शिमला: विश्व धरोहर सप्ताह का उद्देश्य लोगों को उनकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति जागरूक करना है. हर साल 19 से 25 नवंबर तक विश्व धरोहर सप्ताह मनाया जाता है. इसका मकसद लोगों को उनकी संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए जागरूक करना है. हिमाचल में भी कई विश्व धरोहर स्थल हैं. इसमें शिमला-कालका विश्व धरोहर स्थल विश्व भर में जाना जाता है.
कालका शिमला रेलवे का निर्माण भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान किया गया था. इसका मकसद ब्रिटिश भारतीय रेल नेटवर्क को ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला से जोड़ना था. यह भारत में सबसे खूबसूरत पहाड़ी रेलवे में से एक है. ये 96.6 किलोमीटर लंबा नैरो गेज रेलवे ट्रैक है. ये ट्रैक शानदार इंजीनियरिंग कौशल का प्रमाण है. इस नैरो-गेज कालका-शिमला रेलवे, जिसे अक्सर टॉय ट्रेन लाइन कहा जाता है.
रोमांच से भरा है सफर
कालका रेलवे स्टेशन से रवाना होने के तुरंत बाद ही रेल लाइन की चढ़ाई शुरू हो जाती है. टॉय ट्रेन के नाम से मशहूर ये गाड़ी देवदार, चीड़, ओक और अन्य पेड़ों के जंगलों के बीच से 22 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से गुजरती हुई लाइन के साथ-साथ आगे बढ़ती है. इस रेलवे ट्रैक पर गॉथिक शैली में बने पुलों की भव्यता का अनुभव होता है. खिड़की के पास बैठक प्राकृतिक सौंदर्य को निहारना, हरे-भरे पेड़ों से आती ठंडी हवा और फूलों की खुशबू को महसूस करना इस सफर का हिस्सा है.
कई छोटे बड़े पुल और टनल से होकर गुजरती है ट्रेन
आज कालका-शिमला रेलमार्ग के 121 वर्ष पूरे हो चुके हैं. यह रेलमार्ग नॉर्दन रेलवे के अंबाला डिवीजन के तहत आता है. 96 किलोमीटर से लंबे इस ट्रैक से ट्रेन 103 सुरंगों और कुल 869 छोटे बड़े पुलों से होकर गुजरती है. बड़ोग रेलवे स्टेशन पर 33 नंबर बड़ोग सुरंग इस ट्रैक की सबसे बड़ी है (निर्माण के समय ये दुनिया की सबसे लंबी सुरंग थी). इसकी लंबाई 1143.61 मीटर है. इस सुरंग से निकलने में ट्रेन लगभग अढ़ाई मिनट का समय लेती है. इस ट्रैक पर मूल रूप से 107 टनलों का निर्माण किया गया था. इसमें 919 मोड़ हैं. सबसे तीखा मोड़ 48 डिग्री का है. इस रेलमार्ग पर 18 स्टेशन हैं. टॉय ट्रेन, विस्टाडोम और दूसरी स्पेशल ट्रेनें सैलानियों के लिए ट्रैक पर चलाई जाती हैं.
2008 में मिला वर्ल्ड हैरिटेज का दर्जा
देश-विदेश के सैलानी इस रेलवे ट्रैक पर सफर करने के लिए उत्सुक रहते हैं. इस ट्रैक पर कनोह के पास मल्टी-आर्क गैलरी ब्रिज बनाया गया है. आर्क शैली में बने चार मंजिला पुल में 34 मेहराबें हैं, जो इस पुल को खूबसूरत बनाती हैं. 1896 में इस रेल मार्ग को बनाने का कार्य दिल्ली-अंबाला कंपनी को दिया गया था. 9 नवंबर 1903 को कालका-शिमला रेल मार्ग की शुरूआत हुई थी. जुलाई 2008 में इसे यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल किया था.
बाबा भलखू का अविस्मरणीय योगदान
बड़ोग में टनल नंबर 33 के निर्माण का जिम्मा ब्रिटिश हुकूमत में कर्नल बड़ोग को सौंपा था, लेकिन कर्नल बड़ोग इस काम को पूरा नहीं कर पाए, क्योंकि टनल निर्माण के रास्ते में पहाड़ी आ गई थी. पहाड़ी के दोनों छोरों से टनल निकाल रहे मजदूर आपस में दोनों सिरों को नहीं मिला पाए और रास्ता भटक गए. इससे ब्रिटिश सरकार को बहुत घाटा हुआ और कर्नल बड़ोग से काम छीन लिया गया. इसके बाद सोलन के स्थानीय निवासी बाबा भलखू जो अनपढ़ थे उन्होंने छड़ी के सहारे टनल निर्माण का रास्ता सुझाया था और बाद में इसमें कामयाबी भी मिली. आज भी बाबा भलखू का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है.
इस ट्रैक पर दौड़ती हैं पाच रेलगाड़ियां
इस ट्रैक पर पांच रेलगाड़ियां सैलानियों और लोगों को रोजाना सफर करवाती हैं. शिवालिक एक्सप्रेस, हिमालयन क्वीन, मेल एक्सप्रेस, हिम दर्शन एक्सप्रेस इस ट्रैक पर दौड़ती हैं.
बॉलीवुड की कई फिल्मों की हो चुकी है शूटिंग
ये खूबसूरत ट्रैक शुरू से ही पर्यटकों के साथ साथ बॉलीवुड के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है. कई बॉलीवुड फिल्मों और गानों की शूटिंग इस ट्रैक पर हुई है. दोस्त फिल्म के गाने गाड़ी बुला रही है, मुझको अपना बना लो, ऑल इज वेल, सनम रे, रमैया वस्तावैया, जब वी मेट जैसी फिल्मों और कई म्यूजिक एलबम की शूटिंग इस ट्रैक पर हुई है.
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