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कण-कण देवता, घर-घर वीर: लगभग 1165 गैलेंट्री अवॉर्ड्स से दमक रही हिमाचल की शौर्य तस्वीर - gallantry awards of himachal

himachal gallantry awards: हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के साथ साथ वीरभूमि के नाम से भी जाना जाता है. हिमाचल की मिट्टी के कण-कण में अगर देवता का वास है तो यहां के घर वीर सपूतों की कहानियों सुनाते हैं. देश का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर हिमाचल के ही सपूत मेजर सोमनाथ शर्मा को मिला था. उनके आगे हिमाचल के वीर जवानों ने इस परंपरा को कायम रखते हुए रण भूमि में शौर्य का प्रदर्शन कर कई पदक जीते हैं.

GALLANTRY AWARDS OF HIMACHAL
प्रतीकात्मक तस्वीर (एएनआई)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 7, 2024, 7:29 PM IST

शिमला: कण-कण में देव शक्तियां और घर-घर में जांबाज वीर...हिमाचल प्रदेश की पहचान को यदि रेखांकित करना हो तो सबसे पहले जहन में यही तस्वीर आती है. देश में इस समय भारतीय वायुसेना के शौर्य के किस्से घर-घर कहे जा रहे हैं. महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर देवभूमि हिमाचल प्रदेश आस्था की गंगा में डुबकी लगा रही है. साथ ही, अपने शूरवीरों को भी याद कर रही है. भारतीय सेना के शौर्य वाली तस्वीर में सबसे अधिक चमक देवभूमि के वीरों ने भरी है.

शुक्रवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश के शूरवीरों को वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया. ये अवॉर्ड सेना, अर्ध सैनिक बलों और पुलिस जवानों को प्रदान किया गए. ये अवॉर्ड बहादुर जवानों को उनके अदम्य साहस के लिए प्रदान किए गए. हिमाचल के दो सपूतों कुलदीप मांटा और पवन धंगल को भी सर्वोच्च बलिदान के बाद इस सम्मान से सम्मानित किया गया.

देश के पहले परमवीर थे सोमनाथ शर्मा

चार परमवीर चक्र, दस महावीर चक्र, 51 वीरचक्र सहित हिमाचल के जांबाज अब तक वीरभूमि हिमाचल की झोली 1165 गैलेंट्री अवॉर्ड्स से भर चुके हैं. गर्व की बात है कि हिमाचल के वीर इस सिलसिले को निरंतर जारी रखने की हुंकार भरते हैं. यदि जनसंख्या को आधार माना जाए तो भारतीय सेना में सबसे अधिक शौर्य सम्मान हिमाचल के हिस्से ही आए हैं. मेजर सोमनाथ शर्मा ने जिस शौर्य गाथा की नींव रखी थी, उस पर मेजर धनसिंह थापा, कैप्टन विक्रम बत्रा और सूबेदार संजय कुमार सहित सैंकड़ों वीरों ने बहादुरी की शानदार इमारत खड़ी की है.

4 लाख से अधिक सैनिक परिवार

युद्ध भूमि व अन्य शौर्य मोर्चों पर हिमाचल के वीरों ने लगभग 1165 सम्मान हासिल किए हैं. इनमें भारतीय सेना के सर्वोच्च सम्मान के तौर पर 4 परमवीर चक्र, 2 अशोक चक्र, दस महावीर चक्र, 19 कीर्ति चक्र, 51 वीरचक्र, 90 शौर्य चक्र और 989 अन्य सेना मैडल शामिल हैं. आबादी के लिहाज से देखा जाए तो भारतीय सेना को मिले शौर्य सम्मानों में से हर दसवां मैडल हिमाचली के वीर के सीने पर सजा है. करीब 72 लाख की आबादी वाले हिमाचल प्रदेश में 1.06 लाख से अधिक भूतपूर्व फौजी हैं. यानी एक लाख से अधिक फौजी देश की सेवा करने के बाद सेवानिवृत जीवन जी रहे हैं. यदि सेवारत सैनिकों व अफसरों की बात की जाए तो हिमाचल प्रदेश के तीन लाख से अधिक जांबाज इस समय सेना में हैं. इस तरह करीब साढ़े चार लाख से अधिक हिमाचली परिवार भारतीय सेना का गौरवमयी हिस्सा हैं.

करगिल युद्ध में दो परमवीर चक्र

अदम्य साहस की दृष्टि से देखें तो मेजर सोमनाथ शर्मा की बहादुरी ने देश के पहले परमवीर चक्र की गाथा लिखी. कबायली हमले के दौरान मेजर सोमनाथ की दिलेरी किसी परिचय का मोहताज नहीं है. इसी तरह 1962 की जंग में मेजर धनसिंह थापा ने अपने जीवट से सारी दुनिया को कायल किया था. करगिल की जंग में कैप्टन विक्रम बत्रा का खौफ पाकिस्तान की सेना पर इस कदर था कि वो उसे शेरशाह पुकारते थे. पीड़ा की बात ये कि कैप्टन बत्रा ने अंतिम सांस युद्ध भूमि में ली. उन्हें बलिदान उपरांत परमवीर चक्र मिला. आज ही के दिन कैप्टन विक्रम बत्रा करगिल में शहीद हुए थे.

करगिल जंग में ही बिलासपुर के राइफलमैन (अब सूबेदार मेजर) संजय कुमार का साहस अतुलनीय रहा है. इस तरह कण-कण में देवता और घर-घर में शूरवीर की परंपरा की तस्वीर लगातार दमक रही है. हिमाचल में मंडी को छोटी काशी कहा जाता है. अर्की के बातल क्षेत्र का नाम भी छोटी काशी है. बैजनाथ का शिव मंदिर पौराणिक गाथाएं कहता है. मणिमहेश शिव का निवास है. ऐसे में महाशिवरात्रि पर्व पर प्रदेश पर भक्ति का रंग चढ़ा हुआ है. मंडी में अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव हो रहा है. वहीं, देश में बहादुर विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान ने भारतीय सेना के शौर्य के इतिहास, वर्तमान व भविष्य को दिलेरी की सुनहरी चमक से भर दिया है. इसी का प्रभाव है कि हिमाचल प्रदेश के भूतपूर्व सैनिक एक सुर में दुश्मन देश को सबक सिखाने के लिए फिर से जंग के मैदान में जाने के लिए तैयार हैं.

आज ही के दिन शहीद हुए थे कैप्टन विक्रम बत्रा

करगिल के युद्ध क्षेत्र में प्वाइंट 4875 पर पाकिस्तानी सेना ने कब्जा कर लिया था. यहां से पाकिस्तानियों को खदेड़ने के लिए विक्रम बत्रा अपने साथियों के साथ मोर्चा संभाले थे. इस दौरान उनकी बटालियन को भारी गोलीबारी का सामना करना पड़ा था. अपनी टीम को लीड कर रहे विक्रम बत्रा ने सफलतापूर्वक चोटी पर कब्जा कर लेते हैं, लेकिन अपने एक साथी की जान बचाने के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा 7 जुलाई 1999 को अपने प्राणों का बलिदान दे देते हैं.

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