जोधपुर.निर्दलीय विधायक के रूप में चुनाव जीत कर सुर्खियां बने रविंद्र सिंह भाटी लोकसभा चुनाव लड़ते हुए तो छाए रहे, लेकिन परिणाम में मात खा गए. भाटी और उनके समर्थकों को भरोसा था कि भाजपा का वोटर उनके खाते में शिफ्ट हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. भाजपा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी का इस चुनाव में पहले दिन से हारना तय माना जा रहा था. कैलाश को 2 लाख 86 हजार से अधिक मत मिले. इनमें पचपदरा में कांग्रेस से ज्यादा मत भाजपा को मिले.
भाजपा का कोर वोटर ओबीसी और राजपूत को माना जाता है. इसके अलावा सिवाना, चौहटन, गुढ़ामलानी में भाजपा को बड़ी संख्या में वोट मिले, जिसके चलते भाटी को आठ विधानसभा क्षेत्रों में से चार में पिछड़ना पडा. यही उनकी हार का बड़ा कारण बना है. जिन विधानसभा क्षेत्रों से भाटी को बढ़त मिली, उसमें शिव विधानसभा भी शामिल है, जहां से भाटी खुद विधायक है. यहां से उन्हें मात्र 1730 वोटों की ही बढ़त मिली, जबकि यह राजपूत और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है. कुल मिलाकर भाटी को चार विधानसभा क्षेत्रों में जितनी बढ़त मिली, उससे करीब दो गुना बढ़त उमेदाराम की रही.
जाट पलटे, राजपूतों ने भी किया किनारा :बाड़मेर में यह चुनाव पूरी तरह से जाट और राजूपत के बीच का चुनाव हो गया था. भाजपा व कांग्रेस दोनों तरफ से जाट उम्मीदवार होने के बावजूद पिछले चुनाव में कैलाश चौधरी का साथ देने वाले जाट इस चुनाव में पूरी तरह से पलट गए. पूरे लोकसभा क्षेत्र में 90 प्रतिशत से ज्यादा जाटों ने कांग्रेस के उमेदाराम का साथ दिया. उन्होंने कैलाश चौधरी के जाट होते हुए भी उनको नकार दिया. इसका उदाहरण बायतू विधानसभा क्षेत्र है, जहां से भाटी को 91 हजार वोटों से पीछे रहना पड़ा. दूसरी ओर भाजपा के परंपरागत वोटर राजपूतों ने भी बड़ी संख्या में भाजपा से दूरी बनाई, लेकिन पूरी तरह से भाटी के साथ नहीं गए. कई राजपूत नेताओं ने भाटी के रूप में नया नेता उभरते देख दूरी बनाई और पार्टी के साथ बने रहे. सिवाना और जैसलमेर जैसे विधानसभा क्षेत्रों से भाटी को निर्णायक बड़ी बढ़त नहीं मिली.