पटना: बिहार के पूर्व प्रशासनिक अधिकारी मुरारी मोहन शर्मा ने कोबराऔर करैत को कई बार पकड़ा है और 20 से अधिक सांपों को पकाकर खा भी चुके हैं. हालांकि उम्र के साथ-साथ शरीर की फुर्ती कम हुई है और अब सांपों को पकड़ने का एडवेंचर छोड़ दिया है. आसपास में यदि कोई बड़ा सांप दिखता है तो वह उसे पकड़ने के लिए जाते हैं. रेस्क्यू करके सांप को सुरक्षित छोड़ देते हैं.
कोबरा-करैत खा चुके हैं मुरारी मोहन : मुरारी मोहन शर्मा बताते हैं कि उन्होंने सांप पकड़ने का एडवेंचर लगभग 10 सालों तक किया है. साल 1972 में मैट्रिक के बाद उन्होंने सांप पकड़ना शुरू किया और 1981 तक उन्होंने सांपों को पकड़ा है. फिर उनकी नौकरी लग गई और वह बिहार सरकार की सेवा में जुड़ गए फिर यह सब छोड़ दिया.
"बचपन में गंगा किनारे केकड़ा पकड़ने जाता था. एक दिन गलती से सांप पकड़ लिया. उसने कई बार काटा, लेकिन कुछ नहीं हुआ, क्योंकि सांप जहरीला नहीं था. उस दिन से मेरा मनोबल बढ़ गया और सांपों के बारे में जानने की इच्छा होने लगी. 22 प्रकार के 150 से अधिक सांप पकड़ चुका हूं." - मुरारी मोहन शर्मा, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी
डिब्बे में रखे कई प्रिजर्व सांपों को कर चुके हैं डोनेट : मुरारी मोहन शर्मा बताते हैं कि उन्होंने 22 प्रकार के सांप को पकड़ा है और 150 से अधिक बार उन्होंने सांप को पकड़ा है. पहले वह सांप को पकड़ के फॉर्मलीन और ग्लिसरीन के सोल्यूशन में प्रिजर्व करके रखते थे. लेकिन 20 वर्ष पहले उन्होंने सभी डब्बे में रखे सांपों को स्कूल कॉलेजों को डोनेट कर दिया. कुछ को साइंस कॉलेज को दे दिया तो कुछ को अन्य कॉलेजों को डोनेट कर दिया.
8 महीने पहले आखिरी बार पकड़ा था रसल वाइपर :उन्होंने बताया कि बिहार में करैत प्रजाति के 5-6 प्रकार के सांप है और तीन प्रकार के कोबरा हैं. यही जहरीले होते हैं. इसके अलावा बाढ़ के दिनों में मध्य प्रदेश के तरफ से आने वाली नदियों से कई बार रसल वाइपर भी आ जाते हैं जो बहुत ही खतरनाक होते हैं. लेकिन यह मूल रूप से यहां नहीं मिलते हैं. उन्होंने लगभग 8 महीने पहले पटना में लॉ कॉलेज के किनारे एक रसल वाइपर को पकड़ा था और यह अभी उनका आखिरी सांप है जिसे उन्होंने पकड़ा है.
150 से अधिक सांपों को पकड़ा.. 20 खाए :मुरारी मोहन बताते हैं कि बचपन में जब उन्हें सांपों के प्रति रुचि जगी तो वह उससे जुड़ी जानकारियां और उससे जुड़ी पुस्तकों को खूब पढ़ते थे. उनके चाचा चिकित्सक थे और लंदन से छापने वाली एक मैगजीन को प्रत्येक महीने वह मंगवाते थे. इस मैगजीन को वह भी पढ़ते थे जिसमें एक लेखक सांपों पर खूब लिखा करते थे. विभिन्न जगहों पर लोग जहां सांप खाते हैं उसके बारे में भी लिखा जाता था. इसके बाद उन्हें भी सांप खाने की इच्छा जागी और उन्होंने लगभग 20 बार कोबरा और करैत सांप को पकड़ कर खाया है.
'चाचा डॉक्टर थे इसलिए सांप खाने की हुई हिम्मत': मुरारी मोहन बताते हैं कि जब वह 15 वर्ष के थे तो उन्हें अलकतरा में फंसा हुआ एक कोबरा दिखा था. पहली बार उन्हें सांप खाने की इच्छा हुई और मैगजीन में पढ़ते थे कि सांप कैसे खाया जाता है. घर में उनके चाचा जी डॉक्टर थे, ऐसे में सोचा कि यदि कुछ होता है, तबीयत बिगड़ी है तो उनके चाचा जी संभाल लेंगे. इसके बाद उन्होंने मैगजीन में लिखी बात स्टेप बाय स्टेप फॉलो किया. सबसे पहले मिट्टी का तेल डालकर कोबरा का रेस्क्यू किया और फिर उसे भून कर खा गए. उसका स्वाद उन्हें अच्छा लगा.
सांप का स्वाद चिकेन जैसा: उन्होंने बताया कि जहरीले सांप के माथे पर पीछे में गर्दन के पास एक ग्रंथि होती है जिसमें सांप का वेनम होता है जो विषैला दांत से जुड़ी होती है. इसके 6 इंच नीचे से सांप को काटना होता है और उसके बाद इसे पका कर खाया जाता है. खाने में यह चिकेन के नेक जैसा लगता है.
'काट चुका है करैत' : मुरारी मोहन ने बताया कि जो जहरीले सांप होते हैं उनको विशेष सावधानी से पकड़ना होता है ताकि उनका शरीर कहीं जख्मी ना हो. यदि शरीर जख्मी हुआ तो विष का इन्फेक्शन शरीर के अंदर फैल सकता है और यह खतरनाक हो सकता है. उन्होंने बताया कि वह जब सांप पकड़ा करते थे तो कोई स्नेक कैचर उपकरण नहीं होता था और हाथों से ही सांप को पकड़ा करते थे. एक बार करैत को पकड़ने में हाथों में करैत ने काट लिया था. जो जहरीला दांत होता है इसका थोड़ा ही हिस्सा उंगलियों में गया तब तक उन्होंने सांप को पकड़ कर फेंक दिया. इसके बाद पीएमसीएच में जाकर उन्होंने एंटी वेनम लिया था. चिकित्सकों ने 10 घंटे उनकी निगरानी की थी.
सांपों को कैसे करते थे प्रिजर्व : मुरारी मोहन बताते हैं कि जब वह मेडिकल की तैयारी करते थे तो उनके कमरे में एक कोबरा सांप आ गया था. सांप लगभग 25 से 30 वर्ष का होगा क्योंकि वह काफी लंबा और मोटा था. इस सांप को पकड़ने के बाद उन्होंने केओएच के सोल्यूशन में उसे ब्वायल करके उसके चमड़े को अलग किया और हड्डियों को अलग किया.