लखनऊ :वरिष्ठ रंगकर्मी राज बिसारिया ने अपना पूरा जीवन रंगमंच के विकास और उत्थान के लिए लगा दिया. आधुनिक रंगमंच की वकालत करने वाले वरिष्ठ रंगकर्मी राज बिसारिया ने रंगमंच को ही अपनी दुनिया बना ली. रंगमंच से ज्यादा वो किसी और को प्यार नहीं करते थे. इसके लिए उन्होंने कभी भी समझौता नहीं किया. वो पूरे सिस्टम से लड़े, लेकिन रंगमंच से समझौता नहीं किया. आज वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वो हमेशा दिलों में रहेंगे. शुक्रवार को वरिष्ठ रंगकर्मी राज बिसारिया के निधन के बाद कला जगत पर उनकी ही चर्चाएं होती रहीं.
'भारतेंदु नाट्य अकादमी की स्थापना की' :वरिष्ठ रंगकर्मी और अभिनेता अनिल रस्तोगी ने बताया कि अखिल भारतीय स्तर पर उत्तर प्रदेश के नाटकों की जो स्थिति थी, उसे सम्मान दिलाने के लिए राज बिसारिया ने बहुत मेहनत की. अपने व्यक्तिगत प्रयासों से लखनऊ में भारतेंदु नाट्य अकादमी की स्थापना की. यह मील का पत्थर साबित हुआ. अब तक न विद्या केवल दिल्ली तक केंद्रित थी, उसे विकेन्द्रित कर के छोटे-छोटे शहरों के रंगमंच से जोड़कर राष्ट्रीय स्तर पर उनको पहचान दिला पाने में सफल रहे. राज बिसारिया को जब सन 1969 में लंदन से निमंत्रण आया तो उन्हें लगा कि 5-6 महीने का जो ये प्रशिक्षण है, यह सही मौका है रंगमंच को जानने, करीब से देखने और समझने का.
अपने देश में विधिवत रंगमंच के प्रशिक्षण की जो कमी रह गई थी, उसकी भरपाई यहां की जा सकती है. यहां उन्हें दुनिया भर के महान नाटक देखने को मिले. नाटकों में भाग लेने वाले कलाकारों की तैयारी की प्रक्रिया को करीब से ऑब्जरवेशन करने का मौका मिला. रंगमंच के लिए राज बिसारिया को सत्ता से कई स्तर पर लड़ाई लड़नी पड़ी. उनके खिलाफ न्यायालय में मुकदमें भी चले. रंगमंच से जुड़े कई परंपरागत रंगकर्मियों ने तरह-तरह के आक्षेप लगाकर व्यक्तिगत स्तर इनका विरोध किया, लेकिन राज बिसारिया का जो व्यक्तित्व था वो कभी झुका नहीं. 23 सितंबर 1975 में जिस भारतेंदु नाट्य अकादमी की स्थापना की, 1980 में रंगमंडल बनाया, सन 1986 में सत्ता के हस्तक्षेप और अंदरूनी उठा-पटक से निराश होकर उन्होंने त्यागपत्र दे दिया.
'बड़े से बड़े कलाकारों को बेबाक होकर टोकते थे' : वरिष्ठ रंग कर्मी सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ ने कहा कि राज बिसारिया ने अपने वक्त में जो लड़ाई लड़ी थी, उसी का परिणाम इतने वर्षों के बाद आज हमें देखने को मिल रहा रहा है कि मध्य प्रदेश, त्रिपुरा, सिक्किम, बनारस, बेंगलुरु, चंडीगढ़, हैदराबाद जैसे शहरों, महानगरों में नाटक की अलग-अलग विधाओं में स्पेशलाइजेशन कोर्स की पढ़ाई जा रही है. वो हमेशा हर चीज परफेफ्ट करना चाहते थे, इसके लिए वो बड़े से बड़े कलाकारों को बेबाक होकर टोकते थे. मेरा तो बहुत पुराना नाता रहा है, उनके साथ कई तरह के नाटक किए हैं.