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बर्थडे पर इंग्लिश मीडियम बच्चे देते हैं फूंका-थूका हुआ केक, मोहन यादव ने किसका किया समर्थन? - Bhopal Hindi Diwas

राजधानी के रविंद्र भवन सभागार में हिंदी दिवस के मौके पर संस्कृति मंत्री धर्मेंद्र लोधी द्वारा दिया गया बयान सुर्खियां बटोर रहा है. संस्कृति मंत्री ने कहा है कि पाश्चात्य संस्कृति के चक्कर में लोग अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं. हम जहां दीप जलाकर जन्मदिन मनाते हैं तो वहीं लोग पाश्चात्य संस्कृति के चक्कर में मोमबत्ती बुझाकर फूंका-थूका केक खिलाते हैं.

CULTURAL MINISTER STATEMENT FOOKA CAKE STATEMENT
मोहन यादव ने किसका किया समर्थन? (Etv Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 14, 2024, 7:53 PM IST

भोपाल : राजधानी के रविंद्र भवन सभागार में राष्ट्रीय हिंदी भाषा अलंकरण समारोह का आयोजन किया गया था. इसमें एमपी के सीएम डॉ. मोहन यादव और संस्कृति मंत्री धर्मेंद्र लोधी समेत भाषा के कई विद्वान उपस्थित रहे. इस दौरान संस्कृति धर्मेंद लोधी का बयान भी काफी चर्चा में रहा, जिसका सीएम मोहन यादव ने अपने तरीके से समर्थन किया.

देखें वीडियो (Etv Bharat)

क्या है फूंका और थूका केक कहने का तात्पर्य?

संस्कृति मंत्री धर्मेंद्र लोधी ने कहा, '' इंग्लिश मीडियम में पढ़कर हम पाश्चात्य विचारों का अनुसरण करते हैं. जब हमारा बच्चा इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने जाता है तो हम उसका जन्मदिन मनाने का तरीका बदल देते हैं. पहले हम बचपन में जब जन्मदिन के अवसर पर मंदिर जाया करते थे, वहां दीप जलाया करते थे और भंडारा करते थे. लेकिन आज आप देखते होंगे कि बच्चा केक लेकर आएगा, उसके उपर मोमबत्ती जलाएगा और उसमें फूंकेगा. यही फूंका और थूका हुआ केक सबको खिलाया जाता है.''

रविंद्र भवनमें राष्ट्रीय हिंदी भाषा अलंकरण समारोह आयोजित (Etv Bharat)

सीएम ने इस तरह किया समर्थन

संस्कृति मंत्री धर्मेंद्र लोधी के बयान का समर्थन करते हुए सीएम डॉ. मोहन यादव ने कहा, '' फूंक से थूक तक आपने अच्छी पताखा फहराई आपको आपको बधाई. जब संस्कृति मंत्री ही संस्कृत हो जाएं और संस्कृत की धरा को संस्कार के रुप में एहसास करा दें. इसेस अच्छा क्या होगा.?'' इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा, '' हिंदी का उद्गम अवधी से हुआ है. लेकिन हिंदी के लिए मध्यप्रदेश को कोई आर्शीवाद है? जैसे उत्तरप्रदेश में खड़ी भाषा के साथ हिंदी ने अपनी यात्रा की लेकिन मप्र में कितनी सुंदरता से उसको अपनाया. जैसे भगवान राम वनवास काल में उत्तरप्रदेश के अयोध्या से बाहर निकले और उन्हें अपनाने वाला मध्य्रपदेश था, जहां उन्होंने 11 वर्ष से अधिक समय बिताया.''

उजाले से अंधकार की ओर जा रहे बच्चे

संस्कृति मंत्री ने कहा, '' हमारे पूर्वज ना जाने कब से कहते आ रहे हैं, असतो मां सदगमय, तमसों मां ज्योतिर्गमय यानि असत्य से सत्य की ओर जाओ और अंधकार से प्रकाश की ओर आओ. जब बच्चा फूंक कर मोमबत्ती जलाता है, तो वह प्रकाश से अंधकार की ओर जाता है. जब बच्चा फूंका हुआ और थूका हुआ केक सबको खिलाता है तो ऐसा लगता है कि जैसे हम प्रोग्रेसिव हो गए हैं, प्रगत हो गए हैं. हिंदी भाषा का जन्म से ही प्रयोग करते आए है. यदि हम हिंदी का प्रयोग करते हैं, भारतीय संस्कृति के करीब आते हैं. अपने पूर्वजों की गौरवशाली परंपराओं के निकट आते हैं. आज यहां से हम सब संकल्प लेकर जाएं कि पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करने की बजाय अपने गौरवशाली इतिहास और अतीत को याद करते हुए अधिक से अधिक हिंदी भाषा का प्रयोग करेंगे.''

भगवान लोगों को सद्गति और सदबुद्धि दे

सीएम ने कहा, '' भगवान ऐसे लोगों को सद्गति और सद्बुद्धि दे, जो कहते थे कि बिना अंग्रेजी इंजीनियर-डॉक्टर कैसे बनेगा. लेकिन ये बात छिपा जाते हैं, कि क्या जापान में कोई डॉक्टर नहीं है? चीन में कोई इंजीनियर नहीं है? फ्रांस में क्या कोई डाक्टर-इंजीनियर नहीं है. इन देशों में भी तो लोग अंग्रेजी का उपयोग कम और अपनी स्थानीय भाषा का प्रयोग अधिक करते हैं. आज जर्मनी समेत अन्य देशों के लोग भी आगे बढ़े, जो स्थानीय भाषा का प्रयोग करते हैं. यदि लोग नहीं बढ़े तो केवल अपनी योग्यता से कोई नहीं बढ़ा. इसलिए मध्यप्रदेश में आज डॉक्टरी और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में हो रही है. अब कोई जरुरी नहीं कि आपको अंग्रेजी नहीं आती, तो आप डाक्टर नहीं बन सकते.''

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हिंदी की अलख जगाने वालों को मिला सम्मान

रविंद्र भवन में आयोजित समारोह में हिंदी को लेकर विश्व में काम करने वालों को सम्मानित किया गया. इस दौरान साल 2023 और 2024 के लिए पांच कैटेगिरी में 10 लोगों को पुरस्कार दिया गया. इनमें डिजिटल इंडिया भाषिनी संस्थान नई दिल्ली, अमकेश्वर मिश्रा भोपाल, डॉ. हंसादीप कनाडा, डॉ. अनुराग शर्मा अमेरिका, अतिला कोतलावल श्रीलंका, दागमार मारकोवा चेक गणराज्य, डॉ. कुष्ण कुमार मिश्र मुबंई, देवेंद्र मेवाड़ी नई दिल्ली, डॉ. दामोदर खड़से पुणे और डॉ. मोहन सहगल पटियाला का नाम शामिल है. इनके सम्मान के बाद रविंद्र भवन सभागार में कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया गया था.

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