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पूर्व मंत्री व भाजपा विधायक को जबलपुर हाईकोर्ट से राहत, जानिए क्या है पूरा मामला - JABALPUR HIGH COURT

भाजपा विधायक बिसाहू लाल साहू ने अपनी याचिका में कहा था कि अपराध दर्ज होने के तीन साल बाद आरोप-पत्र पेश किया गया था. कोर्ट ने मामला निरस्त करते हुए कहा कि चार्जशीट दाखिल करने की समय सीमा का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिए.

JABALPUR HIGH COURT
जबलपुर हाईकोर्ट (Etv Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 11 hours ago

जबलपुर: अनूपपुर से विधायक व पूर्व मंत्री बिसाहूलाल सिंह को हाईकोर्ट से राहत मिली है. हाईकोर्ट जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने कोविड 19 के प्रतिबंध नियम के उल्लंघन करने के मामले में पुलिस द्वारा तीन साल बाद आरोप-पत्र दायर किये जाने के कारण न्यायालय में लंबित आपराधिक प्रकरण को निरस्त करने के आदेश जारी किए हैं. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सीआरपीसी की धारा 468 के प्रावधानों के अनुसार, आरोप पत्र दाखिल करने की समय सीमा का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिए.

अपराध दर्ज होने के तीन साल बाद अगस्त 2023 में पेश किया गया था आरोप-पत्र

भाजपा विधायक बिसाहू लाल साहू की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि उनके खिलाफ अनूपपुर कोतवाली में साल 2020 में कोविड 19 के प्रतिबंध नियम का उल्लंघन करने के मामले में आईपीसी की धारा 188 और आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51 के तहत अपराध दर्ज किया है. अपराध दर्ज होने के तीन साल बाद अगस्त 2023 में न्यायालय में आरोप-पत्र पेश किया गया था.

उन्होंने एमपी-एमएलए जबलपुर ट्रायल कोर्ट से आरोप-पत्र देर से दाखिल किए जाने के कारण केस रद्द करने का आवेदन प्रस्तुत किया था. ट्रायल कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 473 का हवाला देते हुए आवेदन को खारिज कर दिया था. जिसकी वजह से हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी. सुनवाई के दौरान देर से आरोप-पत्र प्रस्तुत करने पर अधिकारियों द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण में कहा गया है कि याचिकाकर्ता संबंधित समय पर कैबिनेट मंत्री थे.

एक सार्वजनिक नेता होने के कारण वे उपलब्ध नहीं थे. याचिकाकर्ता ने जांच अधिकारी के साथ सहयोग नहीं किया, जिसके कारण जांच पूरी करने में देर हुई. अभियोजन पक्ष के पास आरोप पत्र प्रस्तुत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.

कोर्ट ने कहा, जांच में सहयोग नहीं करने पर आरोपी की अनुपस्थिति में भी पेश किया जा सकता था आरोप पत्र

एकलपीठ ने स्पष्टीकरण पर असंतुष्टि जताते हुए कहा कि याचिकाकर्ता उपलब्ध नहीं था और जांच में सहयोग नहीं कर रहा था, ऐसी स्थिति में जांच पूरी कर उसकी अनुपस्थिति में भी आरोप पत्र पेश किया जा सकता था. इसके लिए तीन साल तक इंतजार किया गया. एकलपीठ ने ट्रायल कोर्ट में लंबित प्रकरण को निरस्त करते हुए अपने आदेश में कहा कि सीआरपीसी की धारा 473 के तहत शक्ति का प्रयोग करते समय न्यायालय को बहुत सतर्क रहना चाहिए और उक्त शक्ति का प्रयोग असाधारण और विशेष परिस्थितियों में किया जाना चाहिए.

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