चंडीगढ़: इस साल हरियाणा विधानसभा चुनाव में चार गठबंधन देखने को मिल सकते हैं. जिनमें कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, और सपा एक साथ आ सकते हैं. वहीं, भाजपा के साथ हिलोपा और जनशक्ति पार्टी के अलावा RLD की चर्चा है. जबकि क्षेत्रीय दल इनेलो बसपा और जेजेपी और एएसपी चंद्रशेखर रावन की पार्टी एक साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं.
गठबंधन के सहारे चुनौती: इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव के सियासी रण में बीजेपी-कांग्रेस की जबरदस्त टक्कर देखने को मिल सकती है. इससे पहले लोकसभा चुनाव में भी प्रदेश की जनता ने बीजेपी और कांग्रेस को पांच-पांच यानी बराबर सीटों पर चुना है. अब बीजेपी और कांग्रेस अन्य दलों के साथ मिलकर चुनावी रण में पूरी तैयारी से उतरने को तैयार है. जीत का ताज किसके सिर सजेगा ये कहना अभी आसां नहीं, हालांकि चुनावी नतीजों में ही तस्वीर साफ हो पाएगी. लेकिन इस मुकाबले को जहां पहले इनेलो और बसपा गठबंधन ने चुनौती दी, तो वहीं, बिखराव का सामना करने वाली जेजेपी ने भी मुकाबले को कड़ा करने के लिए आज समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया.
किसकी होगी जीत?: इन दोनों गठबंधन के साथ बीजेपी ने हिलोपा और जन शक्ति पार्टी का साथ लिया. हालांकि जनशक्ति पार्टी की तरफ से शक्ति रानी शर्मा बीजेपी में शामिल हो चुकी हैं. पार्टी ने उन्हें कालका से उम्मीदवार भी बना लिया है. वहीं हिलोपा को भी पार्टी सीट देगी. हालांकि कितनी यह साफ नहीं है. हालांकि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के बयान के मुताबिक यह एक सीट का गठबंधन हो सकता है. वहीं, चर्चा ये भी है कि बीजेपी आरएलडी को भी सीट दे सकती है. इसका फैसला पार्टी हाईकमान करेगा.
AAP पर कितनी मेहरबान होगी कांग्रेस?: इधर कांग्रेस के नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी हरियाणा में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन के मूड में है. इसके लिए दोनों दलों के नेताओं को आपस में चर्चा भी शुरू हो चुकी है. माना जा रहा है कि आप दस सीटों पर चुनाव लड़ना चाह रही है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस पांच सीट देने को तैयार है. शायद इस पर दोनों दलों में सहमति भी बन जाए. वहीं, समाजवादी पार्टी के भी कांग्रेस केंद्र आने की चर्चा तेज है.
राजनीतिक पार्टियों की गठबंधन मजबूरी: ऐसे में सवाल यह है कि आखिर हरियाणा में प्रमुख सियासी दल क्यों हुए गठबंधन को मजबूर? इसको लेकर राजनीतिक मामलों के जानकार क्या सोचते हैं, यह भी अहम हो जाता है. इस पर राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी अपनी बात कहते हुए इन सभी गठबंधनों को सभी दलों के वर्तमान हालात की जरूरत मानते हैं. वे कहते हैं कि गठबंधन का मूल स्वभाव वोट को बिखरने से रोकने का होता है. हालांकि सभी दलों की गठबंधन को लेकर दूर की रणनीति रहती है. वे कहते हैं कि कांग्रेस और भाजपा के सामने दोनों क्षेत्रीय दल इनेलो और जेजेपी गठबंधन के साथ मैदान में उतार रहे हैं. हालांकि कांग्रेस के गठबंधन की तस्वीर अभी पूरी साफ नहीं हुई है, न बीजेपी के गठबंधन की तस्वीर स्पष्ट हो पाई है.
बीजेपी-कांग्रेस की चुनावी टक्कर: उनका कहना है कि हर दल की अपनी परिस्थितियां हैं अपना गणित है. इनेलो और जेजेपी के सामने अपने हार्डकोर वोटर्स को वापस लाने की चुनौती है. वे कहते हैं कि इनेलो और जेजेपी के सामने क्षेत्रीय दल के तौर पार्टी के अस्तित्व को बरकरार रखने की भी चुनौती है. वे कहते हैं कि वोटर भी संभावनाओं के आधार पर किसी पार्टी की तरफ जाता है. ऐसे में अगर संभावना सरकार में आने की नहीं दिखती हैं. तो हार्ड कोर वोटर भी दूर हो जाता है. इन हालातों में इनेलो और जेजेपी के सामने कमोबेश एक सी स्थिति बनी हुई है.