रामपुर बुशहर: मेले महज मनोरंजन और कारोबार तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि उनका विस्तार संस्कृतियों का विस्तार कहा जाता है. हिमाचल का लवी मेला भी एकसाथ कई संस्कृतियों के रंग लिए हुए है. सदियों से मनाए जा रहे इस मेले की धूम काबुल, कंधार, तिब्बत और उज्बेकिस्तान तक रही है. शिमला जिला के तहत सतलुज नदी के किनारे बसे रामपुर के खाते में लवी मेले का इतिहास और वर्तमान दर्ज है. वैसे इस मेले का इतिहास करीब साढ़े तीन सदी पुराना है. मेला हर साल नवंबर महीने में आयोजित किया जाता है.
लवी मेले में हर बार की तरह ड्राइफ्रूट चिलगोजा विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. चिलगोजे को ड्राइ फ्रूट्स का राजा भी कहा जाता है. चिलगोजा बहुत दुर्लभ प्रकार का ड्राईफ्रूट है. ये ड्राईफ्रूट सिर्फ किन्नौर जिले में ही कुछ एक स्थानों पर पाया जाता है. चिलगोजे को पूरी तरह से पक कर तैयार होने में 18 माह का समय लगता है. इसका पेड़ चीड़ के पेड़ की तरह होता है और इसमें लगने वाले फल से ही चिलगोजा निकलता है, जिसे निकालना काफी मुश्किल रहता है. यही कारण है कि इसकी कीमत बहुत अधिक रहती है.
लवी मेले में व्यापारियों को मिल रहे अच्छे दाम
स्थानीय निवासी और चिलगोजा व्यापारी रवी नेगी ने बताया कि, 'चिलगोजा अपने स्वास्थ्य लाभों और अनोखे स्वाद के लिए जाना जाता है. इस बार चिलगोजे के दाम 2000 से 2200 रुपये प्रति किलो तक मिल रहे हैं. ऊंचे दामों के बावजूद इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है. लोग इसे खरीदने के लिए बड़ी संख्या में आ रहे हैं. इस मेले में चिलगोजा न केवल स्थानीय लोगों, बल्कि देश-विदेश से आए लोगों के बीच भी चर्चा का विषय बन गया है. मेले में चिलगोजा की बिक्री ने स्थानीय व्यापारियों को भी अच्छी आमदनी का अवसर दिया है.'
क्या होता है चिलगोजा
चिलगोजा एक प्रकार का शंकुवृक्षीय बीज है, जो अपने औषधीय गुणों और पौष्टिकता के लिए जाना जाता है. यह विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में पाया जाता है, जो अपने ऊंचे पहाड़ों और ठंडे वातावरण के लिए प्रसिद्ध है. किन्नौर के अलावा यह भारत के अन्य हिमालयी क्षेत्रों में भी सीमित मात्रा में पाया जाता है. इसके अलावा ये अफगानिस्तान, पाकिस्तान और कुछ अन्य मध्य एशियाई देशों में भी उपलब्ध है.
कृत्रिम रूप से ही पकता है चिलगोजा
चिलगोजे का वैज्ञानिक नाम पाइनस जिरार्डिआना है. इसे मुख्य रूप से अपने पौष्टिक गुणों और ऊर्जा देने वाले तत्वों के लिए जाना जाता है. इसे तैयार करने की प्रक्रिया में प्राकृतिक विधियों का उपयोग होता है. इसमें किसी भी रासायनिक प्रसंस्करण की आवश्यकता नहीं होती. चिलगोजा एक ठोस शंकुनुमा फल के अंदर बंद होता है. इस शंकुनुमा फल के बीज को ही चिलगोजा कहा जाता है. इस शंकुनुमा फल को तोड़ने और बीज प्राप्त करने की प्रक्रिया में मेहनत लगती है. चिलगोजे की दुर्लभता और फल से चिलगोजे को निकालने की कठिन प्रक्रिया के कारण इसकी कीमत अधिक होती है. अंतर्राष्ट्रीय लवी मेले में इसे 2 हजार से 2200 रुपये प्रति किलोग्राम तक बेचा जा रहा है.
स्वास्थ्य के लिए माना जाता है लाभदायक
स्वास्थ्य विभाग रामपुर में कार्यरत डाक्टर अंकिता शर्मा का कहना है कि, 'चिलगोजा कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है. इसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, और खनिज होते हैं, जो शरीर को ऊर्जा देने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होते हैं. चिलगोजे में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड ह्रदय स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक माना जाता है, जो रक्तचाप (बीपी) को नियंत्रित करने और हृदय रोगों के खतरे को कम करने में सहायक है. इसके अलावा, इसमें एंटीऑक्सीडेंट तत्व होते हैं, जो त्वचा और बालों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक होते हैं.'
चिलगोजा में पाए जाते हैं ये विटामिन
डॉक्टर अंकित ने बताया कि, 'इसमें पाए जाने वाले विटामिन E और K भी बहुत लाभकारी हैं. विटामिन E त्वचा की चमक को बनाए रखने और इसे स्वास्थ्य बनाए रखने में सहायक होता है, जबकि विटामिन K रक्त में थक्का जमाने की प्रक्रिया को नियमित करता है. इसके साथ ही, इसमें पाए जाने वाला आयरन शरीर में हीमोग्लोबिन के निर्माण में मदद करता है, जिससे एनीमिया जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है.'
मिठाइयों और पकवानों में भी होता है इस्तेमाल
चिलगोजे का सेवन न केवल स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, बल्कि यह ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. हिमालयी क्षेत्रों में इसे ठंड के मौसम में अधिक उपयोग किया जाता है, क्योंकि यह शरीर को गर्मी प्रदान करने में सहायक होता है. इसका उपयोग स्नैक्स के रूप में, मिठाइयों में और कई प्रकार के पकवानों में किया जाता है. इसका तैलीय और मीठा स्वाद इसे विशेष बनाता है और इस वजह से यह शादी-विवाह जैसे खास मौकों पर भी उपयोग में लाया जाता है.
बता दें कि चिलगोजा एक महंगे, लेकिन अत्यधिक पौष्टिक सूखे मेवे के रूप में जाना जाता है. हिमालय की ऊंचाइयों पर कठोर परिस्थितियों में इसके उत्पादन की प्रक्रिया इसे और भी खास बनाती है. इसकी सीमित उपलब्धता, उत्पादन की कठिनाई और इसके स्वास्थ्य लाभों के कारण इसकी कीमत अधिक होती है. इसके पौष्टिक गुण इसे एक विशेष स्थान दिलाते हैं.