खूंटीःजिले में पर्याप्त बारिश नहीं होने से नदियों में पानी कम है. इस कारण कई नदियों का अस्तित्व ही समाप्त होने के कगार पर है. यह आने वाले भविष्य के लिए खतरे का संकेत हैं. जानकार बताते हैं कि जंगल, पहाड़ों और नदियों से बालू के अवैध उठाव के कारण मौसम का रुख बदल गया है. जंगलों की कटाई लकड़ी तस्कर कर रहे हैं, पहाड़ों की कटाई खनन माफिया और नदियों की कटाई बालू तस्कर कर रहे हैं. ऐसे में पर्यावरण के संतुलन पर गंभीर संकट पैदा हो गया है.
सावन में भी नदियों में पर्याप्त पानी नहीं
पर्यावरण संकट के कारण सावन के महीने में भी पर्याप्त बारिश नहीं हुई है. वहीं प्रकृति की बेरुखी की मार अब गरीब किसान और आम ग्रामीण झेलने को विवश हैं. नदियों में लगातार घटता जलस्तर भविष्य के जलसंकट का प्रमुख कारण बनता जा रहा है. नदियों में पानी की कमी के कारण सिर्फ खरीफ ही नहीं, रबी फसल की खेती पर संकट हो सकता है.
बालू के दोहन से नदियां हो रही नाले में तब्दील
नदियों में पानी रहे और नदियां नाले में तब्दील न हो इसके लिए शासन-प्रशासन के साथ साथ आम ग्रामीण को भी सजग होने की आवश्यकता है. अधिकारी भी मानते हैं कि वनों की कटाई और बालू का दोहन इसका मुख्य कारण है. बालू के दोहन के कारण नदियों में जल धारण की क्षमता कम हो जाती है और भू जल स्तर में कमी आ जाती है. इसके कारण गर्मियों में पानी जल्दी सूखने लगता है.
नदियों की स्थिति देख किसानों की चिंता बढ़ी
मानसून की बेरुखी और नदियों की स्थिति ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है. मानसून के दौरान भी अच्छी बारिश नहीं होने से नदियों में पर्याप्त पानी नहीं है. इसके अलावा भी कई कारक हैं, जो नदियों के सूखने की वजह बनी है.वहीं जिले के कारो और छाता नदी में भी पर्याप्त पानी नहीं है.