कुल्लू: अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में आज भी पुरानी परंपरा कायम है. कुल्लू दशहरे में पांच देवी-देवता आज भी नदी पार नहीं करते. आज तक ना तो यह परंपरा टूटी और ना ही इसे निभाने का जज्बा कम हुआ है. देव महाकुंभ में ऐसी परंपराएं देख आप भी हैरान हो जाएंगे. यह सभी पांच देवता ब्यास नदी के दूसरे छोर पर आंगु डोभी नामक स्थान पर सात दिन तक दशहरा उत्सव मनाते हैं.
इसमें देवता आजीमल नारायण सोयल, सरवल नाग सौर, शुकली नाग तांदला, जीव नारायण जाणा, जमदग्नि ऋषि मलाणा के देवता आज भी दशहरा उत्सव देव महाकुंभ में भाग नहीं लेते हैं. इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए ये देवता ब्यास नदी के उस पार खराहल घाटी के आंगु डोभी में डेरा डाले हुए हैं. देव आदेश की वजह से देवता मेले में शामिल नहीं होते.
दानवेंद्र सिंह, भगवान रघुनाथ के कारदार (ETV Bharat) स्थानीय निवासी हेत राम और गुड्डू ने बताया "दशहरा उत्सव के दौरान सात रातें नदी पार गुजारनी होती हैं. पांच देवता पुरातन समय से यहीं पर विराजमान होते हैं जब से दशहरा उत्सव शुरू हुआ है तब से देवता यहीं पर रहते हैं. यह देवता दरिया पार नहीं करते हैं."
आजीमल नारायध सोयल के कारदार गेहर सिंह ने बताया "जब से हमने होश संभाला है तब से इस परंपरा को निभा रहे हैं. हमारे पूर्वज भी इसी परंपरा को निभाते थे. जब से दशहरा उत्सव शुरू हुआ है तब से देवता यहीं पर दशहरा मनाते हैं. हम देवता का पंजीकरण करने कुल्लू जाते हैं और वापस आ जाते हैं."भगवान रघुनाथ के कारदार दानवेंद्र सिंह ने बताया "दशहरा उत्सव आज भी पुरानी परंपरा को संजोए हुए है. आज भी घाटी के पांच देवता दरिया के पार दशहरा मनाते हैं."
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