वाशिंगटन : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दोनों देशों के बीच हुए असैन्य परमाणु समझौते को आगे बढ़ाने के लिए सहमत हो गए. इसके तहत अमेरिका भारत में परमाणु रिएक्टरों की डिजाइन पर काम करेगा. यह समझौता 16 साल पहले मनमोहन सिंह की सरकार के समय हुआ था. ऊर्जा के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच यह समझौता हुआ था.
इस असैन्य परमाणु समझौते ने अमेरिका और भारत के आपसी संबंधों को और अधिक प्रगाढ़ बना दिया. इसकी वजह से उच्च प्रौद्योगिकी और रक्षा के क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी का रास्ता प्रशस्त हुआ. ट्रंप भारत को इससे जुड़ी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने पर भी सहमत हुए हैं. दोनों नेताओं ने अपने संयुक्त बयान में स्थानीयकरण और संभावित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से भारत में अमेरिकी डिजाइन वाले परमाणु रिएक्टरों के निर्माण के लिए मिलकर काम करने पर तैयार हो गए हैं.
अमेरिका-भारत 123 असैन्य परमाणु समझौते को पूरी तरह से साकार करने की अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा की. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को केंद्रीय बजट पेश करते हुए भारत के परमाणु दायित्व कानून के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा अधिनियम में संशोधन की योजना की घोषणा की.
भारत के परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 में कुछ धाराएं नागरिक परमाणु समझौते के कार्यान्वयन में आगे बढ़ने में बाधा बन कर उभरी हैं. बयान में कहा गया है कि दोनों पक्षों ने परमाणु ऊर्जा अधिनियम और परमाणु रिएक्टरों के लिए परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम (सीएलएनडीए) में संशोधन करने के लिए भारत सरकार द्वारा हाल ही में बजट घोषणा का स्वागत किया.
इसमें कहा गया है कि दोनों पक्षों ने सीएलएनडीए के अनुसार द्विपक्षीय व्यवस्था स्थापित करने का निर्णय लिया है, जो नागरिक दायित्व के मुद्दे को संबोधित करेगा और परमाणु रिएक्टरों के उत्पादन और तैनाती में भारतीय और अमेरिकी उद्योग के सहयोग को सुगम बनाएगा. परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962 परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में निजी क्षेत्र द्वारा निवेश को प्रतिबंधित करता है. प्रस्तावित संशोधन से इस प्रावधान को हटाने की उम्मीद है.
जनवरी में, अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी), इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर) और भारतीय दुर्लभ पृथ्वी (आईआरई) पर प्रतिबंध हटा दिए, इस कदम को वाशिंगटन द्वारा भारत के साथ नागरिक परमाणु सहयोग पर आगे बढ़ने के इरादे के रूप में देखा गया.
जुलाई 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के साथ बैठक के बाद भारत और अमेरिका ने असैन्य परमाणु ऊर्जा में सहयोग करने की महत्वाकांक्षी योजना का अनावरण किया. कई वार्ताओं के बाद ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौते पर आखिरकार तीन साल बाद मुहर लगी. इससे अमेरिका को भारत के साथ असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी साझा करने की अनुमति मिलने का मार्ग प्रशस्त होने की उम्मीद थी.
हालांकि, भारत में सख्त दायित्व कानूनों सहित कई कारणों से नियोजित सहयोग आगे नहीं बढ़ सका. जनरल इलेक्ट्रिक और वेस्टिंगहाउस जैसी अमेरिकी परमाणु रिएक्टर निर्माताओं ने भारत में परमाणु रिएक्टर स्थापित करने में गहरी रुचि दिखाई थी. पिछले कुछ वर्षों में, भारत छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) में सहयोग के लिए अमेरिका और फ्रांस सहित कई देशों के साथ बातचीत कर रहा है.