पटना: हर साल देश 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाता है. यह संविधान ही है जो हमें राज्यों के संघ के रूप में एक मजबूत भारत राष्ट्र की परिकल्पना को साकार करता है. 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकृत किया गया और 26 जनवरी 1950 को देश में यह संविधान लागू हुआ.
भारत का संविधान दिवस: संविधान बनाने के लिए जब संविधान सभा का गठन हुआ तो अस्थाई रूप से संविधान सभा के पहले अध्यक्ष बैरिस्टर सच्चिदानंद सिन्हा बने. संविधान सभा के पहले सभापति सच्चिदानंद सिन्हा बने. इसके बाद स्थाई रूप से डॉ राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का सभापति निर्वाचित किया गया. संविधान सभा में सभी राज्यों के प्रतिनिधि थे जिसमें बिहार से कुल 38 प्रतिनिधि थे.
संविधान तैयार होने के बाद लाया गया पटना: संविधान सभा ने 2 साल 11 महीने 18 दिन में संविधान को तैयार कर लिया. 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकृत किया गया. तय हुआ कि 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू हो जाएगा, लेकिन इससे पहले महत्वपूर्ण था कि संविधान सभा के जो सदस्य हैं उनका संविधान पर हस्ताक्षर हो. कई माननीय सदस्य दिवंगत होने के कारण उसपर हस्ताक्षर नहीं कर सके लेकिन जब संविधान लागू होने जा रहा था. तब कई ऐसे सदस्य भी थे जो बीमारी के कारण संविधान के मूल कॉपी पर हस्ताक्षर नहीं कर सके थे. इन्हीं में एक शिक्षाविद् बैरिस्टर सच्चिदानंद सिन्हा थे.
राजेंद्र प्रसाद मूल प्रति को लेकर पहुंचे थे: कानून की जानकारी और प्रदेश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले शिक्षाविद एडवोकेट कुमार प्रियांक ने बताया कि संविधान जब तैयार हो गया तो 24 जनवरी को विशेष विमान से संविधान के मूल कॉपी को पटना लाया गया था. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता वाली संविधान सभा की टीम के कई सदस्य संविधान की मूल कॉपी को लेकर पटना आए थे.
"मूल कॉपी पर सच्चिदानंद सिन्हा का हस्ताक्षर जरुरी था. सच्चिदानंद सिन्हा उस समय काफी बीमार रहते थे और पटना में निवास करते थे. वह संविधान सभा के प्रथम सभापति थे और संविधान निर्माण में उनका भी योगदान था. इसके कारण संविधान सभा के सदस्यों ने तय किया कि संविधान के मूल कॉपी पर सच्चिदानंद सिन्हा का हस्ताक्षर हो."- कुमार प्रियांक, शिक्षाविद एडवोकेट
सच्चिदानंद सिन्हा ने अपने आवास पर किया हस्ताक्षर: राजेंद्र प्रसाद की अगुवाई में संविधान सभा की टीम 24 जनवरी को विशेष विमान से पटना पहुंची और सच्चिदानंद सिन्हा के आवास पर गई. आज इस आवास में बिहार बोर्ड का कार्यालय चलता है. यहां संविधान के मूल प्रति पर सच्चिदानंद सिन्हा ने हस्ताक्षर किया. 26 नवंबर को जब संविधान अंगीकृत किया गया तो उस समय तक अधिकांश सदस्यों ने संविधान की प्रति पर हस्ताक्षर कर दिया था. कुछ ही सदस्य थे जो बीमार होने के कारण उस समय तक हस्ताक्षर नहीं कर पाए थे.
दो दिनों के सभापति बने थे सच्चिदानंद सिन्हा: बाद में संविधान लागू होने के दो दिन पूर्व तक कुल 284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए. जो दिवंगत हो गए थे वह हस्ताक्षर नहीं कर सके. हालांकि सच्चिदानंद सिन्हा बहुत बीमार रहते थे और संविधान लागू होने के कुछ दिनों बाद ही 6 मार्च 1950 को वह दिवंगत हो गए. सच्चिदानंद सिन्हा दो दिनों के लिए 9 दिसंबर और 10 दिसंबर के लिए संविधान सभा के सभापति बने थे और 11 दिसंबर को राजेंद्र प्रसाद को सभापति चुना गया था.
बड़े विद्वान थे सच्चिदानंद सिन्हा: कुमार प्रियांक ने बताया कि सच्चिदानंद सिन्हा बड़े विद्वान थे. इसके कारण राजेंद्र प्रसाद भी उन्हें अपना गुरु मानते थे. संविधान तैयार करने के लिए बनी संविधान सभा में सबसे वरिष्ठतम सदस्य थे डॉ सच्चिदानंद सिन्हा और संविधान सभा का अध्यक्ष पद के लिए उनके नाम का प्रस्ताव आचार्य जेबी कृपलानी ने किया था. डॉ सच्चिदानंद सिन्हा ने बैरिस्टरी की पढ़ाई लंदन के इनर टेंपल कॉलेज से किया था. साल 1910 से 1920 तक केंद्रीय विधान परिषद, जो आज का राज्यसभा कहा जाता है उसके प्रतिनिधि निर्वाचित हुए थे.
सच्चिदानंद सिन्हा का लंबा प्रशासनिक अनुभव: कुमार प्रियांक ने बताया कि इसके अलावा वह बिहार उड़ीसा संयुक्त प्रांत के लेजिसलेटिव काउंसिल के अध्यक्ष भी बने थे. इसके साथ ही 1937 से 1946 तक बिहार विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर के रूप में रहे. इस दौरान 1936 से 1944 तक 8 वर्ष पटना विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर रहे. लंबे प्रशासनिक अनुभव और कानून की जानकारी होने के कारण संविधान के निर्माण में उनकी जानकारी बेहद महत्व रखती थी. इसके कारण यह संविधान सभा में थे.
बिहार राज्य के जनक कहे जाते हैं सच्चिदानंद बाबू: प्रियांक कुमार बताते हैं कि सच्चिदानंद सिन्हा के संबंध में सबसे रोचक बात यह है कि इन्हें बिहार राज्य का जनक कहे जाने का दर्जा प्राप्त है. साथ ही साथ है साल 1946 में अमेरिका के विदेश मंत्री डीन एसएचऑन ने भारत में सबसे पहले टेलीग्राम भेजा था तो सच्चिदानंद सिन्हा को ही भेजा था. टेलीग्राम से देश में कोई संदेश सबसे पहले आया तो सच्चिदानंद सिन्हा के पास आया था. साल 2015 में जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जनवरी महीने में भारत पहुंचे थे तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस टेलीग्राम मैसेज की मूल कॉपी को दिखाया था और उसकी प्रति भेंट की थी.
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