भोपाल : राजधानी के रविंद्र भवन सभागार में राष्ट्रीय हिंदी भाषा अलंकरण समारोह का आयोजन किया गया था. इसमें एमपी के सीएम डॉ. मोहन यादव और संस्कृति मंत्री धर्मेंद्र लोधी समेत भाषा के कई विद्वान उपस्थित रहे. इस दौरान संस्कृति धर्मेंद लोधी का बयान भी काफी चर्चा में रहा, जिसका सीएम मोहन यादव ने अपने तरीके से समर्थन किया.
क्या है फूंका और थूका केक कहने का तात्पर्य?
संस्कृति मंत्री धर्मेंद्र लोधी ने कहा, '' इंग्लिश मीडियम में पढ़कर हम पाश्चात्य विचारों का अनुसरण करते हैं. जब हमारा बच्चा इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने जाता है तो हम उसका जन्मदिन मनाने का तरीका बदल देते हैं. पहले हम बचपन में जब जन्मदिन के अवसर पर मंदिर जाया करते थे, वहां दीप जलाया करते थे और भंडारा करते थे. लेकिन आज आप देखते होंगे कि बच्चा केक लेकर आएगा, उसके उपर मोमबत्ती जलाएगा और उसमें फूंकेगा. यही फूंका और थूका हुआ केक सबको खिलाया जाता है.''
सीएम ने इस तरह किया समर्थन
संस्कृति मंत्री धर्मेंद्र लोधी के बयान का समर्थन करते हुए सीएम डॉ. मोहन यादव ने कहा, '' फूंक से थूक तक आपने अच्छी पताखा फहराई आपको आपको बधाई. जब संस्कृति मंत्री ही संस्कृत हो जाएं और संस्कृत की धरा को संस्कार के रुप में एहसास करा दें. इसेस अच्छा क्या होगा.?'' इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा, '' हिंदी का उद्गम अवधी से हुआ है. लेकिन हिंदी के लिए मध्यप्रदेश को कोई आर्शीवाद है? जैसे उत्तरप्रदेश में खड़ी भाषा के साथ हिंदी ने अपनी यात्रा की लेकिन मप्र में कितनी सुंदरता से उसको अपनाया. जैसे भगवान राम वनवास काल में उत्तरप्रदेश के अयोध्या से बाहर निकले और उन्हें अपनाने वाला मध्य्रपदेश था, जहां उन्होंने 11 वर्ष से अधिक समय बिताया.''
उजाले से अंधकार की ओर जा रहे बच्चे
संस्कृति मंत्री ने कहा, '' हमारे पूर्वज ना जाने कब से कहते आ रहे हैं, असतो मां सदगमय, तमसों मां ज्योतिर्गमय यानि असत्य से सत्य की ओर जाओ और अंधकार से प्रकाश की ओर आओ. जब बच्चा फूंक कर मोमबत्ती जलाता है, तो वह प्रकाश से अंधकार की ओर जाता है. जब बच्चा फूंका हुआ और थूका हुआ केक सबको खिलाता है तो ऐसा लगता है कि जैसे हम प्रोग्रेसिव हो गए हैं, प्रगत हो गए हैं. हिंदी भाषा का जन्म से ही प्रयोग करते आए है. यदि हम हिंदी का प्रयोग करते हैं, भारतीय संस्कृति के करीब आते हैं. अपने पूर्वजों की गौरवशाली परंपराओं के निकट आते हैं. आज यहां से हम सब संकल्प लेकर जाएं कि पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करने की बजाय अपने गौरवशाली इतिहास और अतीत को याद करते हुए अधिक से अधिक हिंदी भाषा का प्रयोग करेंगे.''