छतरपुर: लोक आस्था का महापर्व छठ पूर्वांचल और बिहार का प्रमुख त्योहार अब बुंदेलखंड में भी मनाया जाने लगा है. पिछले 3 दिनों से पर्व की शुरूआत करते हुए भक्तिभाव के साथ पूजा अर्चना की जा रही है. तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया गया. शुक्रवार को सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही यह पर्व पूरा हो जाएगा. गुरुवार को पानी में रहकर भगवान भास्कर से सुख समृद्धि की कामना की जाती है. स्थानीय लोगों ने भी बड़ी संख्या में प्रताप सागर तालाब पहुंचकर पूजा कर रहे लोगों को शुभकामनाएं दीं.
डूबते सूर्य को दिया गया अर्घ्य
छठ व्रत रखने वाली गायत्री कुशवाहाबताती हैं कि "छठ पर्व की शुरूआत नहाय खाय के साथ ही हो जाती है. दूसरे दिन व्रती महिलाएं खरना व्रत रखती हैं. दिन भर निर्जला उपवास रखने के बाद सूर्यास्त के पश्चात रोटी और गुड़ की खीर बनाई जाती है. व्रती महिलाओं को इस प्रसाद को एक कमरे में अकेले बैठ कर ग्रहण करना होता है. इस दौरान अगर कोई उनका नाम पुकार दे तो उन्हें वहीं भोजन रोक देना होता है. रोटी और खीर का यह प्रसाद खाने के बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. यह व्रत उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न होता है. आज डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया गया."
पौराणिक काल से पर्व का महत्व
पर्व के संबंध में मनोज कुमार सिंहने बताया कि "तीसरे दिन 4 बजे से स्थानीय चौपाटी स्थित प्रताप सागर तालाब में भगवान भास्कर को अस्त होने के दौरान अर्घ्य दिया गया. तालाब में पानी में खड़े होकर यह पूजा की जाती है. बांस के सूप में पूजन सामग्री रखकर अर्घ्य दिया जाता है. उन्होंने बताया कि शुक्रवार सुबह पांच बजे से फिर यह पूजा शुरू होगी और सुबह साढ़े 6 बजे तक पर्व पूर्ण होगा. उन्होंने बताया कि इस पर्व का पौराणिक काल से महत्व है."