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इन तीन वजहों से खींवसर में मिली हनुमान बेनीवाल को मात, ज्योति मिर्धा की चक्रव्यूह में फंसी RLP

20 साल बाद खींवसर में ढहा हनुमान बेनीवाल का सियासी किला. भाजपा के रेवंत राम डांगा से चुनाव हारी कनिका बेनीवाल.

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ज्योति मिर्धा की चक्रव्यूह में फंसी RLP (ETV BHARAT GFX)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 5 hours ago

नागौर : खींवसर में 20 साल बाद भाजपा को जीत मिली है. 2008 से 2023 तक इस सीट पर लगातार बेनीवाल की पार्टी आरएलपी का कब्जा रहा, लेकिन इस बार उपचुनाव में भाजपा ने हनुमान बेनीवाल को उनके ही गढ़ में मात दे दी. भाजपा प्रत्याशी रेवंत राम डांगा ने आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल की धर्मपत्नी कनिका बेनीवाल को 13870 वोट से चुनाव हरा दिया. हालांकि, इस पराजय के तीन बड़े कारण रहे, जिसकी अब जोर शोर से चर्चा हो रही है.

चुनाव प्रचार के दौरान बेनीवाल ने दिए हल्के बयान : दरअसल, चुनाव प्रचार के दौरान नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल ने भाजपा प्रत्याशी रेवंत राम डांगा को लेकर कई हल्के बयान दिए. उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को कभी अनपढ़ कहा तो कभी पानी की बाल्टी भरने वाला. वो यहीं शांत नहीं हुए, बल्कि आगे तो उन्होंने यहां तक कह दिया कि उन्हें भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ने में भी शर्म आती है. उनके इन्हीं बयानों से भाजपा के कार्यकर्ता खासा भड़क गए. आखिरकार बेनीवाल को चुनावी मात देने के लिए बूथों पर कड़ी मेहनत की और अब परिणाम सबके सामने है.

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जनता ने बचाई राजा साहब की मूंछ : राज्य के चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर राजघराने से आते हैं. उन्होंने चुनाव प्रचार के अंतिम दिन बड़ा बयान दिया था. मंत्री ने कहा था कि अगर भाजपा प्रत्याशी रेवंत राम डांगा चुनाव हार गए तो वो अपनी मूंछ और सिर मुंडवा लेंगे. उसके बाद आरएलपी के कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर तंज कसना शुरू किया और लिखा कि 23 नवंबर को खींवसर के चौराहे पर राजा साहब का मुंडन होगा. इस बात से राजपूतों में गुस्सा पनपा और पहली बार खींवसर के राजपूत एकजुट होकर पोलिंग बूथों तक पहुंचे और जमकर मतदान किए. खासकर राजपूत समाज की महिलाओं ने बड़े पैमान पर वोटिंग की और राजा साहब की बातों का मान रखा.

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ज्योति मिर्धा की चक्रव्यूह में फंसी RLP : इस पूरे चुनाव में ज्योति मिर्धा ने हनुमान बेनीवाल के खिलाफ ऐसा चक्रव्यूह बनाया कि पूरी आरएलपी उसमें फंसते चली गई. भाजपा के किसी भी जाट नेता ने चुनाव प्रचार के दौरान आरएलपी उम्मीदवार कनिका बेनीवाल पर कोई हमला नहीं किया. साथ ही विशेष रणनीति के तहत जाट बाहुल्य इलाकों में उसी समाज के नेताओं को प्रचार के लिए भेजा गया. इस बीच हनुमान बेनीवाल जाटों को भी लामबंद नहीं कर पाए. उल्टे उनके हल्के बयानों का वोटरों पर बुरा असर पड़ा और उन्हें अपने गढ़ में ही पराजय का सामना करना पड़ा.

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