रांची:झारखंड में 24 दिसंबर को हुई डीलिस्टिंग रैली के जवाब में चार फरवरी 2024 को विभिन्न आदिवासी संगठनों की ओर से मोरहाबादी मैदान में आदिवासी एकता महारैली निकाली जाएगी. जनाधिकार मंच के नेतृत्व में निकाले जाने वाली आदिवासी एकता महारैली को लेकर बुधवार को संयोजकों ने रैली के लिए निर्मित दस्तावेज का लोकार्पण किया.
आदिवासी मुद्दों के साथ समझौता कभी नहीं, हम लड़ेंगे और जीतेंगे-बंधु तिर्कीः आदिवासी एकता महारैली को लेकर जनजातीय समाज से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दे के मसौदे का विमोचन को लेकर पूर्व मंत्री और झारखंड सरकार के समन्वय समिति के सदस्य बंधु तिर्की ने कहा है कि आदिवासियों से जुड़े मुद्दे पर कभी भी किसी भी स्थिति में समझौता नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि आदिवासियों की ज्वलंत समस्याओं पर गंभीर आदिवासी संगठन और समान विचारधारा वाले लोगों को साथ लेकर लड़ाई लड़ी जाएगी. बंधु तिर्की ने कहा कि आदिवासी जनाधिकार मंच के बैनर तले 04 फरवरी 2024 को आयोजित विशाल आदिवासी एकता महारैली में आदिवासियों के ज्वलंत मुद्दों, समस्याओं और उनकी वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ से संबंधित विशेष मसौदे का लोकार्पण एक स्वागत योग्य कदम है .उन्होंने कहा कि 04 फरवरी की रैली के मुख्य अतिथि आदिवासी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवाजीराव मोघे होंगे. इसके साथ ही गुजरात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री नारायण राठवा और अन्य आदिवासी नेता भी आदिवासी एकता महारैली में शिरकत करेंगे.
आदिवासी एकता महारैली को लेकर रहें सावधान- जनजाति सुरक्षा मंचः वहीं डीलिस्टिंग महारैली करने वाले जनजाति सुरक्षा मंच ने आज संवाददाता सम्मेलन कर राज्य के जनजातीय समाज के लोगों से आदिवासी एकता महारैली से सावधान रहने की अपील की है. 04 फरवरी 2024 को प्रस्तावित आदिवासी एकता महारैली को कांग्रेस पार्टी के नेता सह पूर्व मंत्री बंधु तिर्की को धर्म परिवर्तित ईसाई बताते हुए जनजाति सुरक्षा मंच ने लोगों से सावधान रहने की अपील की है. कांग्रेस पार्टी किसी भी कीमत पर आदिवासियों, जनजातियों का भला नहीं कर सकती है, यह पहले भी साबित हुआ है और अब भी हो रहा है. 1967-70 के डैश में बाबा कार्तिक उरांव के द्वारा 348 सांसदों का हस्ताक्षरयुक्त एक प्रस्ताव सदन में पेश करने का हवाला देते हुए जनजाति सुरक्षा मंच के नेताओं ने कहा कि उस समय कांग्रेस की ही सरकार थी, लेकिन डीलिस्टिंग का कानून नहीं बनाया गया और उस बिल में यह था कि जो जनजाति अपनी मूल जनजाति, धर्म-संस्कृति, परंपरा, रूढ़ी प्रथा इत्यादि छोड़ दे तो उसे अनुसूचित जनजाति नहीं समझा जाएगा. अगर उस समय कांग्रेस पार्टी चाहती तो वह बिल पास हो जाता और मूल जनजातियों का हक और अधिकार स्वतः मिल जाता, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. इसका नतीजा यह हुआ कि मूल जनजातियों के आरक्षण का लाभ धर्मांतरित ईसाइ ले रहे हैं.