खूंटीः बोलचाल की भाषा में हाट-बाजार या हटिया, भारत के ग्रामीण इलाकों में लगने वाले साप्ताहिक बाजार को कहा जाता है. जहां से लोग हफ्तेभर के लिए अपनी जरूरत की चीजों की खरीदारी करते हैं. इनमें सब्जी, फल, ताजा मांस, खाद्यान्न, तेल मसाले तक शामिल है. इसके अलावा वनोपज के अलावा कृषि उत्पाद की बिक्री भी खूब होती है. हफ्ते में एक दिन सजने वाला बाजार रौनक से भरा होता है और इलाके की अर्थव्यवस्था में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है.
झारखंड में हाट बाजार प्राचीन काल से चली आ रही है. जहां देश की आजादी से पहले इस बाजार से वनोत्पाद से लेकर पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र और जानवरों की खरीद बिक्री हुआ करती है. साथ ही सस्ते दर पर बड़ी संख्या में मजदूर भी बाजार से ही मिल जाते हैं. सस्ते श्रम का बाजार बड़े शहरों के लिए आसानी से मजदूर उपलब्ध कराता है. दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता जैसे महानगरों में आजादी के पूर्व से ही यहां के श्रमिक रोजगार के लिए पहुंचते हैं.
लेकिन समय अनुसार बाजार की प्रकृति बदली और यहां से व्यापारी लोगों को काम दिलाने के लिए बाहर ले जाते रहे हैं. जिसे यहां के लोग पलायन कहते हैं और बाजार से मजदूरी के लिए ग्रामीणों का पलायन शुरू हुआ. आजादी के बाद धीरे धीरे तस्वीरें बदलती चली गईं लोग जागरूक होते चले गए. स्थानीय जनप्रतिनिधियों और बुद्धिजीवियों ने खरीद फरोख्त से लेकर पलायन रोकने में कामयाब रहे लेकिन गरीबी के कारण पलायन समस्या बनी रही.
राजधानी रांची से लगभग 65 किमी दूर खूंटी के अड़की प्रखंड क्षेत्र के दूरस्थ इलाके में बिरबांकी गांव बसा है. जहां आज भी लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं लेकिन ग्रामीण वनोपज से अपनी जीविका चलाते हैं. यहां अंग्रेजों के जमाने से साप्ताहिक हाट लगती रही है और यहां वो हर सामान इस बाजार में बिकते है जो यहां के जरूरतों को पूरी करता है. देसी मॉल की तरह इस हाट में हर सामान मिलता है.
इस साप्ताहिक हाट में विभिन्न गांवों के लोग वनोपज समेत कृषि उत्पादों को लेकर आते हैं और साप्ताह भर के लिए अपनी जरूरत के सामान खरीदकर ले जाते हैं. एक साप्ताहिक हाट हजारों परिवार को आजीविका देने का भी काम करता है. यहां चिकित्सा की भी सुविधा रहती है जहां गांव देहात के हजारों ग्रामीण अपना इलाज कराते हैं और देसी और पारंपरिक दवा से ठीक हो जाते हैं. झारखंड के खूंटी जिला के बिरबांकी साप्ताहिक हाट की कहानी यहां के ग्रामीणों की जुबानी सुनिए.
नक्सलियों के खौफ से जीने वाले बिरबांकी गांव की तस्वीर ज्यादा नहीं बदली. लेकिन यहां लगने वाला लगने वाले साप्ताहिक हाट खूंटी की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. मॉल कल्चर शहरों में कुछ वर्षों पहले आया, जहां एक ही छत के नीचे सारे सामान मिलते हैं लेकिन यहां के हाट एक देसी मॉल की तरह हैं, जहां हर जरूरत के सामान की खरीदारी भी होती है और गांव के लोग अपने उत्पाद बेचते भी हैं.