रामपुर बुशहर:अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में अभी भी व्यापारियों ने अपने स्टॉल लगाए हैं. लोग मेले में जमकर खरीददारी कर रहे हैं, जबकि व्यापारी भी कारोबार अच्छा होने से खुश हैं. मेले में ड्राई फ्रूट, गर्म ऊनी वस्त्रों, मसालों समेत अन्य चीजों की भारी डिमांड देखने को मिल रही है, लेकिन हिमाचल प्रदेश के रोहड़ू क्षेत्र से लाए गए लाल चावल, जिसे 'पैजा' नाम से जाना जाता है, भारी डिमांड देखने को मिल रही है.
कीमत बहुत अधिक होने के बाद भी लोग इसकी जमकर खरीददारी कर रहे हैं. यह चावल 800 रुपये प्रति किलो की कीमत पर बिक रहा है. पौष्टिकता और दुर्लभता इसकी खासियत है. यह चावल न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, बल्कि इसकी खेती और उत्पादन की प्रक्रिया भी इसे खास बनाती है. वहीं, व्यापारी ने बताया कि, लवी मेले में हर साल वो पैजा चावल लेकर मेले में पहुंचते हैं. लोगों में इसकी भारी डिमांड देखने को मिलती है. इस बार ये चावल 800 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जा रहा है.
रोहड़ू के स्थानीय निवासी रविंद्र ने बताया कि,'यह चावल रोहडू के चिड़गाव तहसील की छुआरा बैल्ट में आने वाले पैजा गांव में इसकी काफी पैदावार होती है. इसके लिए पहले बीज से एक पौधा तैयार किया जाता है, उसके बाद पानी से खेत को भरा जाता है. मिट्टी में उस पौधे की रोपाई की जाती है. पैजा गांव का यह चावल काफी मशहूर है. इसकी खेती के लिए जैविक और प्राकृतिक तरीकों का उपयोग किया जाता है. किसान रासायनिक खादों के बजाय पारंपरिक खाद, गोबर और अन्य जैविक सामग्री का उपयोग करते हैं. इसकी खेती के लिए विशेष प्रकार की मिट्टी और जलवायु की आवश्यकता होती है.' लाल चावल आमतौर पर बंजर भूमि और ढलानों पर उगाए जाते हैं, जो अधिक मेहनत और समय मांगते हैं. इन चावलों को हाथ से काटा जाता है और धूप में सुखाया जाता है, जिससे उनकी गुणवत्ता बरकरार रहती है. इसकी खेती का उत्पादन अन्य चावलों की तुलना में कम होता है, जिससे यह दुर्लभ और मूल्यवान बन जाता है.
क्यों है यह इतना महंगा
यह चावल हिमाचल के कुछ ही क्षेत्रों में पाया जाता है और इसकी पैदावार सीमित मात्रा में होती है. रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग न करना इसकी खेती को महंगा बनाता है. इस चावल की खेती की हर प्रक्रिया में मानव श्रम का इस्तेमाल होता है. यह चावल पौष्टिकता से भरपूर और स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी है.