सरगुजा : गुरु पूर्णिमा पर्व हर गुरु शिष्य के लिए विशेष होती है. इस दिन शिष्य प्रयास करते हैं कि उनको गुरु की सेवा का अवसर और सानिध्य प्राप्त हो सके. लोग अपने गुरु से मिलने सैंकड़ों किलोमीटर दूर जाते हैं. इस दिन गुरु पूजन का भी विशेष महत्त्व है. ऐसी मान्यता है कि आज ही के दिन चारों वेदों का ज्ञान देने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था. इसी वजह से इसे कारण इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है.
गुरु दीक्षा का क्या है महत्व ? :सनातन धर्म में माना जाता है कि बिना गुरु के किसी भी कार्य की सिद्धि संभव नहीं होती. इसलिए लोग शिष्य बनकर अपने गुरु से दीक्षा लेते हैं और अपने पुण्य कर्मों से गुरु का आशीर्वाद पाकर खुद का कल्याण करते हैं. लेकिन गुरु दीक्षा को लेकर समाज में बहुत दुविधा देखने को मिलती है. ज्योतिषाचार्य पं. दीपक शर्मा ने बताया, "हमारी सनातन परम्परा में शुरू से ये रहा है कि विवाह के पहले दीक्षा हो जाती है. जैसे ही किसी बच्चे का स्कूल में दाखिला होता है, वैसे ही 7 साल की उम्र में दीक्षा हो जाती है.
"ब्राम्हणों में देखेंगे की जनेऊ संस्कार में उसे गायत्री की दीक्षा दी जाती है, ताकी वो पूर्ण रूप से ब्राम्हण हो सके. 7 वर्ष में बच्चे मन कोमल होता है. जैसे एक खाली भूमि है, उसमें जैसा बीज बोइएगा, वो वैसा तैयार होगा. इस उम्र में बच्चे का मन निर्विकार होता है. उसमें जैसे संस्कार के बीज लगाएंगे, वैसा वो वृक्ष बनेगा. शंकराचार्य परम्परा में भी बच्चों का दीक्षा संस्कार 7 वर्ष की उम्र में शुरू हो जाता है." - पं. दीपक शर्मा, ज्योतिषाचार्य