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'पार्टी का नाम और सिंबल दोनों लेंगे, चाचा को सटने नहीं देंगे', चिराग की खुली चुनौती - CHIRAG PASWAN

सवाल बरकरार है कि असली लोजपा कौन? 4 साल बाद भी क्लियर नहीं 'झोपड़ी' का क्या होगा? पर चिराग की हुंकार ने साफ कर दिया.

चिराग पासवान.
चिराग पासवान. (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Nov 28, 2024, 7:52 PM IST

पटना : चिराग पासवान ने आज दावा किया कि लोग जनशक्ति पार्टी (LJP) का नाम और उसका चुनाव चिन्ह बंग्ला बहुत जल्द उनको मिलेगा. साथ ही उन्होंने साफ कर दिया कि चाचा पशुपति पारस के साथ मिलकर चलना अब संभव नहीं है.

LJP का स्थापना दिवस : दरअसल, आज से 25 साल पहले 28 अक्टूबर 2000 को रामविलास पासवान ने लोग जनशक्ति पार्टी (LJP) का गठन किया था. रामविलास पासवान द्वारा गठित लोक जनशक्ति पार्टी का आज 25 वां स्थापना दिवस समारोह है. आज चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास का स्थापना दिवस समारोह पार्टी कार्यालय एक व्हीलर रोड में मनाया गया.

चिराग पासवान (ETV Bharat)

''लोक जनशक्ति पार्टी नाम और उसका चुनाव चिह्न बंग्ला बहुत जल्द मिलेगा. मामला निर्वाचन आयोग के अधीन है और यह अंतिम प्रक्रिया से गुजर रहा है. बहुत जल्द पार्टी का पुराना लोजपा नाम और उसका चुनाव चिह्न हमें मिलेगा.''- चिराग पासवान, प्रमुख, एलजेपीआर

शिवसेना और एनसीपी की तरह फैसला संभव : चिराग पासवान के पार्टी के नाम और सिंबल के दावे पर वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि, जिस तरीके से महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी को लेकर निर्वाचन आयोग ने फैसला दिया था. अब यह संभव है कि बिहार में भी लोग जनशक्ति पार्टी के नाम और सिंबल को लेकर निर्वाचन आयोग कोई फैसला ले.

ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

''चिराग पासवान का दावा और पुख्ता होता है, जब झारखंड में भी उनके विधायक इस विधानसभा चुनाव में जीत कर आए हैं. बिहार में लोकसभा चुनाव में पार्टी की जिस तरीके से जीत हुई थी, उसी समय से यह कयास लगाए जा रहे थे कि चिराग पासवान के पास फिर से पार्टी का नाम और सिंबल वापस आएगा.''- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

बिल्डिंग से पुरानी यादें जुड़ी हैं : पार्टी की स्थापना दिवस समारोह पर चिराग पासवान ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि पार्टी यह स्थापना दिवस गांधी मैदान में मनाने का फैसला किया था. लेकिन पार्टी कार्यालय आवंटित होने के बाद कार्यकर्ताओं ने इसी पार्टी कार्यालय में स्थापना दिवस मनाने का फैसला किया. इस बिल्डिंग से पुरानी यादें जुड़ी हुई है. आज इस कार्यालय में स्थापना दिवस समारोह करके बहुत खुशी हो रही है.

सभा को संबोधित करते चिराग पासवान. (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

'चाचा से कोई समझौता नहीं' : चिराग पासवान ने आज एक बार फिर से साफ कर दिया कि परिवार से अलग होने का फैसला उनके चाचा पशुपति कुमार पारस का था. जब पशुपति कुमार पारस उन लोगों से अलग हुए थे तो उन्होंने उनकी मां और उनको रामविलास पासवान के खून का हिस्सा नहीं माना था. वह परिवार में बड़े थे लेकिन जिस तरीके से उन्होंने उनको परिवार से अलग किया. अब शायद संभव नहीं है कि वे लोग कभी एक हो सकते हैं.

असली वारिस की लड़ाई :रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस और रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान में राजनीतिक विरासत को लेकर जंग शुरू हुई. पार्टी की टूट के बाद भी दोनों नेता रामविलास पासवान की विरासत को आगे बढ़ाने की बात करते रहे. पार्टी में टूट के बाद भी दोनों पार्टी स्थापना दिवस मनाते आ रहे हैं.

ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

4 साल से दो जगह स्थापना दिवस :लोग जनशक्ति पार्टी का स्थापना दिवस समारोह पिछले 4 साल से दो जगह मनाया जाता है. आज भी पशुपति कुमार पारस खगड़िया के अपने पैतृक गांव शहरबन्नी में पार्टी का स्थापना दिवस मनाया. वहीं चिराग पासवान 4 वर्षों के बाद अपने पिताजी के पार्टी कार्यालय एक व्हीलर रोड में स्थापना दिवस समारोह मनाया.

चिराग का संकल्प : लोक जनशक्ति पार्टी में टूट के बाद चिराग पासवान राजनीतिक रूप से अकेले हो गए थे. पशुपति कुमार पारस केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने. लेकिन विरासत की जंग के समय ही चिराग पासवान ने कहा था कि वह अपने पिताजी के सभी अरमान को पूरा करेंगे.

चिराग पासवान का 5 संकल्प और उसपर विजय

1. रामविलास की विरासत :राजनीति में अकेले पड़ चुके चिराग पासवान ने हिम्मत नहीं हारी. चिराग पासवान ने पूरे बिहार में बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट का विजन लेकर सभी जिलों का दौर शुरू किया. रामविलास पासवान के पुत्र होने के नाते लोजपा कार्यकर्ताओं का झुकाव चिराग पासवान के साथ दिखने लगा. यह उनकी पहली जीत थी. बिहार यात्रा के दौरान जिस तरीके से उनकी सभा में भीड़ जुटी थी उसके बाद धीरे-धीरे बीजेपी भी उनके प्रति सहानुभूति रखने लगी.

अपनी रैली के दौरान चिराग पासवान. (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

2. उपचुनाव में बीजेपी को समर्थन : एनडीए में नहीं रहते हुए भी चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा की तीन सीटों के उप चुनाव में बीजेपी का समर्थन किया. मोकामा, गोपालगंज एवं कुढ़नी उपचुनाव में चिराग पासवान ने खुलकर भाजपा का साथ दिया और बीजेपी के प्रत्याशियों के पक्ष में रोड शो एवं रैलियां की. इसके बाद साफ हो गया कि चिराग पासवान की एनडीए में वापसी हो रही है.

समर्थकों से हाथ मिलाते चिराग पासवान. (ETV Bharat)

3. NDA में वापसी : 2024 लोकसभा चुनाव से पहले चिराग पासवान की एनडीए में वापसी हो गई. चिराग पासवान के एनडीए में वापसी के साथ ही पशुपति कुमार पारस राजनीति में अकेले पड़ने लगे. एनडीए ने पशुपति कुमार पारस को एक भी सीट नहीं दिया, जबकि चिराग पासवान की पार्टी को भाजपा ने 5 सीट दिया. लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी को सभी पांच सीटों पर जीत हासिल हुई. इस तरह चिराग पासवान ने पार्टी में हुई टूट का बदला अपने चाचा से ले लिया.

जेपी नड्डा और चिराग पासवान (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

4. मोदी मंत्रिमंडल में जगह : 2024 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार एनडीए की सरकार का गठन हुआ. जिस मंत्रालय में कभी उनके पिताजी बैठा करते थे. उसके बाद उनके चाचा पशुपति कुमार पारस भी इस विभाग के मंत्री बने. मोदी सरकार में चिराग पासवान को वही मंत्रालय मिला. चिराग पासवान की यह चौथी बड़ी राजनीतिक जीत थी.

पीएम मोदी और चिराग पासवान (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

5. लोजपा का पुराना बंग्ला वापस : पार्टी में टूट के बाद लोक जनशक्ति पार्टी का कार्यालय एक व्हीलर रोड राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी का कार्यालय बना. लेकिन लोकसभा में चुनाव की जीत के बाद चिराग पासवान ने फिर से उसे पार्टी ऑफिस को वापस लेने का संकल्प लिया. इसी माह 14 नवंबर 2024 को फिर से एक व्हिलर रोड स्थित वह कार्यालय फिर से चिराग पासवान को अलॉट कर दिया गया. यह चिराग पासवान की पांचवीं राजनीतिक जीत थी.

ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

''चिराग पासवान राजनीति के अब मझे हुए खिलाड़ी हो गए हैं. उन्होंने जिस तरीके से अपने हर अपमान का बदला लिया है, इसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि चिराग का बदला अब पूरा हो गया है.''- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

चिराग की राजनीति पर जानकारों की राय : वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि चिराग पासवान ने जिस तरीके से पार्टी और परिवार में टूट के बाद अलग-अलग हुए थे. उन्होंने अपने संघर्ष के बदौलत राजनीति में फिर से अपने आप को स्थापित किया. अपने संघर्ष के कारण ही चिराग पासवान न केवल जनता के बीच में अपनी पहचान बनाई बल्कि फिर से एनडीए में वापसी हुई और मोदी मंत्रिमंडल में जगह बनाई है.

रामविलास पासवान का राजनीतिक सफर : खगड़िया के छोटे से गांव शाहरबन्नी में 5 जुलाई 1946 को रामविलास पासवान का जन्‍म हुआ था. राजनीतिक सफर की शुरुआत 1967 के दशक में बिहार विधानसभा के सदस्य के तौर पर हुई. अलौली विधानसभा से पहली बार विधायक चुने गए. 1977 के लोकसभा चुनावों से वह पूरे देश में सुर्खियों में आए. हाजीपुर सीट पर चार लाख मतों के रिकार्ड अंतर से जीत हासिल की. इसके बाद वह 1980, 1989, 1991 (रोसड़ा), 1996, 1998, 1999, 2004 और 2014 में फिर से सांसद चुने गए. राजनीति में आने के बाद रामविलास पासवान करीब 50 वर्ष तक बिहार ही नहीं देश की राजनीति में छाए रहे.

पिता राम विलास के साथ चिराग पासवान (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

लोजपा की स्थापना :बिहार की राजनीति के सबसे बड़े दलित चेहरे रहे रामविलास पासवान ने 28 नवंबर 2000 को जनता दल से अलग होकर लोग जनशक्ति पार्टी का गठन किया था. लोजपा के गठन के पीछे का मकसद रामविलास पासवान बताते थे कि दलितों और वंचितों को को एकजुट करना और सामाजिक न्याय और दलितों वंचितों और पीड़ितों की आवाज उठाना उनका मकसद है.

रामविलास पासवान अक्सर भाषणों में कहा करते थे कि बगीचे का वही माली अच्छा होता है जिसके बगिया में हर तरह का फूल खिला रहता है.

लालू यादव ने कहा था मौसम वैज्ञानिक : 2004 के लोकसभा में लोजपा ने 4 सीटें तो विधानसभा में 29 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था. लोजपा ने 2010 का विधानसभा चुनाव फिर राजद के साथ मिलकर लड़ा. पार्टी को सिर्फ 3 सीटें हाथ लगीं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में लोजपा ने 12 साल बाद फिर एनडीए के साथ गठबंधन की घोषणा की. इस गठबंधन में आकर 7 सीटों पर चुनाव लड़कर लोजपा ने 6 सीटें जीतीं. इसी चुनाव के बाद लालू प्रसाद यादव ने रामविलास पासवान को मौसम वैज्ञानिक कहा था. 2019 लोकसभा चुनाव में भी लोजपा, एनडीए के साथ बिहार में 6 सीट पर चुनाव लड़ी और सभी सीटों पर जीत हुई.

चिराग के हाथ में पार्टी की कमान : लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान का 8 अक्टूबर 2020 को निधन हो गया था. चिराग पासवान के हाथ में पार्टी की कमान आ गई थी. 2020 बिहार विधानसभा के चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव करने का फैसला किया. विधानसभा के चुनाव का रिजल्ट निराशाजनक रहा, लोजपा मात्र एक सीट जीतने में कामयाब हुई. इसके बाद चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के बीच में दूरी बढ़ने लगी.

ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

लोजपा में हुई टूट : लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान के निधन के बाद पशुपति कुमार पारस और चिराग पासवान के बीच अनबन शुरू हुई. चाचा पशुपति पारस ने 5 सांसदों को साथ लेकर पार्टी पर अपना अधिकार जता दिया. चिराग पासवान अलग-थलग पड़ गए. पांच सांसदों के साथ पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी का गठन हुआ और पशुपति कुमार पारस केंद्र में मंत्री बने. चिराग पासवान के नेतृत्व में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) का गठन हुआ.

ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

लोजपा का नाम और सिंबल जब्त : चाचा और भतीजे की लड़ाई में रामविलास पासवान की पार्टी दो भागों में बंट गई. दोनों नेताओं ने लोजपा पर अपना दावा पेश किया. दोनों गुटों के दावा के कारण निर्वाचन आयोग ने लोजपा के चुनाव चिन्ह झोपड़ी को फ्रीज कर दिया. दोनों को अलग-अलग नाम और सिंबल दिया गया. पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोग जनशक्ति पार्टी का गठन हुआ और चिराग पासवान के नेतृत्व में लोग जनशक्ति पार्टी रामविलास का गठन हुआ. पशुपति कुमार पारस की पार्टी का चुनाव चिन्ह सिलाई मशीन तो चिराग पासवान की पार्टी का चुनाव चिन्ह हेलीकॉप्टर दिया गया.

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