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मिशन 225 पर JDU की नजर, नीतीश के दलित-पिछड़ा-मुस्लिम वोट बैंक के सामने PK ने तैयार किया 'चक्रव्यूह'

PK ने जनसंख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व का फार्मूला तैयार किया है. ऐसे में जदयू के लिए मिशन 225 की राह कितनी चुनौतीपूर्ण होगी, पढ़ें.

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विधानसभा चुनाव की तैयारी. (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 10, 2024, 6:49 PM IST

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही सभी राजनीतिक दल अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं. जदयू ने आगामी चुनाव में 225 सीटें जीतने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है. लेकिन, सवाल यह उठता है कि यह लक्ष्य कैसे हासिल होगा? जब प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकार उसी दलित, पिछड़ा और मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, जो जेडीयू का आधार वोट बैंक है.

मिशन 225 क्या हैः 2020 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को केवल 43 सीटों पर जीत मिली थी, जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बिहार में हो गई. हालांकि इस साल लोकसभा चुनाव में पार्टी का शानदार प्रदर्शन रहा. अब 2025 विधानसभा चुनाव में भी इसे बरकरार रखने की तैयारी है. 16 सितंबर को जेडीयू की बैठक हुई थी. बैठक में विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए को 225 सीट जीताने का लक्ष्य तय किया गया. जेडीयू कार्यकर्ताओं को पूरी ताकत से चुनाव की तैयारी में लग जाने का निर्देश दिया गया.

विधानसभा चुनाव की तैयारी. (ETV Bharat)

जेडीयू का वोट बैंकः जेडीयू 19 साल से सत्ता पर काबिज है. शुरू में जेडीयू का कोर वोट बैंक कुशवाहा-कुर्मी के अलावा अति पिछड़ा और दलित वोट बैंक रहा था. शराबबंदी के बाद से नीतीश के वोट बैंक में महिला वोटर जुड़ा. कहा जाता है कि इस बार लोकसभा चुनाव में महिला वोटरों ने नीतीश की नैया को पार लगाया था. राजद से मुस्लिम वोटर छिटककर जदयू से जुड़ा है. ऐसे में नीतीश के वोट बैंक का मजबूत आधार मुस्लिम और महिला वोटर भी बन गये हैं.

बिहार की राजनीति में पीके की इंट्रीः दो अक्टूबर को प्रशांत किशोर ने जन सुराज पार्टी बनाये जाने की घोषणा कर दी. उन्होंने विधानसभा चुनाव को लेकर रणनीति बनानी भी शुरू कर दी. प्रशांत किशोर ने घोषणा किया कि उनकी पार्टी सभी 243 विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ेगी. पार्टी गठन से पहले ही प्रशांत किशोर ने यह घोषणा कर दी थी कि बिहार में जाति आधारित गणना के आधार पर उनकी पार्टी प्रत्याशियों का चयन करेगी.

नीतीश के वोट बैंक में सेंधमारीः हाल ही में करायी गयी जातीय गणना के अनुसार बिहार में अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01 फीसदी, पिछड़े वर्ग की आबादी 27.12 प्रतिशत, SC-19.65 फीसदी, ST- 1.6 प्रतिशत और मुसहर की आबादी 3 फीसदी और मुस्लिम आबादी 17.7 प्रतिशत बतायी गयी. आबादी के हिसाब से पीके की पार्टी में सबसे ज्यादा मुसलमान को टिकट दिया जाएगा. इसके बाद यादवों को टिकट दिया जाएग. प्रशांत किशोर ने 40 महिला उम्मीदवारों को भी टिकट देने की घोषणा की है.

पार्टी के स्थापना दिवस पर पीके. (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

पीके का दलित कार्डः प्रशांत किशोर ने पार्टी के गठन के साथ ही सबसे बड़ा दलित कार्ड खेला. रविदास समाज से आने वाले मनोज भारती को उन्होंने पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया. प्रशांत किशोर ने पार्टी के गठन के बाद सबसे ज्यादा नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए कहा था कि 2025 में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में जदयू को 20 सीट भी नहीं मिल पाएगी. प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा के चार सीटों पर होने वाले उपचुनाव में ही सभी राजनीतिक दलों के बोरिया बिस्तर समेट देने का ऐलान कर दिया.

पदयात्रा से राजनीतिक शुरुआतः प्रशांत किशोर 2022 से बिहार में सक्रिय राजनीति को लेकर एक्टिव हुए. 2 अक्टूबर 2022 को उन्होंने पश्चिम चंपारण से पूरे बिहार में पदयात्रा की शुरुआत की. जिसका नाम जन सुराज पदयात्रा दिया गया. 2 वर्षों से लगातार प्रशांत किशोर बिहार में पदयात्रा कर रहे हैं. अब तक करीब 5000 किलोमीटर की पदयात्रा कर चुके हैं. 2 वर्षों के बाद 2 अक्टूबर 2024 को पटना के वेटरनरी कॉलेज मैदान में उन्होंने अपने राजनीतिक दल जन सुराज की घोषणा की.

पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के साथ पीके. (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

जन सुराज का दावाः आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में जन सुराज का दावा है कि बिहार के सभी बड़े राजनीतिक दल को उनकी पार्टी के शक्ति का एहसास हो जाएगा. पार्टी के मुख्य प्रवक्ता संजय ठाकुर का कहना है कि बिहार के सत्ताधारी एवं विपक्षी दल इस बार जन सुराज की चुनौती का शिकार बनेंगे. 15 वर्षों के लालू प्रसाद यादव का शासन और 19 वर्षों से नीतीश कुमार के शासन से बिहार के लोग त्रस्त हो गए हैं. बिहार के लोग इन लोगों के शासन से परेशान हैं.

"बिहार में लोग राजनीतिक विकल्प की तलाश में हैं. जन सुराज बिहार में मजबूत राजनीतिक विकल्प के रूप में स्थापित हुआ है. इससे दोनों गठबंधनों (एनडीए और महागठबंधन) की परेशानी बढ़ी है. जन सुराज के रूप में बिहार में जनता का सुंदर राज स्थापित होगा."- संजय ठाकुर, मुख्य प्रवक्ता, जन सुराज

नीतीश के सुशासन पर जनता की मुहरः जन सुराज पार्टी के दावे पर जदयू के प्रवक्ता अंजुम आरा ने पलटवार किया है. जदयू प्रवक्ता का कहना है कि प्रशांत किशोर राजनीतिक व्यवसाई हैं. उनका प्रोफेशन राजनीतिक दलों के लिए रणनीति बनाना है. प्रशांत किशोर आजकल बड़े-बड़े राजनीतिक दावे कर रहे हैं उनके राजनीतिक दावे खोखले हैं. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस इनके रणनीति में चुनाव लड़ी और क्या हाल हुआ सब जानते हैं. पंजाब में कांग्रेस ने इनको बाहर का रास्ता दिखाया.

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"बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर के आने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. बिहार की जनता 2005 से ही अपना आशीर्वाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को देती रही है. जहां तक 2025 की बात है तो बिहार में किसी भी राजनीतिक दल के लिए कोई भी स्पेस नहीं है."- अंजुम आरा, जदयू प्रवक्ता

अरविंद केजरीवाल के अपडेटेड वर्जन हैंः बीजेपी प्रशांत किशोर को बिहार में कोई राजनीतिक फैक्टर नहीं मानती. बीजेपी के प्रवक्ता मनीष पांडेय का मानना है कि प्रशांत किशोर, अरविंद केजरीवाल के अपडेटेड वर्जन हैं. वह बिहार में सपना बेचने का काम कर रहे हैं और कुछ लोगों को उसी सपने में बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन बिहार के बारे में कहा जाता है कि यहां के लोग राजनीतिक रूप से बचपन से ही परिपक्व होते हैं.

"बिहार विधानसभा 2025 चुनाव में प्रशांत किशोर नाम का कोई फैक्टर काम नहीं करेगा. जो हाल हरियाणा में आम आदमी पार्टी की हुई है, वही हाल बिहार में भी जन सुराज पार्टी की होगी."- मनीष पांडे, भाजपा प्रवक्ता

पीके को मिला था इनाम: आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों की तैयारी और प्रशांत किशोर के दावों पर राजनीति के जानकार भी नजर बनाए हुए हैं. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार का कहना है कि 2015 में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार को करीब लाने में प्रशांत किशोर की अहम भूमिका रही थी. इस चुनाव में मिले बेहतरीन परिणाम के बाद इनको राजनीतिक ग्रुप से पुरस्कृत किया गया था. जदयू का वाइस प्रेसिडेंट बना दिया गया था. कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था.

"हरियाणा के चुनाव में एक परसेप्शन बना था कि बीजेपी के खिलाफ में हवा है, लेकिन चीजें बदली और भाजपा सत्ता में आ गई. वैसे ही कुछ भी हो सकता है. अब यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रशांत किशोर बहुत सफल हो जाएंगे या प्रशांत किशोर पूरी तरह से फैलियर हो जाएंगे."- डॉ संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

पीके का लिटमस टेस्ट होगाः संजय कुमार ने कहा कि प्रशांत किशोर में राजनीतिक समझ है. वह बिहार को भी समझते हैं. उन्होंने कहा कि पीके का ब्लूप्रिंट आने दीजिए. फरवरी में गांधी मैदान में अपना ब्लूप्रिंट जारी करेंगे. शिक्षा, रोजगार, पलायन, चिकित्सा, बिहार की बेहतरीन को ब्लूप्रिंट तैयार करेंगे. चार सीटों का उपचुनाव प्रशांत किशोर के लिए लिटमस टेस्ट होगा. चार सीटों का उपचुनाव का चुनाव परिणाम बता देगा की प्रशांत किशोर, कितना आरजेडी को या जदयू को नुकसान पहुंचाएंगे.

महागठबंधन के लिए किया था कामः बिहार में नीतीश कुमार और बीजेपी की दोस्ती 2005 से शुरू हुई. 2014 लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाए जाने को लेकर भाजपा और जदयू के बीच में दूरी बढ़ी. नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने का फैसला किया. नीतीश कुमार की सरकार को राजद ने बाहर से समर्थन देकर बचाया. इसी बीच प्रशांत किशोर जो 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के चुनावी रणनीतिकार थे, 2015 में नीतीश कुमार के लिए चुनावी रणनीति बनाने का फैसला किया.

पीके की रणनीति हुई थी कामयाबः 2015 विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने ही राजद, कांग्रेस और जेडीयू को एक साथ एक मंच पर लाकर महागठबंधन का स्वरूप दिया. इसका परिणाम हुआ कि 2015 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को प्रचंड जीत हासिल हुई. 243 में से 178 सीट पर जीत दर्ज की. राजद को 80 जदयू को 71 और कांग्रेस को 27 सीट मिली थी. बीजेपी जो बिहार में सरकार बनाने का दावा कर रही थी मात्र 53 सीटों पर सिमट गई. इस तरीके से 2015 विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की रणनीति कामयाब हुई.

जदयू से कब बढ़ी दूरीः2015 विधानसभा चुनाव में जीत के बाद नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बने. लेकिन नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की दोस्ती ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकी. 2017 में एक बार फिर से नीतीश कुमार महागठबंधन का साथ छोड़कर एनडीए के साथ हो गए. बीजेपी के सहयोग से फिर से मुख्यमंत्री बने. यहीं से प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार के बीच दूरी बढ़ने लगी. प्रशांत किशोर ने जदयू का साथ छोड़ दिया. फिर से चुनावी रणनीतिकार की भूमिका में कई राज्यों में सक्रिय रहे.

2020 विधानसभा चुनाव में जदयू का प्रदर्शनः इस चुनाव में एनडीए को बिहार में बहुमत मिला. लेकिन नीतीश कुमार की पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा. बीजेपी को 74 और जदयू को मात्र 43 सीट पर जीत हासिल हुई. जदयू के खराब प्रदर्शन के लिए चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को जिम्मेदार ठहराया गया. चिराग पासवान की पार्टी ने 2020 विधानसभा चुनाव में जदयू को दो दर्जन से अधिक सीटों पर नुकसान पहुंचा. जदयू जो 2010 में 117 सीट पर जीत दर्ज की थी, 2015 में 71 सीट जीती थी और 2020 में 43 सीट पर सिमट गई.

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