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जोधपुरी बंधेज को मिली दुनियाभर में पहचान, जीआई टैग मिलने से 25 फीसदी काम बढ़ा - बंधेज की बढ़ रही है डिमांड

जोधपुर टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के मामले में काफी नाम रखता हैं. इसमें भी यहां बंधेज का अपना विशिष्ठ स्थान हैं, जिसकी धूम पूरे देश और दुनिया में हैं.

जीआई टैग मिलने से 25 फीसदी काम बढ़ा
जीआई टैग मिलने से 25 फीसदी काम बढ़ा

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 9, 2024, 9:14 PM IST

जोधपुरी बंधेज को मिली दुनियाभर में पहचान

जोधपुर. जोधपुरी बंधेज का व्यापार दुनियाभर में प्रसिद्ध हो चुका है. इसकी मांग भी लगातार बढ़ रही है. जोधपुरी बंधेज की मांग देश-विदेश में तेजी से बढ़ रही है. इस बंधेज के कपड़े से जुड़ा करोड़ों रुपये का व्यापार हो रहा है. जोधपुर बंधेज के नाम से मशहूर रंग-बिरंगी डिजाइन के कपड़े महिलाओं के पहली पसंद हैं. यहां आने वाले देशी विदेशी पर्यटक भी इसके मुरीद होते हैं.

अब इस बंधेज को बड़ी पहचान इसे जीआई टैग मिलने से मिली हैं, जिसका फायदा इसका काम करने वाले रंगरेज परिवारों के साथ साथ व्यापारियों को भी हो रहा हैं. अक्टूबर में टैग मिलने के बाद तीन माह में 25 फीसदी काम बढ़ा है. बंधेज के बारे क्वेरी भी बढ़ गई है. बंधेज बनाने वालों को फुर्सत नहीं है. राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनी में आगे जगह मिलने लगी है.

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जोधपुरी बंधेज की बढ़ रही है डिमांड: गत वर्ष नाबार्ड के सहयोग से जोधपुरी बंधेज को भौगोलिक संकेतक का प्रमाण पत्र जारी किया गया है. नाबार्ड जोधपुर के विकास अधिकारी मनीष मंडा ने बताया कि बंधेज को जीआई टैग दिलाने का प्रोजेक्ट हमने हाथ लिया था. इसमें करीब साढे तीन साल का समय लगा. इसके लिए जोधपुर बंधेज क्राफ्ट सोसायटी बनाई गई जिसे यह टैग प्रदान किया गया है. जोधपुर में करीब तीन हजार परिवार हैं जो इस काम से जुड़े हैं. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दस हजार से ज्यादा लोग इस में लगे हैं. जोधपुर में बंधेज के दुपट्टे पगड़ी व साड़ी तैयार करने का काम मुस्लिम छिपा जाति और चिड़वा जाति के लोग करते हैं. करीब 3000 परिवार बंधेज की रंगाई काम कर रहे हैं और लगातार इसकी मांग भी बढ़ रही है. इसके जरिए घरेलू महिलाओं को भी इससे रोजगार मिल रहा है.

जोधपुर रेलवे स्टेशन विशिष्ट उत्पाद श्रृंखला के तहत बंधेज की स्टॉल लगी हुई हैं. जीआई टैग की कवायद शुरू करने वाले स्वर्गीय इस्हाक के पुत्र मो. आसिफ इसका संचालन करते हैं. आसिफ का कहना है कि जोधपुर में बंधेज का काम करने वाले कारिगर बडी संख्या में हैं. बंधेज को विशिष्ट पहचान से मिलने से देश में कहीं पर भी कोई दूसरा व्यक्ति जोधपुरी बंधेज के नाम से कोई उत्पाद नहीं बेच सकता. यह कला हमारे क्षेत्र की पहचान है.

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50 करोड़ का निर्यात:बंधेज की मांग विदेशों में भी बहुत है. खासकर स्कर्ट और स्कार्फ की ज्यादा डिमांड रहती है, जबकि देश में बंधेज की साड़ी, दुपट्टा व लहंगा का चलन बना हुआ है. अकेले जोधपुर के भीतरी शहर के कपड़ा बाजार की लगभग हर दुकान में बंधेज मिलता है. बंधेज में सूती, रेशमी कपड़ों का उपयोग होता है. करीब पचास करोड़ का एक्सपोर्ट सालाना जोधपुर क्षेत्र से होता है, जबकि यहां पूरा बाजार 70 करोड़ का है. इसे प्रोत्साहित करने उदृदेश्य से राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने जीआई टैग दिलवाया है.

जीआई टैग का फायदा:जीआई टैग से बंधेज की पारंपरिक कला की प्रामाणिकता और इसकी विशेषता को अलग स्थान मिलेगा. खास तौर से जोधपुरी बंधेज को नकल से बचाया जा सकेगा. मोहम्मद आसिफ बताते हैं कि टैग मिलने के बाद से एग्जीबिशन में हमें अब आगे जगह मिलने लगी है. 25 फीसदी काम भी बढ़ा है. सरकारी सुविधाएं भी मिलने लगी हैं. इसके अलावा जोधपुर क्षेत्र में यह काम करने वाले अपने ब्रांड निर्माण करेंगे तो यह टैग उनके लिए फायदेमंद होगा.

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