पटना: होली, छठ और दुर्गा पूजा कुछ ऐसे पर्व-त्योहार हैं जिसमें पलायन करने वाले बिहारी प्रवासीलौटकर घर आते हैं. इन पर्व-त्योहारों को मनाने के बाद वापस उन प्रदेशों में लौट जाते हैं. होली की समाप्ति के बाद एक बार फिर से बुधवार को पटना स्टेशन पर यात्रियों की भीड़ देखने को मिली. पटना कोयंबटूर होली स्पेशल ट्रेन पटना जंक्शन पर जैसे ही पहुंची तो हजारों की संख्या में बिहारी मजदूर ट्रेन में लटककर सफर करने को मजबूर दिखे.
पटना रेलवे स्टेशन पर भीड़: इस भीड़ को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार सरकार के जो रोजगार देने के दावे हैं वो खोखले साबित हुए हैं. ये सवाल है कि आखिर बिहारी मजदूर इतनी ज्यादा संख्या में बाहरी प्रदेशों में जाकर क्यों काम करते हैं. ये सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि पिछले काफी समय से बिहार में सुशासन होने का दावा सरकारें करती आई हैं, तो फिर क्यों लाखों की संख्या में बिहार के लोग दूसरे राज्यों में जा कर मजदूरी करने को मजबूर हैं?
'मजदूरी रोज नहीं मिलता है':अभिषेक कुमार ने बताया कि मैं पिछले 8 वर्षों से कोयंबटूर रहता हूं. वहां पर मजदूरी करता हूं और मजदूरी करके अपने घर परिवार का भरण पोषण करता हूं. प्रतिदिन 500 कमा लेता हूं. उन्होंने कहा कि बिहार में काम मिलता है लेकिन प्रतिदिन नहीं मिलता है. जिस कारण से घर परिवार चलाना काफी मुश्किल होता है कोई कल कारखाना भी बिहार में नहीं है अगर बिहार में होता तो बाहर प्रदेश जाने की जरूरत नहीं होती.
बिहार में नहीं मिलता काम का दाम: समस्तीपुर जिला के रहने वाले अनिल कुमार ने कहा कि हम 15 साल से तमिलनाडु में रहते हैं. फर्नीचर का काम करते हैं. बिहार में उचित पैसा नहीं मिलता है. दुख तो इस बात का है कि हम अपने मां-बाप पत्नी बच्चा को छोड़कर मजदूरी के लिए दूसरे प्रदेश में रहते हैं और पर्व के मौके पर आकर दो-चार दिन रहते हैं और फिर चले जाते हैं. वहां के कमाई से घर परिवार अच्छे से चल जाता है.
'परिवार का शौक पूरा करने जाते हैं प्रदेश' :जीतन यादव ने कहा कि हम पिछले 10 सालों से केरल के एक कैंटीन में खाना बनाते हैं. बिहारी व्यंजन को वहां के लोगों पसंद करते हैं."बिहार में होटल या रेस्टोरेंट में काम करने पर पैसा उचित नहीं मिलता है यहां पर 10 से 12 हजार मिलते हैं. वहां पर 25 हजार मिलता है. भले ही घर परिवार से अलग रहते हैं लेकिन घर परिवार वाले लोगों को खुश रखने के लिए उनका शौक पूरा करने के लिए बाहर प्रदेश जाते हैं." महंगाई दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है लेकिन बिहार में मेहनत का उचित पैसा नहीं मिलता है. यही मजबूरी है कि बाहर प्रदेश जाना पड़ता है.
'यहां न रोजगार और न ही दिहाड़ी':मधुबनी जिला के रहने वाले जयप्रकाश कुमार ने सरकार पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि हर लोग अपने घर परिवार के साथ रहना चाहता है. लेकिन पिछले कई सालों से हमारे गांव के लोग और मेरे भाई कोयंबटूर में रहते हैं."पिछले 1 साल से हम भी वहीं पर जाकर मजदूरी करते हैं. बिहार में ना तो उतना रोजगार मिलता है और ना ही देहाड़ी मिलता है. यहां पर अगर काम करे तो घर परिवार चलाना भी मुश्किल हो जाएगा."
पलायन चिंता का विषय: टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज पटना के माइग्रेशन रिसर्च सेंटर के पूर्व चेयरपर्सन पुष्पेंद्र कुमार ने कहा कि सवाल यह महत्वपूर्ण नहीं है कि लोग पलायन क्यों करते हैं. लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि जो लोग प्लान करते हैं उनको पलायन से मिलता क्या है. उनके परिवार के ऊपर में क्या असर होता है पलायन बहुत ही चिंता का विषय और सचमुच बहुत ही चिंतनीय स्थिति है.