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लखनऊ में लेखपाल भर्ती में नियुक्ति की मांग लेकर BJP दफ्तर पहुंचे दिव्यांग, धरना-प्रदर्शन

अभ्यर्थियों ने कहा, चयनित होने के बाद भी कर अयोग्य घोषित किया गया

लखनऊ में प्रदर्शन करते दिव्यांग.
लखनऊ में प्रदर्शन करते दिव्यांग. (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 4 hours ago

लखनऊ:लेखपाल भर्ती से बाहर किए गए OH (हाथ-पैर से दिव्यांग) अभ्यर्थियों का संघर्ष लगातार जारी है. शुक्रावर को लखनऊ भाजपा प्रदेश कार्यालय के बाहर दिव्यांग भारतीयों ने धरना प्रदर्शन किया. फतेहपुर से आई हुई दिव्यांग अभ्यर्थी उमा समेत कई अभ्यर्थियों ने कहा कि राजस्व परिषद की ओर से हाल ही में घोषित किए गए परिणामों में OH श्रेणी के दिव्यांग अभ्यर्थियों को अंतिम रूप से बाहर कर दिया गया है. यह तब हुआ जब पहले ही उन्हें विभिन्न चयन प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद दस्तावेज़ सत्यापन के लिए बुलाया गया था. इस भर्ती प्रक्रिया के दौरान कुल 309 पद दिव्यांगों के लिए आरक्षित थे, जिनमें OH श्रेणी के लिए 122 पद आवंटित थे. फिर भी 188 पदों को खाली छोड़ते हुए इस श्रेणी के अभ्यर्थियों को अयोग्य घोषित कर दिया गया.

लखनऊ में प्रदर्शन करते दिव्यांग. (Video Credit; ETV Bharat)

दिव्यांग अभ्यर्थी राम निहाल द्विवेदी ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि भर्ती के दौरान दस्तावेज़ सत्यापन में अधिकारियों ने दिव्यांग अभ्यर्थियों पर दबाव डालकर एक बयान लिखवाया कि उनके चयन पर अंतिम निर्णय आयोग के हाथ में है. अभ्यर्थियों का आरोप है कि चयनित होने के बावजूद उन्हें योग्य न मानते हुए बाहर कर दिया गया है. इस मुद्दे पर जवाब मांगने पर भर्ती अधिकारियों ने कहा कि OH दिव्यांग लेखपाल का कार्य करने में सक्षम नहीं हैं. अभ्यर्थियों का कहना है कि वे अपनी शारीरिक क्षमता के परीक्षण के लिए भी तैयार हैं, लेकिन प्रशासन इस पर ध्यान देने को तैयार नहीं.

कहा कि यह भर्ती प्रक्रिया दिव्यांग अधिकारों और आरक्षण नीति का उल्लंघन करते हुए उन्हें रोजगार से वंचित कर रही है. इसे लेकर 1 जनवरी से ईको गार्डन, लखनऊ में OH दिव्यांग अभ्यर्थी धरना दे रहे हैं. उन्होंने इस दौरान मुख्यमंत्री दफ्तर में कई ज्ञापन सौंपे, जनता दरबार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात भी की, लेकिन आश्वासन के अलावा अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.

कहा कि स्थिति बिगड़ने के बावजूद, 30 जुलाई से अभ्यर्थी भूख हड़ताल पर बैठे हैं, और कुछ की स्थिति गंभीर होती जा रही है. दुर्भाग्य से अब तक न तो सरकार और न ही किसी अधिकारी ने उनके हालात का जायजा लिया. इस परिस्थिति ने दिव्यांग अभ्यर्थियों में असंतोष और निराशा को और बढ़ा दिया है.

अभ्यर्थियों का कहना है कि "भीख नहीं अधिकार चाहिए" और यह उनके आत्म-सम्मान और अस्तित्व की लड़ाई है. वे सरकार से मांग कर रहे हैं कि उन्हें आरक्षण के तहत मिले अधिकारों का सम्मान करते हुए, उनकी नियुक्ति प्रक्रिया को निष्पक्ष रूप से पुनः जांचा जाए.

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