शहडोल।दीपावली के 6 दिन बाद छठ पूजा होती है. छठ पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है. इस कठिन व्रत को महिलाएं और पुरुष घर में करते हैं, इसे बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है और इसीलिए इसे आस्था का महापर्व कहा जाता है.
छठ पूजा के लिए कैसी नदी का चयन करें
वास्तु और ज्योतिष के विशेषज्ञ पंडित शिवधर द्विवेदी बताते हैं "वैसे तो छठ पूजा पूजा नदियों के तट पर की जाती है. छठ पूजा में इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए कि इसे ऐसी बड़ी नदियों पर करना चाहिए जिसकी धार कभी बंद ना हुई हो. यहीं पर पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है. ऐसी नदियों के तट पर पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. या फिर ऐसी जगह हो जगह जहां दो नदियों का संगम हो, उस तट पर छठ की पूजा करने का बहुत ही विशेष लाभ मिलता है. ऐसी नदियों के तट पर विधि विधान से छठ पूजा करने से अपार पुण्य लाभ की प्राप्ति होती है."
छठ का व्रत काफी कठिन माना जाता है
छठ व्रत के बारे में कहा जाता है कि ये बहुत ही कठिन व्रतों में से एक है. इसकी पूजा करना भी इतना आसान नहीं होता है, एक तरह से ये एक बड़ी तपस्या होती है. कहा जाता है कि छठ व्रत द्रोपदी माता ने रखा था. जब पांडव अपना सब कुछ हार गए थे, तब इस व्रत को द्रोपदी माता ने रखा था. इसी व्रत के प्रभाव से पांडवों की विजय हुई थी. कहा जाता है कि जो महिलाएं इस व्रत को रखती हैं, उन्हें बहुत पुण्य लाभ मिलता है. उनके घर में खुशहाली आती है. इस व्रत में महिलाएं 36 घंटे तक निर्जला व्रत रहती हैं.
सूर्य को विशेष अर्घ्य दिया जाता है
पंडित शिवधर द्विवेदी बताते हैं "छठ के व्रत में सूर्य को विशेष अर्घ्य दिया जाता है. छठी मैया और सूर्य की पूजा की जाती है. सूर्य और छठी मैया का भाई-बहन का संबंध है. छठ व्रत में डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है. वहीं अगली सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसके बाद ही छठ पूजा खत्म होती है." ज्योतिष और वास्तु विशेषज्ञ पंडित शिवधर द्विवेदी बताते हैं "छठ पूजा और छठ व्रत करने से घर की सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं, बच्चे दीर्घायु होते हैं. घर में शांति आती है."
छठ व्रत विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के उन हिस्सों में होता है जहां पर प्रवासी समूह आकर बसा है. यह व्रत पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में भी मनाया जाता है. धीरे-धीरे अब ये व्रत देश के एक बड़े हिस्से में मनाया जाने लगा है. मध्य प्रदेश में खासकर इंदौर और जबलपुर के साथ ही रीवा और शहड़ोल के इलाकों में भी मनाया जाता है. हालांकि फिलहाल यह प्रवासियों तक सिमटा है.