजोड़ था. इसी से प्रेरित होकर बाबा ठाकुरदास ने इसका नाम कलाकंद रखा. कलाकंद अलवर को देश-विदेश में पहचान दिलाता रहा है. अलवर आने वाले राजनेता, कलाकार, फिल्मी अभिनेता या उद्योगपति कलाकंद को खासा पसंद करते हैं. उन्होंने बताया कि अलवर में 2500 से ज्यादा दुकानों पर कलाकंद करीब 10 हजार किलोग्राम तैयार किया जाता है. इस व्यवसाय से 3 हजार से ज्यादा लोग प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं.
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जिला प्रशासन ने शुरू किए थे प्रयास : उद्योग विभाग के अलवर महाप्रबंधक एमआर मीणा ने बताया कि अलवर के मिल्क केक को जीआई टैग दिलाने की प्रक्रिया तत्कालीन जिला कलेक्टर जितेन्द्र सोनी ने प्रयास शुरू किए. उद्योग विभाग ने उस समय कलाकंद को जीआई टैग दिलाने के लिए प्रस्ताव तैयार कर उद्यम प्रोत्साहन संस्थान जयपुर के माध्यम से चैन्नई स्थितज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी इंडिया भिजवाया था. इसके लिए हलवाई एसोसिएशन एवं डेयरी प्रबंधन से भी तकनीकी खामियों को पूरा कराया गया. उन्होंने बताया कि कलाकंंद को जीआई टैग दिलाने के लिए इसका लिखित इतिहास, विशेषता, खपत, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार की जानकारी भी भेजी गई थी. उन्होंने बताया कि अलवर के कलाकंद के अलावा रामगढ़ क्षेत्र की कागजी पोटरी कला को भी जीआई टैग दिलाने के लिए प्रयास किए गए थे.
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क्या है जीआई टैग : जीआई टैग किसी भी उत्पाद की भौगोलिक विशिष्टता को मान्यता देता है. इससे यह पता लगता है कि यह उत्पाद किस क्षेत्र का है. जिन प्रोडक्ट्स को जीआई टैग मिलता है, उस क्षेत्र को प्रोडक्ट के नाम से भी जाना जाता है. साथ ही अंतरराष्टीय स्तर पर भी पहचान भी मिलती है. कलांकद व्यापारी अंकित ने बताया कि देश-विदेश में अलवर के कलाकंद की मांग रहती है. अलवर का कलाकंद दिल्ली, मुम्बई, गुजरात, उत्तराखंड के साथ ही कनाडा, दुबई सहित अन्य देशों में जाता है. अलवर का पानी, गुणवत्तायुक्त दूध एवं भौगोलिकता के चलते अलवर के कलाकंद में अलग ही स्वाद आता है. उन्होंने बताया कि अलवर जिले में अलवर, खैरथल, तिजारा, राजगढ़ व थानागाजी क्षेत्र में बहुतायत में तैयार किया जाता है.
इस कारण हो सकती है जीआई टैग मिलने में देरी : किसी भी उत्पाद को जीआई टैग दिलाने के लिए विशेषता होनी चाहिए, हालांकि कलाकंद अलवर ही नहीं अन्य जगहों पर भी तैयार होने लगा है. यदि अलवर का कलाकंद सभी मानकों पर खरा उतरा, तभी उसे जीआई टैग मिल पाएगा. विभिन्न स्थानों पर कलाकंद तैयार होने के कारण अलवर के मिल्क केक को अपनी विशेषता पर खरा उतरना होगा, तभी उसे जीआई टैग मिलना संभव होगा.