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आठ साल पहले दी थी सीपीएस नियुक्ति को चुनौती, उस याचिका पर भी आया एक्ट को असंवैधानिक बताने वाला फैसला

8 साल पहले पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस संस्था ने सीपीएस नियुक्ति को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने इस एक्ट को असंवैधानिक बताया बताया है.

हिमाचल हाईकोर्ट
हिमाचल हाईकोर्ट (FILE)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 2 hours ago

शिमला: हिमाचल प्रदेश में एक निजी संस्था ने वर्ष 2016 में सीपीएस की नियुक्ति को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने उस याचिका पर भी आज यानी 20 नवंबर को फैसला सुना दिया. अदालत ने सीपीएस नियुक्ति से जुड़े एक्ट को असंवैधानिक बताया है. इस फैसले में भी सीपीएस को पद से हटाने के आदेश जारी किए गए हैं. वर्ष 2016 में ये याचिका पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस नामक संस्था ने दाखिल की थी. संस्था के प्रमुख रजनीश मानिकताला ने बताया कि इस फैसले में भी सीपीएस को हटाने के साथ ही एक्ट को असंवैधानिक बताया गया है. इस याचिका में तत्कावी वीरभद्र सिंह सरकार में नियुक्त सीपीएस को चुनौती दी गई थी.

उल्लेखनीय है कि इस सरकार में इससे पहले भाजपा नेताओं सतपाल सिंह सत्ती व अन्यों द्वारा याचिका दाखिल की गई थी. एक याचिका कल्पना देवी नामक महिला ने दायर की थी। इससे पहले वर्ष 2016 में उपरोक्त संस्था ने याचिका डाली थी. हाईकोर्ट ने पहले ही दो मामलों में राज्य सरकार की तरफ से नियुक्त छह मुख्य संसदीय सचिवों को पद से हटाने और उन्हें दी गई सुविधाएं वापिस लेने के आदेश जारी किए थे. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ भाजपा नेताओं और एक अधिवक्ता की याचिका में पारित निर्णय के दृष्टिगत इस याचिका में भी अपना फैसला दिया है.

सीपीएस की नियुक्ति को चैलेंज करने वाली दो समान याचिकाओं को स्वीकारते हुए हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 को भी खारिज कर दिया है. इस फैसले में हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया था कि वर्ष 2006 में बने एक्ट को राज्य विधानसभा की विधायी शक्ति से परे होने के कारण रद्द किया जाता है. परिणामस्वरूप अदालत ने इस अधिनियम के बाद की गई नियुक्तियों को रद्द करते इन्हें अवैध, असंवैधानिक और शून्य घोषित किया.

हाईकोर्ट ने आगे कहा कि चूंकि विवादित अधिनियम आरंभ से ही अमान्य है, इसलिए सभी संसदीय सचिवों ने आरंभ से ही सार्वजनिक पद पर अतिक्रमण किया है. ऐसे में उनकी अवैध और असंवैधानिक नियुक्ति के आधार पर उनका पद पर बने रहना कानूनन पूरी तरह से अनुचित है. उल्लेखनीय है सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार ने अर्की विधानसभा क्षेत्र से चुने गए संजय अवस्थी, कुल्लू सदर से सुंदर सिंह ठाकुर, दून से रामकुमार चौधरी, रोहड़ू से मोहन लाल ब्राक्टा, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल को सीपीएस बनाया था. फिलहाल, स्थिति ये है कि राज्य सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। वहीं, भाजपा ने भी सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की है.

ये भी पढ़ें: इधर होटल बंद होने की नौबत, उधर साल में पांच करोड़ सैलानियों की आमद का लक्ष्य, हिमाचल में पर्यटन को कैसे लगेंगे पंख?

शिमला: हिमाचल प्रदेश में एक निजी संस्था ने वर्ष 2016 में सीपीएस की नियुक्ति को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने उस याचिका पर भी आज यानी 20 नवंबर को फैसला सुना दिया. अदालत ने सीपीएस नियुक्ति से जुड़े एक्ट को असंवैधानिक बताया है. इस फैसले में भी सीपीएस को पद से हटाने के आदेश जारी किए गए हैं. वर्ष 2016 में ये याचिका पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस नामक संस्था ने दाखिल की थी. संस्था के प्रमुख रजनीश मानिकताला ने बताया कि इस फैसले में भी सीपीएस को हटाने के साथ ही एक्ट को असंवैधानिक बताया गया है. इस याचिका में तत्कावी वीरभद्र सिंह सरकार में नियुक्त सीपीएस को चुनौती दी गई थी.

उल्लेखनीय है कि इस सरकार में इससे पहले भाजपा नेताओं सतपाल सिंह सत्ती व अन्यों द्वारा याचिका दाखिल की गई थी. एक याचिका कल्पना देवी नामक महिला ने दायर की थी। इससे पहले वर्ष 2016 में उपरोक्त संस्था ने याचिका डाली थी. हाईकोर्ट ने पहले ही दो मामलों में राज्य सरकार की तरफ से नियुक्त छह मुख्य संसदीय सचिवों को पद से हटाने और उन्हें दी गई सुविधाएं वापिस लेने के आदेश जारी किए थे. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ भाजपा नेताओं और एक अधिवक्ता की याचिका में पारित निर्णय के दृष्टिगत इस याचिका में भी अपना फैसला दिया है.

सीपीएस की नियुक्ति को चैलेंज करने वाली दो समान याचिकाओं को स्वीकारते हुए हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 को भी खारिज कर दिया है. इस फैसले में हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया था कि वर्ष 2006 में बने एक्ट को राज्य विधानसभा की विधायी शक्ति से परे होने के कारण रद्द किया जाता है. परिणामस्वरूप अदालत ने इस अधिनियम के बाद की गई नियुक्तियों को रद्द करते इन्हें अवैध, असंवैधानिक और शून्य घोषित किया.

हाईकोर्ट ने आगे कहा कि चूंकि विवादित अधिनियम आरंभ से ही अमान्य है, इसलिए सभी संसदीय सचिवों ने आरंभ से ही सार्वजनिक पद पर अतिक्रमण किया है. ऐसे में उनकी अवैध और असंवैधानिक नियुक्ति के आधार पर उनका पद पर बने रहना कानूनन पूरी तरह से अनुचित है. उल्लेखनीय है सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार ने अर्की विधानसभा क्षेत्र से चुने गए संजय अवस्थी, कुल्लू सदर से सुंदर सिंह ठाकुर, दून से रामकुमार चौधरी, रोहड़ू से मोहन लाल ब्राक्टा, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल को सीपीएस बनाया था. फिलहाल, स्थिति ये है कि राज्य सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। वहीं, भाजपा ने भी सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की है.

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