पटना :बिहार के सरकारी विद्यालयों में बच्चों का नामांकन दर काफी कम हुआ है. यह बातें केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के यूनिफाइड डिस्टिक इनफॉरमेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस की रिपोर्ट में सामने आई है. इस रिपोर्ट में यह सामने आया है कि देश भर में जहां सरकारी विद्यालयों में से 37 लाख बच्चों का नामांकन कटा है, वहीं अकेले बिहार में ही 31 लाख से अधिक बच्चों का नामांकन कटा है.
क्या कहता है आंकड़ा ? : साल 2022-23 में बिहार में जहां सरकारी विद्यालयों में 24,543,695 बच्चों के नामांकन हुए वहीं साल 2023-24 में 21,348,149 बच्चों के नामांकन हुए. यानी साल 2023-24 में बिहार के सरकारी विद्यालयों में 3195546 बच्चों के सरकारी नाम कटे हैं.
मध्य और माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट रेट हाई :यूडायस की रिपोर्ट के अनुसार साल 2023-24 में बिहार में प्राथमिक विद्यालयों में ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियों 83 है. मध्य विद्यालय में यह 68 है, माध्यमिक में 46 है और उच्च माध्यमिक में 30 है. ड्रॉप आउट रेशियों का आंकड़ा कुछ इस प्रकार है.
आधार अनिवार्य होने से कम हुए घोस्ट स्टूडेंट :प्रदेश के शिक्षा मंत्री सुनील कुमार का कहना है कि शिक्षा विभाग ने आधार सीडिंग की सुविधा शुरू की तो कई बच्चों के नामांकन कटे हैं. दरअसल यह बच्चे कभी विद्यालय में थे ही नहीं. सरकारी और निजी विद्यालयों के बच्चों का आधार विभाग के पोर्टल पर अपलोड करने का जो निर्देश दिया गया उसके बाद काफी संख्या में ऐसे छात्र मिले जिनका दोहरा नामांकन था. ऐसे छात्रों के नाम काटे गए हैं. सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए इस प्रकार के प्रयास किए गए थे कि बच्चों का सरकारी में भी नामांकन हो और प्राइवेट में बच्चे पढ़ाई कर रहे थे.
डेढ़ वर्ष में 1.83 लाख शिक्षकों की नियुक्ति :शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने बताया कि प्रदेश के लगभग 80 हजार विद्यालयों में 545270 शिक्षक कार्यरत हैं. यह आंकड़ा तब का है उसके बाद प्रदेश में काफी शिक्षकों की बहाली हुई है. विगत डेढ़ वर्ष में 1.83 लाख नए शिक्षकों की विद्यालयों में बहाली हुई है. तीन चरण की शिक्षक बहाली प्रक्रिया पूरी करके विद्यालयों से शिक्षकों की कमी को दूर किया गया है.
''विद्यालय में शैक्षणिक माहौल भी बेहतर हुए हैं और समय पर परीक्षाओं का भी आयोजन हो रहा है. प्रदेश में 1.80 करोड़ बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई कर रहे हैं. जिसमें 1.10 करोड़ बच्चों को प्रतिदिन मिड डे मील से लाभान्वित किया जा रहा है.''- शिक्षा मंत्री सुनील कुमार
बिहार में शिक्षक छात्र अनुपात सबसे बेहतर :इस रिपोर्ट में यह भी बातें छनकर सामने आई है कि बिहार में शिक्षक छात्र अनुपात में काफी सुधार हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 32 छात्रों पर एक शिक्षक है जबकि राष्ट्रीय औसत 35 छात्रों पर एक शिक्षक का है. शिक्षा मंत्रालय के अनुसार आदर्श स्थिति के अनुरूप 24 से 30 छात्रों पर एक शिक्षक होने चाहिए. साल 2023-24 में यूडायस पर 38.8 प्रतिशत छात्रों के आधार नंबर प्राप्त हुए हैं. इसके अलावा प्रदेश में 2637 स्कूल ऐसे हैं जो सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. हालांकि शिक्षा विभाग का कहना है कि अब यह स्थिति काफी सुधर गई है.
पीने के पानी के लिए हैंडपंप की प्राथमिकता :रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के 79.8% विद्यालयों में बिजली का कनेक्शन है जिसमें 78.3% में ही फंक्शनल है. अलग से हैंड वॉश की सुविधा 81.6% विद्यालयों में है. वहीं शौचालय की सुविधा प्रदेश की 96.4% विद्यालयों में है, जिसमें 94.3% में शौचालय फंक्शनल हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के प्राइवेट विद्यालय जहां नल के जल पर निर्भर है वही सरकारी विद्यालय अभी भी हैंडपंप पर अधिक निर्भर हैं. ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में अभी भी पीने के पानी के लिए हैंड पंप की ही व्यवस्था है. प्रदेश के 78120 सरकारी विद्यालयों में 70.1% यानी 54776 में हैंडपंप की सुविधा है. वहीं प्रदेश के 9167 प्राइवेट विद्यालय में 5912 यानी 64.49 प्रतिशत विद्यालयों में पीने के पानी के लिए टैप वाटर की सुविधा है.
महज 10.9% विद्यालयों में कंप्यूटर की पढ़ाई :रिपोर्ट में यह भी जानकारी मिल रही है कि बिहार के सरकारी विद्यालयों में कंप्यूटर शिक्षा का घोड़ अभाव है. प्रदेश के 11.6% सरकारी विद्यालयों में ही कंप्यूटर उपलब्ध है. जिसमें कंप्यूटर की सुविधा फंक्शनल रूप से 10.9% विद्यालयों में उपलब्ध है. वहीं प्रदेश के निजी विद्यालयों में 68.3% विद्यालय में कंप्यूटर उपलब्ध है जिसमें फंक्शनल ग्रुप से 64.6% विद्यालय में कंप्यूटर की पढ़ाई होती है.